27 मार्च, 2022 को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय पर प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं
“द कश्मीर फ़ाइल” एक फ़िल्म हैं, या सच्ची घटनाओं पर ईमानदारी से बनायी गयी documentary
आपने इस नरसंहार से पहले, नरसंहार के समय और उसके बाद – तीनों पक्षों को निष्पक्ष रूप से समझाया है। मेरा मानना है कि इस पूरी घटना का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष भारतीय राजनीति की व्यक्तिगत हितों के लिए बड़े विषयों की अनदेखी भी है। यह लेख हर ऐसे बिंदुओं पर ना ही केवल प्रकाश डालता है बल्कि एक हद तक पाठकों को मूल तथ्यों तक ले जाता है।
एक और सुविचारित संपादकीय के लिए पुनः धन्यवाद।सच को बताने में जिस देश में 32 साल लगे, उस देश के दुर्भाग्य को बताने के लिए शब्द कम हैं। आजाद कश्मीर एक सुनियोजित साज़िश है, हमारे तथाकथित स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं की। गाँधी को राष्ट्रपिता और नेहरू को गाँधी के कहने पर प्रधानमंत्री बनाया जाना काश्मीर फ़ाइलस की आधारशिला है। शेख अब्दुल्ला तो बस काश्मीर भुनाने के लिए बिठाए गये थे। कश्मीर एक ऐसी रोटी है, जिसे केंद्र की कांग्रेस सरकार और कश्मीरी नेताओं ने पेट भर के खाया। वी पी सिंह के काल में यह घटना हुई, इसीलिए कांग्रेस पर सीधे इल्ज़ाम नहीं आया, पर आधी अधूरी सी वी पी सिंह की सरकार कुछ करने लायक थी भी नहीं। दुःख नपुंसक बनाए गये मीडिया का है, जिसकी नपुंसकता का श्रेय कांग्रेस शासन को जाता है। भाग्य था भारत का जो मोदी जैसा नेता आया, जिसके शासन में यह सच बाहर आया। सोशल मीडिया का भी आभार जिसने इस फिल्म को रुकने नहीं दिया। जो कश्मीर में हुआ, वही बीर भूमि में हो रहा है. इस फ़िल्म ने एक बार गंदी राजनीति के कुरूप चेहरा दिखाया, अब शायद कांग्रेस अगले चुनाव घोषणा पत्र में 370 फिर से लागू करने की बात न कहे. आगे जिम्मेदारी भारत के नागरिकों की है कि इस सत्य को धुँधला न होने दें, पीड़ित पंडितों को न्याय मिलने और भारत के सुनियोजित इस्लामीकरण की प्रक्रिया ख़त्म होने तक.
जिन्ना ख़ुद को पीएम कहते
झगड़ा सुन कर बापू आए
थोड़ा तुम लो जिन्ना बेटा
रूठो तुम ना नेहरू बेटा
अब से झगड़ा करते रहना
हिन्दू-मुस्लिम कहीं लड़ाना
सेना, जनता कटवा देना
फ़िदायीन कुछ बन जायेगें
जाति-धर्म की आग लगाना
पीढ़ी दर पीढ़ी तक बच्चों
फूट डाल कर राज करोगे
पाकिस्तान बना डाला है
हिन्दू मुस्लिम कश्मीरी को
पुश्तों तक तुम राज करोगे
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