निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – मुझपे नज़रे इनायत मगर कीजिए
मुझपे मौला करम की नज़र कीजिए।
मैं हकीकत में कितना गुनहगार हूँ।
आसरा है फक़त तेरा ही बस मुझे।
रात ग़म की अंधेरी ये कटती नहीं।
अर्ज इतनी है या रब मुझे बख्श दे।
है निज़ाम इस जहाँ का फ़ना होंगे सब।
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