यह सुबह से बारहवाँ  फोन था जिस पर झुँझलाता हुआ जवाब मिला था जिसने मोहित का न सिर्फ मन खराब कर दिया बल्कि उसे गहराई तक निराश भी कर दिया। लोग तमीज से बात नहीं कर सकते फोन ही तो किया है कोई गला तो नहीं पकड़ लिया ? दो मिनट फोन पर बात करने का भी समय नहीं होता है क्या ?बात ही तो की है पूछा ही है कोई जबरदस्ती जेब में तो नहीं ठूँस दिया। बात करने में चिढ़ते तो ऐसे हैं जैसे दो मिनट नहीं उनकी संपत्ति चुरा ली हो। ऐसे मेसेज देखते घंटों निकाल देंगे लेकिन बात करते हुए इतने व्यस्त हो जाएंगे जैसे एक मिनट में लाखों-करोड़ों के बिजनेस का नुकसान हो गया है। हाथ में संभावित कस्टमर्स के लिस्ट को खिन्न भाव से घूरते मोहित के दिमाग में उथल-पुथल चल रही थी। दिमाग कह रहा था कि मोहित छोड़ यह सब तो रोज ही होता है क्यों मूड खराब करता है, और दिल अगला फोन लगाने को तैयार ही नहीं था। कितनी बदतमीजी कितनी बेइज्जती सहे वह ? अगले फोन में कौन सभ्य आदमी  मिल जाएगा इससे थोड़ा कम या ज्यादा बदतमीज होगा और क्या ?
मोहित कश्मकश में था बार-बार आगाह करता दिमाग अब धमकी देने लगा कोशिश करते रहो महीने का आखिरी सप्ताह है टारगेट पूरा करना है अगर वह नहीं हुआ तो बॉस इन कस्टमर से भी ज्यादा बदतमीजी से बात करेगा। वह तो इतना जाहिल है कि भरी मीटिंग में दूसरों की उपस्थिति की भी परवाह नहीं करेगा। कस्टमर तो फोन पर है वह जो कहता है उसके और मेरे बीच की बात है जो किसी और को पता नहीं चलती। उसे सुनकर किसी के होठों पर तिरछी मुस्कान और आंखों से इशारे नहीं होते। सोच सोच कर मोहित का मन खिन्न होता जा रहा था आगे और फोन करने की उसकी इच्छा दम तोड़ती जा रही थी।
“मोहित सर” प्यून ललित की आवाज ने उसे इस द्वंद से बाहर निकाला। उसने सिर उठाकर देखा ललित ने तख्ती में लगा कागज उसकी ओर बढ़ा दिया। कागज पर नजर डालते ही उसके मुँह से निकला ओ शिट आज 25 तारीख है मीटिंग है। मोहित ने अपना हाथ माथे पर मारा तो ललित मुस्कुरा दिया। अपनी मुस्कान दबाते हुए उसने हमदर्दी जताते हुए पूछा “कितने बच्चे हैं सर?”
“अरे यार अभी तो बहुत बचे हैं और दिन भी सिर्फ  छह बचे हैं। बॉस तो आज खा जाएगा। ” मीटिंग के नोटिस पर दस्तखत कर तख्ती वापस लौटाते हुए मोहित ने पूछा “किसके सबसे ज्यादा हुए ? बाकियों के क्या हाल हैं ?”
