महादानी सत्यवादी हरिश्चंद्र महाराज जैसे विराट हृदय से भला कौन अनभिज्ञ होगा! फिर भी पुरवाई ई-पत्रिका में इस लेख के पाठकों को एक संक्षिप्त परिचय देना ज़रूरी हो जाता है।
आज कलियुग के लगभग साढ़े पाँच हज़ार साल बीत रहे हैं और मैं उससे भी बहुत पहले सतयुग में सूर्यकुल के महाराज हरिश्चंद्र की बात कर रही हूं जिनके सत्यवादी और अथाह दानी होने की परीक्षा लेने स्वयं देवता स्वर्ग से भूलोक पर उतर कर आए थे। अपना सर्वस्व दान करने के बाद भी जब परीक्षा की कठिनतम घड़ी से गुज़रते हुए हरिश्चंद्र महाराज क्षत्रिय होते हुए भी शमशान में दास का कार्य करने को बाधित हो गए तब अपने मालिक के कहने पर अंतिम क्रिया के लिए शुल्क वसूल किया करते थे।
कहर तो तब ढा गया जब उनकी पत्नी अपने मृत बेटे की अंतिम क्रिया के लिए भटकती वहाँ आई। दीन-हीन महिला जिसके शरीर पर चीथड़े थे और गोद में मृत बालक का शरीर! मुश्किल से पहचान में आया कि यह तो अपना ही पुत्र रोहिताश है किंतु बात और कर्म के पक्के हरिश्चंद्र ने कफ़न के लिए शुल्क माँगा तो पत्नी को अपनी ही धोती को फाड़ कर पुत्र को उढ़ाना पड़ा। ऐसे थे महाराज हरिश्चंद्र जो ईश्वर की परीक्षाओं में खरे उतरे और उनका राज-पाठ तथा पुत्र भी इस कठिन तप के फलस्वरुप वापस मिल गया।
श्रीराम जो दशरथ-नंदन थे वह त्रेता युग में इसी कुल के भूषण बने। हम गौरवान्वित एवं गर्वान्वित हैं कि रूस्तगी, रस्तोगी और रोहतगी रोहिताश-वंश की वंशावली में महाराज हरिश्चंद्र और राम की अगली पीढ़ियों में आये।
क्षत्रिय से समयानुकूल बदलाव के कारण वैश्य(बनिए) हो गए और पूरे विश्व में नाम रौशन कर प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी के रूप में योगदान दे रहे हैं। अधिकांशतः गणित और विज्ञान विषयों में तीव्र गति से दौड़ता है मस्तिष्क इनका। महाराज हरिश्चंद्र के वंशज यानी तीनों घटक-रस्तोगी, रूस्तगी और रोहतगी समुदाय 27-28 दिसंबर 2023 को लखनऊ में एकत्रित होकर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं इंदिरा गाँधी प्रतिष्ठान में।
बहुत ही सुंदर उपमा देकर इस सम्मेलन के लिए तीनों घटकों का आह्वान किया खरगूपुर उत्तर प्रदेश के माननीय राजीव रस्तोगी जी ने। उन्होंने कहा-‘हमें खरबूजा बनना है संतरा नहीं।’ ‘एकता में बल है’- यह तो सब हम सभी जानते हैं पर यहाँ एकजुट होकर खरबूजा बनने से तात्पर्य है कि खरबूजा जो ऊपर से भले ही धारी में अलग-अलग दिखे अंदर से एक होता है जबकि संतरा बाहर से एक और अंदर से फांक-फांक अलग, उस पर भी हर फांक में रसदार रेशे अलग-अलग! विश्व भर में रुस्तगी, रस्तोगी और रोहतगी समाज हरिश्चंद्र-वंशज के रूप में अपनी पहचान सुदृढ़ कर सके उसके लिए यह प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय है।
खूबसूरत रिपोर्टिंग
धन्यवाद मेरी कलम को मान देने के लिए।
विश्व भर के हरिश्चन्द्र बंधु-बांधवों से आग्रह है कि संपर्क करें दी गयी मेल id पर