Friday, May 17, 2024
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यामिनी गुप्ता की कविताएँ

1 – प्रकृति और मानवता
देखो तो जरा अपने आसपास
कमरे के रोशनदान ऊंची खिड़कियों पर
कबूतरों की आहट ,
नन्हें कदमों का फेरा ,
वैशाख की नरम धूप में
पक्षी निर्जन जगहों को छोड़कर
आम आवाजाही की जगहों में भी डालते हैं डेरा
कबूतर , कठफोड़वा ,नीलकंठ और गौरेया
सुकून के पल और भोजन की चाह में
पकड़ते हैं मानव के घरौंदों की राह
हाथ भर की दूरी पर रहते हैं साथ-ही
पर भूलते नहीं है
अस्तित्व को बचाए रखने की जद्दोजहद।
छत की मुंडेर पर
कौवों को उड़ाए जाने के चित्र
अब हुए हैं विरल और ____ विचित्र,
शहरी आपधाप में पक्षियों का दिखना ही
होता है उत्सव सरीखा
पक्षियों का आपसी संवाद
और आमंत्रण का तरीका
अलग ही होता है नर का
मादा पक्षियों को रिझाने का सलीका |
मनुष्य और बुद्धि होने के वर्चस्व में
मत उजाडो़ पशु पक्षियों का नीड़
रोशनदान में बैठे
इन नन्हे जीवों की
कातर निगाहों की पुकार ,
अवसाद अकेलेपन के पलों में
कभी तो निहारो इन पक्षियों को
इन पक्षियों के सानिध्य में है
हर अवसाद का इलाज ।
कंक्रीट के जंगलों , छोटे-छोटे टेरेसों पर
पाखियों की स्मृतियां करती है बेचैन
यह बेचारे कहां जाएं ‼️कैसे जिएं‼️
इन कातर आंखों में छुपा है
सृष्टि के उद्गम से लेकर
महान आपदाओं की
पूर्व सूचना का संकेत
अपनी प्रकृति स्वभाव को लेकर
हम अब भी नहीं चेते
तो कुदरत के कहर से ना रह सकेंगे अछूते
प्रकृति भी नहीं करेगी
मानव और मानवता में भेद।
2 – प्रेम के मोहपाश
प्रेम में एक समय
वो भी मकाम आता है
जब फर्क नहीं पड़ता कि
हमने कबसे नहीं की बात
स्थगित हो चले संवाद
अनकही रह गयी बातों की श्रंखला
तुम्हारा होकर भी साथ ना होना
अब मुझे नहीं खलता |
जिनके बिना जीना एक एक पल
लगता था दुरूह
अब हो चला है सरल और सहज
एक उम्र होती है हर शै की
प्रेम की __विरह की
और ____ प्रतीक्षा की भी
अंततः गुजर ही जाते हैं सब पल
या पल पल गुजरते जाते हैं हम|
आत्मा के अरण्य में
व्यथित एकाकी मन,
रोशनी की किरणें बिखेरते
उम्मीद के जुगनूं,
अब थक चले हैं भोर की बेला में
पर चिर प्रतीक्षित वो सुबह
अब भी है अलभ्य ही |
पल पल दूर होते
दो जोडी़ कदमों की आहटें,
काश सुन ली जातीं
अधरों तले दबी
व्याकुल मन की सुगबुगाहटें,
दो व्यक्तियों के बीच जब पसर जाता है मौन
अंधेरे की सत्ता लील लेती है मुस्कराहटें |
चुप्पियों के दिन __
जागती करवटों की रातें,
कलेजे की फांक काट-काटकर
लिखी जाती कविताओं में
कभी नहीं होता ___ सुखद अंत ;
अपूर्ण रहने को अभिशप्त
इन कविताओं का लिखा जाना
सतत रहेगा जारी
दो समान प्रेम करने वालों के मिल जाने,
____ एकाकार होने तलक |
3 – अपनी माटी के देस
शहरों में बसे बेटों
और दूर देश को ब्याही बिटिया के आने की
बाट जोहते घर तब्दील हो रहे हैं खंडहरों में ,
चूने से दमकती दीवारों , छज्जों पर
अतिक्रमण सा करने लगी है काई ,
