“दुम टूटने का दुख” – व्यंग्य संग्रह। लेखिकाः डॉ. पुष्पलता अधिवक्ता। प्रकाशक – वत्स मीडिया प्रकाशन, 721 वसंत विहार, मुजफ्फर नगर उ. प्र.
समीक्षक – डॉ स्नेहलता पाठक
डॉं. पुष्पलता अधिवक्ता लेखकीय क्षेत्र में ऐसा नाम है जो अपनी साफगोई के लिए पहचाना जाता है“। दुम टूटने का दुख“ व्यंग्य संग्रह इसी साफगोई  को प्रतिबिंबित करता दर्पण है।
साफगोई में कबीर जैसा कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर। जो सच है सो सच है। वे उस पर झूठी चाटुकारिता का मुलम्मा नहीं चढ़ने देतीं। पहले दुम हिलाना नामर्दगी की निशानी माना जाता था। आज वही हिलती दुम प्रतिष्ठा और चमचागीरी की पहचान हो गई है ।इसलिये हर बड़ा हैसियत दार दिखने के लिए कईं- कई दुम रखने लगा है। आज के दिखावटी समाज में इन्हीं दुमदार बहरूपियों का बोलबाला है। इन्हीं दुमदारों के हिसाब से समाज आगे बढ़ता है तो कभी पीछे भी चला जाता है। मगर कोई चिंता नहीं क्योंकि आज व्यक्तियों के  समूह से समाज नहीं बनता। समाज बनता है उससे जिसके पीछे कई दुम हिलाने वाले हों।
एक समय था जब पहले जानवर ही दुम हिलाते थे,मगर आज बड़े-बड़े तीसमारखां भी दुम हिलाने में पीछे नहीं हैं। शिक्षा का क्षेत्र हो या राजनीतिक, धार्मिक मठ हो या सेवा आश्रम, रोजगार की लाइन हो या सम्मान पाने की पिपासा बिना दुम हिलाए नर पावत नाहीं।
पूरा व्यंग्य संग्रह इन्हीं विसंगतियों की पोल खोलता नजर आता है। “समझौता “शीर्षक रचना में लेखिका की गहरी व्यंग्य दृष्टि देखते ही बनती है।  आयोजित सम्मान समारोह में “सच” को सम्मानित करना है मगर सच से तो सभी डरते हैं। झूठी प्रशंसा के कागज पर लिखे आमंत्रण पत्र को सच तक कैसे पहुंचाया जाए यह भारी समस्या थी ।तभी आज की कूटनीति के गलीचे पर विचरण करने वाली राजनीति में मांजा धोया आयोजक कहता है कि इसमें संकोच की क्या बात? 
सच से कहो तुम्हारा सम्मान करना है,यह सुन कर तो  मरा हुआ आदमी भी उठकर चला  आयेगा। आयोजक का यह कथन आज टाफियों की तरह बांटे जा रहे सम्मानों की धज्जियां उड़ा देता है। इस तरह हर रचना नाविक के तीर की तरह  दुनिया में दुबकी सच्चाई की पोल खोल रही है।
“अपने से जो बन पड़ेगा”
जैसी रचनाओं में वे बडी़ निडरता से सामने आती हैं। अपने समय के समाज में फैली विसंगतियों का खुले-आम विरोध करने का जो साहस कबीर काल में दिखाया  गया,वह साहस हम पुष्पलता जी की रचनाओं में पाते हैं। देश में व्याप्त जो भर्राशाही वे देख रही हैं उससे होने वाली पीड़ा पूरे संग्रह में फैली है। अंधे के हाथ में रेवड़ियाँ हैं । बार- बार अपनी ही झोली में भर रहा है। यह भावना खाज के रोग की तरह पूरे देश में व्याप्त है।
बधाई हो पुष्पलता जी। साफ शब्दों में कहूँ तो आपकी साफगोई  सही अर्थों में आपको व्यंग्य कार बनाती है। आप केवल साहित्य लिखती ही नहीं उसे जीती भी है ।यह साहस उसी में होता जो आत्म साहस से भरा होता है। लेखिका ने अपनी कलम से समाज में फैली विसंगतियों के महलों में जिस तरह सेंध मारी की है।उसमें घुसे दोमुंहे सांपों को बेनकाब किया है वह सराहनीय है। 
डॉ. स्नेहलता पाठक
मेसनेट, 44, शंकर नगर
रायपुर छत्तीसगढ़ 492001
मो-9406351567

2 टिप्पणी

  1. सटीक और सारगर्भित समीक्षा की है स्नेहलता जी ने | उन्हें साधुवाद और पुष्पलता जी को बहुत बहुत बधाई |

  2. बहुत सटीक और सारगर्भित समीक्षा की है स्नेहलता जी ने | उन्हें साधुवाद और पुष्पलता जी को बहुत बहुत बधाई |

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.