होम ग़ज़ल एवं गीत अल्पना सुहासिनी की दो ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत अल्पना सुहासिनी की दो ग़ज़लें द्वारा अल्पना सुहासिनी - June 13, 2021 187 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 जब भी होता है जहाँ होता है, इश्क़ इबादत का बयां होता है। इश्क़ में शर्त नहीं होती है, इश्क़ शर्तों पे कहाँ होता है। बहता नस-नस में लहू के जैसा, रूह तक में भी रवाँ होता है। है ज़रूरत ही कहाँ लफ़्ज़ों की, इश्क़ आँखों से बयाँ होता है। ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आए वही, हर घड़ी उसका गुमाँ होता है। 2. ‘मैं’ बैठा है मेरे भीतर, कैसे झांकू तेरे भीतर। आशा, तृष्णा, लोभ, मोह, सब, लगा के बैठे डेरे भीतर। तेरा सुमिरन करवाता है, अक्सर मन के फेरे भीतर। जितना बाहर को भागूं मैं, उतना ही तू हेरे भीतर। मानुष बाहर ढूंढ रहा है, क्यूं न तुझको टेरे भीतर। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – मुझपे नज़रे इनायत मगर कीजिए सुभाष पाठक ‘ज़िया’ की ग़ज़लें डॉ. यासमीन मूमल का गीत – उड़ जाए चुनरिया भी सर से 1 टिप्पणी डॉक्टर अल्पना सुहासिनी की दोनों गजलें शानदार व जानदार।बधाई , शुभकामनाएं एवं शुभाशीष। जवाब दें Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
डॉक्टर अल्पना सुहासिनी की दोनों गजलें शानदार व जानदार।बधाई , शुभकामनाएं एवं शुभाशीष।