मैं हूं एक नदी
अपने प्रियतम से मिलने चली
नहीं जानती कोई बाधा-कंटक,
निर्बाध गति से बही,
बस एक लगन,
मिलने की धुन,
नियति के शीर्ष की ओर बढ़ी ।
मैं एक नदी
अपने प्रियतम से मिलने चली
कहीं भँवरकहीं डेल्टा,
कहीं मुहाना,कहीं दोआब,
कितने हुए मुझ में कटाव
पर नहीं रुकी।
मैं एक नदी
अपने प्रियतम से मिलने चली।
जीवन का लक्ष्य
मिलन उनसे,
अस्तित्व हो साकार
प्रणय उनसे,
स्वीकारो मुझे
विनय तुमसे ।
मैं एक नदी
अपने प्रियतम से मिलने चली ।
चाहे कितने पथ पार करूं,
कितने ही घाट विस्तार भंरू,
पर एक सुखद अनुभूति पले,
सागर में मुझको विलय मिले,
मैं एक नदी
अपने प्रियतम से मिलने चली।
हिमालय की मैं पुत्री बनी,
पर अब हूं परिणीता सागर की,
कृष्ण की मुंहलगी रही ,
मैं प्रिया शिव-करुणाकर की,
मैं एक नदी
अपने प्रियतम से मिलने चली
हो मेरी अनंत यात्रा पूरी,
मिट जाए साजन से दूरी,
अथाह जलाशय गागर मिले,
मुझको सिंधु-सागर मिले,
मेरा प्रीतम,पिया सागर मिले।
2- तुमसे पिया अनुबंध
बस एक डोर विश्वास तुम्हारा
जब चाहे तोड़ दो इसे
बस एक मौज सागर में सम्हाले
बीच भँवर छोड़ दो मुझे
हृदयांचल का आवेग हो तुम
नयनों के तटबंध का संवेग हो तुम
होंठों का अनुबंध हो तुम
अश्रु कणों का अतिरेक हो तुम
मेरे हृदय की पीर हो तुम
प्यासे नयनों का नीर हो तुम…
मुझमे लिया तुमने आकार
हुआ तुमसे प्रेम साकार
प्रेम की मर्यादा हो
अनुरोध की लक्ष्मण रेखा हो
अनुभूति की गरिमा हो
भावनाओं की अस्मिता हो
निश्चल, निर्मल है प्रेम मेरा
पिया दृष्टि को समझा देना
यदि उमड़े जिया से विरह वेदना
पलकों कोरों से लौटा देना
सिसकी लूँ मै तुम्हें याद करूँ
चक्षु दृग को ना पता चले
तिनका गिरता क्यूँ नयन दुःखे
चित को यूँही समझा देना
जो तुम्हें दिया
जो तुमसे लिया
बस वही मेरा अर्जन है
वाह ! बहुत ख़ूब !
बहुत ही लाजवाब कविता
सुन्दर रचनायें
बहुत खूब।
दीपा जी
An excellent piece of literature wrapped with multiple layers of meanings . Great piece of literary work .