सीमेंट की जालियों के दरकते टुकडे़
व्यक्त कर रहे हैं एकाकी होने का दारुण अवसाद
लंबे अरसे से बंद खिड़कियां
देखना चाह रही हैं अब नीला आसमान
एकांतिक पीड़ा के भुक्तभोगी झंरोखे और दरवाजे
संभवतः आपस में करते होंगे संवाद ।
उचल गया है दालान की सीढ़ियों का प्लास्तर
हाशिए पे गये बुजुर्गों की तरह
पुराने जमाने के बिजली के काले स्विच
राह ताक रहे हैं आत्मीय स्पर्शों के स्पंदन ,
आंगन के बीच लगे तुलसी चौरा के इर्द-गिर्द
हो गया है घास-फूस का जमावड़ा
कभी मां यहां रोज संझा को जलाती थी दीपक
और गुनगुनाती थी कोई भजन
अब ___ अब मौन है तुलसी चौरा
और शो मचा रहा है वीरानापन ।
मंदिर के आस पास की दीवारों पर उकेरी
हथेली की महावर लगी थापें हो चली हैं स्याह ,
किसको है वक्त जो याद करे
नयी नवेली बहुओं की चुहल और हया ,
अनाज की भंडरिया के अंधेरे
कह रहे हैं रीतेपन की व्यथा
आज भी नीम के दूधमुंहे सफेद फूल झरकर
ढांप लेते हैं समूचे आंगन को
पर उन्हें बीनने का उपक्रम कोई नहीं करता
दम तोड़ देती हैं बिन अपनायी ब्याहता सी अनछुई कलियां
चूड़ियों की खनक याद करते हैं चौबारे और गलियां ।
देख-रेख के अभाव में खंडहर होते घरों की
अनुत्तरित प्रार्थनाएं हो चली हैं क्लांत सी ,
कुछ दिन और इस घर में नहीं लौटीं खिलखिलाहटें
रसोई में ना लगा घी-हींग का बघार ,
ना टिमटिमाया दीपक दहलीज पर
तो फूट-फूट कर ढह जाएंगी घर की दीवारें
झै जायेगा उम्मीदों का प्लास्तर
ऐ लल्ला ‼️ अबकी गांव आना तो
शहर से तोहफे नहीं , कुछ बखत लेकर आना ।
ऐ लल्ली ‼️ अबकि आना
तो एक नजर देख जाना आंगन में पड़ा झूला
दिवंगत मां का बुझा हुआ चूल्हा ,
विदा लेते समय दो सजल नेत्रों का चुपचाप
बेरंग दीवारों को ताकना
विस्मृत होते गांव
लुप्त होता गंवई बोध ,
ज्यूं मेले में शैने: शैने: छूट रहा है पिता का हाथ
फिर भी , उम्मीदों के ठीहे अभी शेष हैं
पूरब में उगने को है एक नया-नकोरा दिन ,
छोड़कर जहरीली आबो-हवा और विदेशी भेष ,
कंक्रीट के जंगलों में जाने वाले
कभी कभी लौट भी आते हैं अपनी माटी के देस ।
4 – तुम्हारी तलाश
मुझे है तुम्हारी तलाश
काश कि किसी रोज
तुम आ जाओ मेरे पास
हम सटकर बैठें मीठी गुनगुनाहट के साथ
हिलोरें ले मेरे अंतस का मौन
आद्र रहें मेरी कूची के रंग
बना रहे लिखने का ढंग ।
वैसे तुम चाहो तो मत आना
पर रहना इतने ही पास
कि जब चाहूं छू सकूं तुम्हें
बना रहे तुम्हारा साथ होने का आभास
तुम जो साथ नहीं हो तो ,
मेरा साथ छोड़ रही है भाषा
शिथिल हो रही है संवेदनाएं
स्त्रियों को इतना परिपक्व भी नहीं होना चाहिए
कि सूख जाएं कोमलता के स्रोत ;
मेरे अंतस के मौन‌ को लील रहा है
बाहरी दुनिया का शोर ।
जरा सोच कर तो देखो
एक दिन जब मैं रहूं पर …भाषा ना हो
कलम हो पर ……स्याही ना हो
लिखने से पहले ही…स्लेट की तरह
कोरे पृष्ठ हो चलें स्याह
कौन से रंग की कलम की दरकार होगी उस वक्त
और कुछ और कविताएं लिख कर भी क्या होगा!!