ललित ने धीमे स्वर में मुस्कुराते हुए कहा “सभी के एक जैसे हाल हैं सर सबकी बारह बजी हुई है और बॉस आज थोड़े खराब मूड में है।”
ललित की आखिरी बात ने मोहित के तनाव को और बढ़ा दिया वह टेबल पर रखी संभावित कस्टमर्स की लिस्ट में नाम और नंबर देखकर अगला फोन कैसे किया जाए यह ढूँढने लगा। एक बड़ी प्राइवेट कंपनी के इंश्योरेंस पॉलिसी विभाग में यह हर रोज का नजारा था। अपने-अपने क्यूबिकल में बैठे कर्मचारी यूँ तो एमबीए करने के बाद एक आकर्षक पदनाम वाली अच्छी नौकरी पर थे लेकिन उनका काम सड़क किनारे रेहड़ी लगा कर ग्राहकों को आवाज लगाकर आकर्षित करना और अपना माल या  इंश्योरेंस पॉलिसी बेचना भर था। हर एजेंट के पास यहाँ वहाँ से जुटाए नाम और नंबर की एक लिस्ट होती है जिन्हें फोन करके उनसे बात करके उनकी जानकारी हासिल करने की कोशिश और फिर उन्हें इंश्योरेंस पॉलिसी बेचने की कवायद। हर महीने के शुरू में टारगेट देने के लिए और आखिरी सप्ताह में सुस्त हो चले घोड़ों को हड़काने के लिए मीटिंग होती है। इस आखिरी हफ्ते की मीटिंग में साम दाम दंड भेद किसी भी चाबुक का प्रयोग किया जा सकता है। इसका  सिर्फ एक लक्ष्य होता है ज्यादा से ज्यादा कस्टमर लाना इंश्योरेंस पॉलिसी बेचना और कंपनी का टर्नओवर बढ़ाना। इसी पर हर एजेंट का इंक्रीमेंट इंसेंटिव तय होता है। साल के आखिरी हफ्ते में हर जवान को अपना पूरा दमखम लगाकर अपने लक्ष्य को पाना है लेकिन फोन पर कस्टमर का अपमानजनक व्यवहार उनका चिल्लाना गालियाँ देना उनकी हिम्मत हौसले को तोड़ देता है और उन्हें जैसे जैसे आगे बढ़े वैसे वैसे लक्ष्य भी आगे बढ़ता नजर आता है।
मोहित ने सिर को झटका बॉटल से थोड़ा पानी पिया और लिस्ट लेकर निशान लगाने लगा कि अभी किस-किस को फोन करना है। मीटिंग शुरू होने में डेढ़ घंटा है तब तक दो चार लोग तो मिल जाएँ ताकि मीटिंग में कह सके कि मीटिंग फिक्स हो चुकी है।
मीटिंग शुरू हुई इक्का-दुक्का ही चेहरे ऐसे हैं जिन्होंने संभावित डाँट के डर पर काबू पा लिया था लेकिन उनके भी दिल में धुकधुकी तो है ही। बॉस लिस्ट लेकर खड़े हैं उनके चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें हैं जो किसी कुशल चितेरे द्वारा उकेरी गई हैं। कमरे का तापमान बढ़ने लगा कुछ एजेंट अपनी टाई की गांठ ढीली कर थोड़ी हवा लगने का रास्ता बनाना चाहते हैं लेकिन उंगलियों को गांठ में फंसा कर इधर-उधर हिला कर छोड़ देते हैं। वे जानते हैं कि यह गांठ आसानी से ढीली नहीं हो सकती। बॉस ने एक-एक नाम के साथ फजीहत शुरू कर दी सब चुपचाप सिर  झुकाए नजरे किसी से मिलने से बचाते हुए दम साधे एक एक बात से खुद पर होने वाले प्रहार का आकलन कर रहे थे। एक एक की लानत मलामत करने के बाद बॉस ने सब का मनोबल बढ़ाने के नुस्खे बांटना शुरू किए। कैसे फोन करना है कैसे बात करनी है आवाज में कितना उत्साह होना चाहिए कितनी गंभीरता होनी चाहिए जैसी वही बातें जो पहले भी सैकड़ों बार बताई जा चुकी थी।
मीटिंग खत्म होने के बाद सभी पहले से ज्यादा हतोत्साहित है “पहले बॉस से गाली खाओ फिर क्लाइंट से गाली खाओ” मोहित बड़बड़ाया। साथ चलते सहकर्मी अनुज ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा निराश न हो प्यारे हमें यही गाली खाने की तनखा मिलती है इंसेंटिव मिले ना मिले घर का चूल्हा जलता है दाल रोटी तो मिल ही जाती है। चल चाय पी कर आते हैं फिर शुरू करते हैं।
एक के बाद एक फोन लगाने का सिलसिला शुरू हुआ तीन चार फोन के बाद ही मोहित निराश होने लगा। उसे लगने लगा कि दुनिया निहायत बदतमीज बदमिजाज लोगों से भरी पड़ी है लोगों में सभ्यता बिल्कुल खत्म हो चुकी है और कोई किसी की परेशानी समझने को तैयार ही नहीं है। उसका मन हो रहा था कि वह भी किसी को उसी बदतमीजी से जवाब दे दे। अब किसी ने एक शब्द भी उल्टा-पुल्टा कहा तो मैं साले को अच्छा सुनाऊँगा निकाल दूँगा सारी भड़ास फिर जो होगा सो होगा साला इस टेंशन से तो मुक्ति मिलेगी। दिमाग पक गया है लोगों की बकवास सुनते।
यही सोचते सोचते मोहित ने अगला नंबर डायल किया।
हेलो  एक महिला स्वर उभरा।
“हेलो मैम मैं मोहित शर्मा बोल रहा हूं प्लान इंश्योरेंस कंपनी से,  मैम कैसी हैं आप ?”
