निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – हसीनों से दिल मत कभी तुम लगाना
किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना।
सितम बिजलियों ने वो ढाए न पूछो।
बहुत कुछ बचाया बचाते-बचाते।
न सोचा न समझा मोहब्बत को मेरी।
वफ़ा करके कुछ भी नहीं हमने पाया।
जिधर से मैं गुजरूँ यही लोग कहते।
निज़ाम आख़री ये नसीहत है मेरी।
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