यदि आप आ बैल मुझे मार टाइप कहावत का वास्तविक अनुभव लेना चाहते हैं और गलती से या खुशनसीबी से आप साहित्य की दुनिया में भी हैं तो आप चाचा-मामा-पिता-पत्नी जिससे भी आपको प्रेम हो तुरंत उनके नाम से एक पुरस्कार शुरू कर दें, यदि  आपको  सिर्फ खुद से प्रेम हो और खुद को महान भी समझते हैं तो अपने मरने का इंतजार करने की जरूरत नही आप अपने नाम से ही पुरस्कार शुरू कर दें आपकी महानता में चार चाँद लगाने का कार्य दूसरे कर ही देंगे।

एक बार आपने पुरस्कार शुरू कर दिया तो बस हर तरफ आपको चमचमाते सींगों वाले हट्टे-कट्टे बैल ही नजर आयेंगे|  जिनको पुरस्कार नही मिला उनके सींग तो ज्यादा नुकीले और धारदार होकर चुभेंगे ही, पर  जिन्हें आपने शाल, श्रीफल और नगद नारायण देकर सम्मानित किया था वे दुगुनी ताकत से आप पर ऐसे-ऐसे हमले बोलेंगे कि आप भी भागते फिरेंगे पर उनके सींगों से बच नहीं पायेंगे। ऐसी ऐसी जगह सींग मारे जायेंगे कि आप खुद समझ नहीं पाएंगे कि किधर लगा।
इस तरह आप सम्मान देकर अपने लिए एक एहसान फरामोश टाइप दुश्मन खरीदने में सफल हो जायेंगे। अब उसके लिए आप मायने नही रखते, काम खत्म, इज्जत खत्म। अब वो ही आपके हर सम्मान के आड़े आने को तैयार रहेंगे और बिल्ली की तरह रास्ता काटता रहेंगे। आपने भले ही सम्मान देकर उनकी इज्जत बढ़ाई हो पर वे आपका धन्यवाद आपकी इज्जत तार-तार करके चुकाने का पूरा प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
आपकी आत्मा आपको धिक्कारेगी आपके गलत चयन पर, मन से आवाज आयेगी बंद कर ये सम्मान देना, अपमान का इतना डोज ही काफी है, पर ….उम्मीद पर टिके और यादों से बंधे हुए सम्मानित करते रहेंगे और बदले में आपको हर कदम पर एकदम नए नए अहसास होंगे। आत्मा से आवाज आएगी बच्चू तुमने तो पड़ी लकड़ी उठाई है और लो मजे..!
आपको अहसास होगा कि आपने पैर में कुल्हाड़ी नहीं कुल्हाड़ी में पैर दे मारा है ..अब सिवाय दर्द सहने के आपके पास कोई उपाय नहीं ..क्योंकि बैल को तो खुद आपने सींग मारने बुलाया था ..सम्मान के बदले अपमान के घूंट जब तक पी सकते हैं, पीते रहिये और उस घड़ी को कोसते रहिये जब आपके मन में ऐसा उच्च विचार आया था | आप अपनी वर्षों की बनी बनाई छवि के टूटे टुकड़े समेटिये ..इज्जत के फलूदे में मिलाईये और तब तक गटकिये जब तक आप गले तक ना भर जाएँ …जो लोग पिछले कई सालों से सम्मान देने जैसे कार्य को वीरता से  लगातार कर रहे हैं वे निश्चित ही परमवीर चक्र के योग्य हैं।

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