होम ग़ज़ल एवं गीत अल्पना सुहासिनी की दो ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत अल्पना सुहासिनी की दो ग़ज़लें द्वारा अल्पना सुहासिनी - June 13, 2021 305 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 जब भी होता है जहाँ होता है, इश्क़ इबादत का बयां होता है। इश्क़ में शर्त नहीं होती है, इश्क़ शर्तों पे कहाँ होता है। बहता नस-नस में लहू के जैसा, रूह तक में भी रवाँ होता है। है ज़रूरत ही कहाँ लफ़्ज़ों की, इश्क़ आँखों से बयाँ होता है। ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आए वही, हर घड़ी उसका गुमाँ होता है। 2. ‘मैं’ बैठा है मेरे भीतर, कैसे झांकू तेरे भीतर। आशा, तृष्णा, लोभ, मोह, सब, लगा के बैठे डेरे भीतर। तेरा सुमिरन करवाता है, अक्सर मन के फेरे भीतर। जितना बाहर को भागूं मैं, उतना ही तू हेरे भीतर। मानुष बाहर ढूंढ रहा है, क्यूं न तुझको टेरे भीतर। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं नीलम वर्मा की ग़ज़ल त्रिलोक सिंह ठकुरेला का गीत – मैं उजाला बाँटता हूँ, तिमिर में डूबे घरों में डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ के दो गीत 1 टिप्पणी डॉक्टर अल्पना सुहासिनी की दोनों गजलें शानदार व जानदार।बधाई , शुभकामनाएं एवं शुभाशीष। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
डॉक्टर अल्पना सुहासिनी की दोनों गजलें शानदार व जानदार।बधाई , शुभकामनाएं एवं शुभाशीष।