मौत से फासला ना था,
जिंदगी तुझसे वास्ता ना था।
फिर भी हम चलते रहे
रात – दिन बिना थके
टूट जाती आस थी
छूट जाती सांस थी
आए दिन जानें कैसे
रात हो आयी वैसे।
चारो तरफ कोहरा घना था
रौशनी का भी ना ठिकाना था।
ऐसे ही अंधेरों से गुजरते रहे
मंजिल मिल जाएगी,यहीं सोचते रहे।
आखिर वो दिन भी आया
जब हट गया घना साया
दूर तक बस रौशनी थी
जिंदगी में फिर भी कुछ कमी सी थी।