बरसों बाद मुझे नए हाथों का स्पर्श महसूस हुआ। खुशी महसूस ही हुई थी की गर्जना सुनाई दी।
“सत्तू की मां समझा दे अपनी नई बहू को ,पढ़ाई लिखाई ब्याह से पहले ,बिहा के बाद घर परिवार और घर का काम काज, किताबों का मुंह छोड़ दे! वरना…”
गर्जना और आदेश दोनों काफी तीक्ष्ण थे ।
नए हाथों का कंपन मैं भी महसूस कर रही थी।
मैंने देखा दो अधेड़ हाथ अपनी पीठ को सहला रहे थे।
“तू जानती है सत्तू की मां ,मुझे औरतों की पढ़ाई लिखाई बिल्कुल पसंद नहीं।”
“पर बहू का मन है तो उसे ¡”
सास की बात पूरी नहीं हो पाई।
“क्या कहीं तूने ,कान खोल कर सुन ले जो मैंने कही , ठीक कहा ना मैंने अम्मा।”
सबके साथ साथ मेरी भी नजर अम्मा पर ठहर गई।
“नई बहू जरूर पढ़ेगी और यह मेरा फैसला है।”
गौर से देखा मैंने बूढ़े हाथ भी अपनी पीठ को सहला रहे थे मगर इस बार साथ में खुशी के आंसू भी थे।।सबके साथ मैं भी खुश थी आराम से नई बहु रानी के हाथों में इठला रही थी।