ज़िक्र बारिश के कहर का हो गया है अब पुराना
ज्यों किसी भी हादसे का बीत जाता है ज़माना
चिपचिपी सी जो नमी थी अब हवा में घट गई है
स्वेद सूखा है जरा सा, ऊब भी कम हो गयी है
गर्मियों के बाद जीने का मिला है कुछ बहाना
जिंदगी सा लग रहा है, क्वार का मौसम सुहाना
छा रहे बादल कभी तो, धूप खिलती है कभी
बारिशों के तेज़ छींटे पड़ रहे जब-तब कहीं
चल रही पुरवा कभी पछुआ कभी दखिनी हवा
मन हिलोरें ले रहा ज्यों स्वप्न से जागृत हुआ
बहुफलक स्फटिक सा है जुगनुओं का जगमगाना
जिंदगी सा लग रहा है, क्वार का मौसम सुहाना
आसमाँ की गोद में कुछ मेघ घुटनों दौड़ते यों
याद बचपन की बुझे दिल में, उमंगे भर रही ज्यों
बादलों के साथ सूरज झाँकता-छिपता रहा है
धूप, छाया और वर्षा साथ में करता रहा है
अप्रतिभ हम देखते हैं प्रकृति का यूँ बदल जाना
जिंदगी सा लग रहा है, क्वार का मौसम सुहाना
धान थोड़े पक गये हैं, कास पुष्पित हो रहे हैं
मेघ, वर्षा, दादुरों के स्वर तिरोहित हो रहे हैं
चल रही है वायु मध्यम, तीव्र कुछ चलते झकोरे
सूर्य की किरणें गगन पर चित्र रचती हैं अनोखे
लग रहा अद्भुत मनोरम पक्षियों का चहचहाना
जिंदगी सा लग रहा है, क्वार का मौसम सुहाना
रात-दिन के ताप का पारा अस्थिर हो रहा है
ग्रीष्म, वर्षा, शीत का एहसास मिश्रित हो रहा है
इस बदलते क्वार जैसा मास कोई भी नहीं है
उम्र भर इस जिन्दगी की थाह भी कोई नहीं है
इसलिये ही क्वार सा लगता मुझे जीवन बिताना
जिंदगी सा लग रहा है, क्वार का मौसम सुहाना