किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना।
सुनेगा तो रो देगा ज़ालिम ज़माना।।
सितम बिजलियों ने वो ढाए न पूछो।
जला मेरे आगे मेरा आशियाना।।
बहुत कुछ बचाया बचाते-बचाते।
मगर लुट गया फिर भी मेरा ठिकाना।।
न सोचा न समझा मोहब्बत को मेरी।
जुदा हो गए वो बना कर बहाना।।
वफ़ा करके कुछ भी नहीं हमने पाया।
न करते वफ़ा ग़म न पड़ता  उठाना।।
जिधर से मैं गुजरूँ यही लोग कहते।
हटो आ रहा है वो देखो दीवाना।।
निज़ाम आख़री ये नसीहत है मेरी।
हसीनों से दिल मत कभी तुम लगाना।।

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