आचार्य मूसा खान अशान्त बाराबंकवी
1- ग़ज़ल
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हिज़्र की रातों में आया लुत्फ इक मुद्दत के बाद,
ज़ीस्त के लम्हो में आया लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद ।।
याद में तेरी बहाकर अश्क़ मैं जीता रहा,
मुझको बरसातों में आया लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद ।।
बचपने में दिल मेरा माएल हुआ कब उस तरफ,
रँग की बातों आया लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद ।।
दास्ताने इश्क़ लिख़ने में गवाँ दी ज़िन्दगी,
एक एक मिसरे में आया लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद।
कहने को अशआर मैं कहता रहा मूसा तमाम,
पर मेरी ग़ज़लों में आया लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद।।
*2* ग़ज़ल
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मज़बूरियों से इस क़दर मजबूर हो गए ,
होकर क़रीब आपके हम दूर हो गए ।।
मेरी वफ़ा का और न अब इम्तहान लें,
इतना किया सफ़र है कि हम चूर हो गए।।
काजल तुम्हारी आंख का बनने के वास्ते,
सारे शहर में देखिए मशहूर हो गए ।।
कमबख्त मौत भी तो मयस्सर नहीं मूसा,
हम ज़िन्दगी के नाम पर नासूर हो गए।।
*3* ग़ज़ल
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कौन जाने फिर क़दम अपने किधर हो जाएंगे,
दर तिरा छोड़ा अगर तो दर बदर हो जाएंगे।।
तुम करो कितनी भि कोशिश बस मिटाने को हमें,
तीर तो सारे तिरे खुद बेअसर हो जाएंगे ।।
आज कियूं हर आदमी में बस गई ऐंठन बहुत,
जानता जब खूब है ज़ेरो ज़बर हो जाएंगे।।
सच है ये किरदार के पुख्ता अगर
तो निगाहे रब में वो मिस्ले गुहर हो जाएंगे।।
जो किया करते थे क़त्ल खू औ रहजनी ,
क्या खबर थी आज वो ही राह बर हो जाएंगे।।
यूँ ही जो मूसा अदब की खुदमते करते रहे,
तो जहाने इल्म के तय है अमर हो जाएंगे
सम्पर्क सूत्र:- आचार्य मूसा खान अशान्त बाराबंकवी ,उत्तर तोला,नई बस्ती ,बंकी ,बाराबंकी उत्तर प्रदेश मोबाईल न 7376255606