आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन के तत्वावधान में  5 जून पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक विशेष आयोजन किया गया। विषय था “हम और प्रकृति” ।हम और प्रकृति किस तरह से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं हमारे बीच  तारतम्य, सामंजस्य है, प्रकृति की वजह से है हमारी जिंदगी,  इन्हीं सभी भावों को अपनी रचनाओं में बुलंद करके  सभी  रचनाकारों  ने शानदार अभिव्यक्ति की। वर्तमान दौर में जिस तरह अंधाधुंध  पेड़ काटकर कंक्रीट के जंगल बनाए जा रहे हैं और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का गंभीर परिणाम देखने को मिल रहा है , इस पर सभी ने अपनी चिंता और  आक्रोश व्यक्त  किया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि रहीं, कनाडा से मीना चोपड़ा जिन्होंने अपने वक्तव्य में कहा ;-प्रकृति जो कि हमारी लिए प्रेरणा का एक बहुत बड़ा स्रोत है, उसे इस भागमभाग वाली जिंदगी में हम नुकसान पहुंचाते हैं, तिरस्कृत करते हैं और अपने लिए ही संकट उत्पन्न करते हैं।”हम और प्रकृति” बहुत रोचक विषय है और प्रकृति से हमारे अटूट संबंध की याद दिलाता है। इस संबंध को हमें जीवंत रखना है।
अनुपमा अनुश्री ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अपने वक्तव्य में कहा ;-
जो प्रकृति नहीं, तो हम कहां !
हमारे तो सारे सुख हैं ,
प्रकृति के दरमियां ।
शुभम भवतु का आशीर्वाद देती हुई प्रकृति
किस प्रेम से दोनों हाथों से अपने अनमोल खजाने
हम पर लुटा रही । 
वहीं  लोलुप,स्वार्थी 
मानव को देखो!
प्रकृति की गोद उजाड़,
अपनी ही ‌ सांसें उखाड़ रहा!
वहीं विशिष्ट अतिथि  उषा चतुर्वेदी ने समाज का आवाहन करते हुए कहा कि – प्रकृति प्रेम या पर्यावरण दिवस एक दिन की बात नहीं है। आज  हानिकारक तत्व जल ,वायु और पृथ्वी में मिलाए जा रहे हैं इस पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए समाज के हर व्यक्ति की  अपनी क्षमता अनुसार भूमिका होनी चाहिए। शुद्ध जल, वायु पर सभी का अधिकार है तो उन्हें शुद्ध रखने के लिए  कर्तव्य करना भी जरूरी है।
कार्यक्रम में 20 से अधिक रचनाकार शामिल हुए । सिंगापुर से रचना पाठ करते हुए शोभा ठाकुर ने इन पंक्तियों द्वारा अपनी आवाज बुलंद की –
‘समंदर में प्लास्टिक का कचरा न बहाओ
जंगल भी कट रहे ,जलवायु में धुआँ न फैलाओ
पर्यावरण व आक्सीजन का महत्व तो समझो।      
वही शालिनी बड़ोले ने  “प्रकृति -मनुज संवाद” रचा :-
“वन-उपवन का किया सर्वनाश,
निर्मल जल स्रोतों को भी कर दिया विषमय,
पशु – पक्षी भी नही विचरते निर्भय,
जल-थल-नभ हुए विषाक्त ,
कहो यह कैसा प्रयास  है!
प्राणवायु को प्राणी तरसे, कहो यह कैसा विकास है?”
मुंबई से रश्मि प्रभा ने अपनी पंक्तियों द्वारा यह संदेश दिया –
“तुम्हारी ख्वाहिशों के तने पर
मेरी दुआएं बंधी हैं,
लेकिन आँधियों की चेतावनी 
मैं हमेशा दूँगी।”
अन्य सभी प्रमुख रचनाकारों ने अपनी-अपनी रचनाएं सुनाकर जीवनदायिनी  प्रकृति का अभिनंदन किया, वही मानव को प्रकृति से जुड़कर जीने और उसके संरक्षण करने का संदेश दिया।
रत्नों को मैं धारण  करती,
और वसुंधरा कहलाती हूँ।
पर खोद- खोद कर 
मेरी कोख उजाड़ी,
अब बंजर होने की है तैयारी
हाँ! मैं धरती हूँ।
– कमल चंद्रा
स्नेह से सिंचित धरा
हो प्रफुल्लित नर्तन करें।
कूकती कोयल आम पर,
मीठी सी अर्चन करे।
मत काटो इन वृक्षों को,
यह कार्य तो दुर्जन करे।।
– श्यामा गुप्ता दर्शना
रंग बिरंगी सुंदर सुंदर 
प्यारी प्यारी प्रकृति
ओढ़ चुनरियाँ रंगों वाली 
दुल्हन जैसी लगती 
– शेफालिका श्रीवास्तव
मानव और प्रकृति का है जग में अलौकिक नाता। – डॉ माया दुबे
बरगद, अँबुवा ,पीपल प्यारे
बचपन  बीता  साथ  तुम्हारे 
देववृक्ष  कहलाता  है  यह
पीपल  
कहते  बड़े  हमारे  बाईस घंटे  दे  ऑक्सीजन
अब  यही कहते वैज्ञानिक सारे ।
– मधुलिका सक्सेना
हो पर्यावरण की शुद्धि, 
जीवन मे रोगों से मुक्ति ।
चारों ओर हरियाली हो, 
जीवन मे खुशहाली हो ।
तो पौधे खूब लगाना है ।
– बिन्दु त्रिपाठी
प्रकृति चीख चीखकर कर करती है पुकार ।
अब न करो मेरे तन पर प्रहार।।
– डॉ ओरिना अदा
अन्न-धन  से परिपूर्ण अन्नपूर्णा   को 
तुम  क्या  दे रहे, विष मिश्रित 
जल का  उपहार! 
सेवा , ममता  का क्या  यही उत्तम  उपकार! 
– ऊषा सोनी
अपना रूप दिखाती  कभी सुनामी बन कर
कभी भूकंप बन कर,
कुछ तो समझो इंसानों
मैं पोषक हूं, तुम्हारी
तुम भक्षक क्यों बनते हो।
– विजया रायकवार
एक रात एक नन्हा पौधा फूट-फूट कर रोया।
मैंने सुना सिर्फ, बाकी सारा जग सोया।
– सुधा दुबे
देश की धरती करे पुकार , 
वृक्ष लगाकर  करो श्रृंगार ।
प्रकृति तुम्हारे हर 
कोने का हो संरक्षण ,
धन्य हो जाए हमारा जीवन ।
– डॉ . रेखा भटनागर
कार्यक्रम का संचालन शेफालिका श्रीवास्तव ने किया।

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