अल्पना सुहासिनी की दो ग़ज़लें
जब भी होता है जहाँ होता है,
इश्क़ में शर्त नहीं होती है,
बहता नस-नस में लहू के जैसा,
है ज़रूरत ही कहाँ लफ़्ज़ों की,
ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आए वही,
‘मैं’ बैठा है मेरे भीतर,
आशा, तृष्णा, लोभ, मोह, सब,
तेरा सुमिरन करवाता है,
जितना बाहर को भागूं मैं,
मानुष बाहर ढूंढ रहा है,
RELATED ARTICLES
डॉक्टर अल्पना सुहासिनी की दोनों गजलें शानदार व जानदार।बधाई , शुभकामनाएं एवं शुभाशीष।