दिल की ओर जाने वाली
धमनियों का प्रभाव मुड़-मुड़ आता है
तुम्हारी और ,
बरसों बाद तुम्हारा मेरे पास लौट आना
संभवत: हो जाएगा वृथा ,
पहाड़ी पेडो़ं के बीच
पलाश के फूल सा तुम्हारा प्रेम
दृश्य है पर अप्राप्य है ।
इससे पहले की प्रतीक्षा के सैलाब में
बह जाएं प्रेमिल पल
एक बार फिर लौट आना
संवादों की उन वीथिकाओं में
सिर्फ बसंत ही नहीं पतझड़ में भी बने रहें
दो जोड़ी हथेलियों के स्पर्श ।
तुम क्या जानो ____
जब गुम हो जाते हैं संवादों के सिरे
तुम हम के बीच ठहरी पारदर्शी दीवार
हो जाती है पाषाण सदृश ,
तुम मानो या ना मानो !!
मेरे जीवन में….
तुम्हारी दो नरम हथेलियों से दूर हो जाने से बड़ा
कोई दुख नहीं ।
अच्छा !!
मैंने ऐसा क्या चाह लिया है
कि तुम स्तब्ध हो ___ भौंचक हो ;
निमिष भर के लिए
गर्दन झुका कर जमीन पर देखो
माटी पर उगी डूब के कोरों पर टिकी मेरी प्रतीक्षा
रोज शाम ढलककर हो जाती है विलीन
सूर्योदय होने पर _
फिर_फिर उठ खड़ी होती है
अपनी उत्कट जिजीविषा के साथ।
बुलबुल की आवाजें
कोयल का गान
नदियों का संगीत
हरीकंच पीपल पर बैठी मैना
कोटरों से झांकती गिलहरी
ठहरे रहें ये सभी दृश्य,
भावनाओं की नदी में बना रहे वेग
कभी ना सूखे अभिव्यक्ति का पेड़।
वास्तविकता के धरातल पर
भला कब हम मिले ,
निजी क्षणों में से होकर
हम गुजरे ही कब ….
ऊहापोह की इबारतों के
सुलझ जायें समीकरण
सच कहूं तो हमारे प्रेम को
आडंबर की जरूरत कभी पड़ी ही नहीं।
यामिनी गुप्ता
प्रकाशित साहित्यिक कृतियां
एकल काव्य संग्रह : शिलाएं मुस्काती हैं
साझा व्यंग्य संग्रह : चाटुकार कलवा
साझा काव्य संग्रह : आज के हिंदी कवि (खण्ड१)  (दिल्ली पुस्तक सदन द्वारा) तेरे  मेरे शब्द (साझा) शब्दों   का कारवां (साझा) खिली धूप हैं हम (साझा) काव्य किरण  (साझा ) पल पल दिल के पास (साझा)
सम्मान : काव्य संपर्क सम्मान, नवकिरण सृजन सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान (हिंदी साहित्यिक सृजन  द्वारा वर्ष २०२१)
संपर्क – 9219698120, yaminignaina@gmail.com
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