नीलम वर्मा की ग़ज़ल
हर्फ-ए-रोशनाई की, अब कसम उठा लो तुम
साज़ दिल का है खामोश , महफ़िलें हैं बेरंग सी
साकी के कदम दोनों, डगमगा रहे हैं अब
देख कर सबा हमको, रूठ जाए ना हमसे
साँस साँस उम्मीदें, चश्म-ए-नम की सौग़ातें
कौंधती है जब बिजली लहरें सब लरजती हैं
नक़्श आसमानों में, मुमकिन ही नहीं ‘नीलम’
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पुरवाई एवं तेजिन्दर जी का हार्दिक धन्यवाद!
– नीलम वर्मा