समीक्षक – रमेश कुमार ‘रिपु’
नये दौर के मिजाज की कहानी है ‘बलम कलकत्ता’। इसलिए वैचारिक विमर्श के साथ स्त्री विमर्श की गुनगुनी धूप स्पर्श करती हैं। गीताश्री की पन्द्रह कहानियों का यह संग्रह औरत की दुनिया की हर दहलीज से ताअरूफ कराती है। कहानियों के मुताबिक आधी दुनिया में इश्क़,मुहब्बत,सेक्स,चाहत और बेवफाई की तहरीरें बदली नहीं है। यानी स्त्री की सारी समस्या का हल,सिर्फ पुरूषों के पास है। कहानी के किरदार नैतिकतावादी लिहाफ से दूर हैं। क्यों कि कहानी के किरदार महानगर के घरों से निकलते हैं। हर कथा की बुनावट अलग किस्म की है। इस वजह से कहानी के जूड़े में सवालों के बेशुमार फूल भी हैं।
संग्रह की तीन कहानियों का मजमूं एक ही है। भंगिमा और तासीर अलहदा है।‘‘अदृश्य पंखों वाली लड़की’’ में लेखिका युवा मन को शादी से पहले लीव इन रिलेशन में रहने के लिए प्रेरित करती हैं। ताकि शादी से पहले लड़का और लड़की एक दूसरे को जान लें। एक नई संस्कृति को जन्म देती है यह कहानी। लेखिका के मुताबिक औरत का वजूद रासायनिक पदार्थ है,जो पुरूष से मिलकर ही अपने को बदल सकती है। सवाल यह है, ऐसा जीवन जीने वाली औरतें फिर यह क्यों कहती हैं,कि पुरूष प्रेम नहीं,सिर्फ सेक्स चाहते हैं?
‘जैसे बनजारे का घर’ के मुताबिक आँखों के रास्ते से दिल तक पहुँचने के लिए लीव इन में रहना उम्दा तरीका है।‘‘मन बंधा हुआ है और जाल में नहीं हूँ’’ कहानी में एक सीख है। आॅफिस में पुरूषों के संग काम करने वाली लड़कियांँ लीव इन में रहने के दौरान अपने प्यार को बचाने के लिए शक की हवा को जिन्दगी में आने न दें। तीनों कहानियों के संवाद में कशिश है। रोमानियत है। भाषा चिरौंजी सी मुलायम और महुए सी नशीली है।
‘उनकी महफिल से हम उठ तो आए’ भावनात्मक कहानी है। मांँ का मन बदल जाने पर घर परिवार को भी बदलना पड़ता है। तेजाब से जली एक लड़की में मांँ को अपनी बेटी का अक्स नजर आने पर वह उसे अपना बहू मान लेती है। इस कहानी का शीर्षक कुछ और होना चाहिए था।‘‘ बाबूजी का बक्सा और गुनाहों का इन बाॅक्स’’कहानी में प्रवाह है, मगर अस्पष्ट है। सातवे दशक की बेबस और वेदना से भरी औरत की कहानी है ‘बलम  कलकत्ता पहुंच गए ना’। अब ऐसी औरतें कहीं नहीं दिखती।
महानगरों में औरत और मर्द के बीच बनते और बिगड़ते रिश्ते के बीच सोहानी हवा के झोके की तरह‘‘वो’’का आना एक आम बात है। कई बार जिन्दगी में बड़ें रोमांचक हादसे होते हैं,खासकर प्यार को लेकर। जो कहते हैं,मुझे कभी इश्क नहीं हो सकता। बरसों बाद जब वो अपने साथी से मिलते हैं,तो मन अनायास उसकी ओर झुकने लगता है। वक़्त और परिस्थितियांँ आदमी को बदल देती है,’सोलो ट्रेवलर’यही एहसास दिलाता है।
‘उदास पानी में हंँसी की परछाइयांँ’’ कथा में समझदार औरतें अपने रिश्ते से खुश नहीं होने के बाद भी जल्दी अपना रिश्ता खत्म करने की नहीं सोचतीं। कोई दूसरा हाथ बढ़ाए तो भी। किसी का साथ भले उदास पानी में हंँसी परछाई सी क्यों न हो। किसी को अपना बनाना है तो उसकी पसंद को जानें और उसे पूरा करने की कोशिश करें। देखना एक दिन वो तुम्हारा हो जाएगा,‘एक तरफ उसका घर’ कहानी यही कहती है।
औरत और पुरूषों के बीच संबंधों की नई बुनावट को जानने और समझने की चाह रखने वालों के लिए ‘बलम कलकत्ता’ कथा शिल्प के स्तर से अच्छी है। वहीं प्रूफ की गलतियांँ, खीर में कंकड़ सी हैं।
किताब – बलम कलकत्ता
लेखिका – गीताश्री
प्रकाशक – प्रलेक प्रकाशन, मुंबई

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.