1
आइए, बैठिए, तब्सिरा कीजिए
फिर बयां कुछ मेरे दर्द का कीजिए
एक दिन ऐसा कुछ मोजिज़ा कीजिए
मेरी ख़ातिर कभी तो दुआ कीजिए
अच्छी होती नहीं इतनी ख़ामोशियां
कुछ कहा कीजिए कुछ सुना कीजिए
जैसी भी है निभानी पड़ेगी हमें
ज़िन्दगी से न शक्वा-गिला कीजिए
जिस तरह मैंने हद तोड़ दी इश्क़ की
आप ऐसी कभी इंतेहा कीजिए
सर उठाने लगे जब अंधेरा कहीं
उस जगह आप ‘रोशन’ ज़िया कीजिए
2
तेरी यादों से वाबस्ता रहेंगे
तो हम कुछ देर तक ज़िन्दा रहेंगे
मेरी ग़ज़लों में है किरदार मेरा
मेरे अल्फ़ाज़ तो चेहरा रहेंगे
मुकम्मल हों न हों पर होंगे बेहतर
अगर ख़ुद अपना आईना रहेंगे
ख़यालो-ख़्वाब में तुझको रखूँगा
तभी तो ज़ेह्नो-दिल ताज़ा रहेंगे
तुम्हारे बोसे के जितने निशां हैं
वो मेरे होटों पर चस्पा रहेंगे
कभी ऊला कभी सानी में ढल कर
वो रोशन शे’र का मिसरा रहेंगे

दीपक नगायच रोशन
उदयपुर (राजस्थान)
9460826878

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