“मैं बढ़िया हूँ , कहिए ?”
“मैम क्या अभी आपके कोई इंश्योरेंस इन्वेस्टमेंट प्लान चल रहा है मैम अभी कुछ अच्छे टैक्स सेविंग प्लांस आए हैं जो आपको बताना चाहता हूँ। मैम कब मिल सकता हूँ आपसे ?” मोहित ने एक साँस में सब कह दिया। लगभग 50 फोन के बाद यह पहला फोन था जब कोई संभावित कस्टमर ठीक से बात कर रहा था।
“देखिए इस फाइनेंशियल ईयर के लिए तो हमारी प्लानिंग हो चुकी है,” उस तरफ से आवाज आई लेकिन अभी भी उसमें कोई झुंझलाहट नहीं थी।
“मैम फिर भी प्लान्स काफी अच्छी है आप एक बार देख लें आपसे एक बार मिल सकता हूँ ?  मैम जब आप कहें कल शाम को संभव है ?”
“देखिए मेरे इस साल के इन्वेस्टमेंट हो चुके हैं सिर्फ प्लान्स देखने के लिए मैं आपको बुला लूँ जब कि अभी महीने का और साल का आखिरी हफ्ता है और मैं जानती हूँ कि आप पर टारगेट अचीव करने का प्रेशर होगा। इस समय आपका पल पल कीमती है ऐसे में आपका समय बर्बाद नहीं करना चाहती। मुझे समय देने में दिक्कत नहीं है लेकिन मुझे पता है कि अभी कोई इन्वेस्टमेंट करने की कोई गुंजाइश नहीं है।” उस तरफ से बड़े समझाने वाले अंदाज में मीठी सी शांत आवाज गूंजी।
मोहित उनकी बात सुनकर एक सेकंड तो सन्न रह गया इतने सालों में शायद यह पहली बार था जब कोई कस्टमर उसकी परेशानी उसके काम और टारगेट के प्रेशर की बात कर रहा था। इतने अच्छे से उससे मना कर रहा था। अब तक तो फोन पर चिढ़चिढ़ी खिजियाई आवाज ही सुनी थी या आधी अधूरी बात सुनकर भुनभुनाते  हुए फोन पटकने वाले। कभी कभी कोई मना करने वाले अपशब्दों का प्रयोग भी कर देते हैं तो कभी-कभी बेहद रूखे अंदाज में बोलते हैं।
उसका मन गदगद हो गया उसने हँसते हुए कहा “थैंक्यू मैम आपने हमारी परेशानी और टारगेट के प्रेशर को समझा। मैम आप जॉब करते हैं ?” कुछ देर और बात करने और आगे फिर पालिसी बेचने की संभावना टटोलते उसने पूछा।
“मैं जॉब तो नहीं करती लेकिन महीने के अंत के टारगेट के प्रेशर को समझती हूँ। ऑल द बेस्ट।” वहाँ से खनकती आवाज आई।
“थैंक यू मैम थैंक यू वेरी मच” मोहित का मन खिल उठा उसने भी मुस्कुराते हुए फोन बंद कर दिया। इस नंबर पर कॉल करने पर भी उसे कोई संभावित कस्टमर नहीं मिला उसे मिलने के लिए समय भी नहीं दिया गया वह अभी भी अपने टारगेट से उतने ही दूर है जितना फोन करने से पहले था लेकिन अब उसकी सारी बेचैनी खीज अवसाद अपमानित होने के भाव तिरोहित हो चुके हैं वह प्रफुल्ल मन से फिर फोन लगाने लगा।
उपन्यास 'छूटी गलियाँ ' कहानी संग्रह परछाइयों के उजाले और कछु अकथ कहानी प्रकाशित। मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन इंदौर इकाई की सचिव। मातृभारती पर पहले ई उपन्यास 'आईना सच नहीं बोलता' की सहलेखिका। संपर्क - kvtverma27@gmail.com

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