मिनी नारंग लंदन में रहती हैं। युवा कवयित्री हैं। उन्होंने पुरवाई के लिए अपनी एक कविता भेजी है, जिसे पढ़ते हुए उनमे निहित काव्यात्मक संभावना का अनुमान किया जा सकता है। इस रचना के साथ पुरवाई के पटल पर मिनी का स्वागत है। – संपादक
रचा सृष्टि ने मुझे या कि मैं ही सृष्टि हूं मात्र आग का गोला हूँ या अक्षय ऊर्जा की वृष्टि हूँ
कौन हूं मैं कहां से आया यह मुझको मालूम नहीं मुझ से जीवन है या हूँ मैं ही जीवन या जीवन जीने की दृष्टि हूँ
सौरमण्डल में पाया ख़ुद को शायद ब्रह्माण्ड का हिस्सा हूँ अनगिन तारों की कहानी सा बस मैं भी एक क़िस्सा हूँ
चीर के सीना धरती का जब नन्हा पौधा निकलता है मेरे प्रकाशपुंज में ही वह दिन दिन आगे बढ़ता है इस बात का क्यों अभिमान करूं मैं हर रोज़ ही तो मैं ढलता हूं
ऊर्जा की सौग़ात दे जग को जब अंतर्ध्यान मैं होता हूं नहीं समझना कभी ये तुम थक कर हार गया हूं मैं
उदास न होना तू प्राणी झांको अपने अंतर्मन में ढूँढ रहे जिस दिव्य प्रकाश को वो है तेरे भीतर में…
Minnie is a talented and promising poetess who will keep shining on the horizon of poetry.
Thanks Praneet ji
बहुत अच्छा कथ्य, सुन्दर प्रस्तुति..
धन्यवाद शैली जी।
मिनी नारंग जी की आमद सुखदायी। पठनीय कविता
धन्यवाद अनिता जी
मिनी नारंग जी की शानदार कविता। सुख आमदीद