रश्मि ‘लहर’ के दोहे

गलियाँ सब सूनी पड़ीं, चौराहे भी शान्त. बच्चे गए विदेश में, ममता विकल नितांत. जर्जर होते पट मुंदे, घर सूना दिन- रैन. है खंडहर होता भवन, ढहने को बेचैन. औरों की आलोचना, करते हैं भरपूर. आत्म-मुग्ध होते रहें, रख दर्पण को दूर. अवसादी फागुन मिला, चिंतित मिला अबीर. खूनी होली देखकर,...

दीपमाला गर्ग की कविता – बेटी : हमारा गौरव

बेटियों को शिक्षित बनाओ पर संस्कार भी दो उनको। संस्कार दो न केवल सबका सम्मान करने का बल्कि अपना आत्मसम्मान सुरक्षित रखने का भी। संस्कार दो न केवल बड़ों की सेवा करने का बल्कि उनकी गलत बात को गलत कहने का भी। संस्कार दो परिवार की मान मर्यादा को बनाए रखने का पर साथ साथ अन्याय...

कमलेश कुमार दीवान की कविता – बसंत

आया है जब जब बसंत ऋतुओं के क्रम या है अंत आया है जब जब बसंत। आम्र बौर लदा-लूम हुए हैं महुआ झर -झर झरने को है हर पात पात चिंतित लगता पीला पड़ कर गिरने को है नदियां सिकुड़ी सिमटी सी है जल झरने मर मिटने को है ज्यों हवा चले पुरवाई...

अनामिका की कविता – शीरो (लखनऊ के शीरो कैफे की मलंग, कर्मठ नायिकाओं को समर्पित कविता)

थोड़ा मारा, रोए! बहुत मारा, सोए! सोकर तो ताजदम हो ही जाती है यह औरत की जात! हंस देती है और जिदियाकर बढ़ जाती है आगे उसी राह पर जिससे उसको धकियाया गया था। गांधी ने ‘सविनय अवज्ञा’ सीखी थी औरतों से ही तो। ‘रंगभूमि’ वाले सूरदास बाबा की शीतल झोपरिया हैं औरतें, जितनी...

सूर्यकांत शर्मा की कविता – आँखें

अनंग ख़्वाब की प्यास जगाती आँखें। अभिसार आमंत्रण देती आँखें। आप्त काम सी काम कमान आँखें। भविष्य आंकती आँखें जीवन बरगद ताकती आँखें। जीवन समर झांकती आँखें। सृजन विहंगम दृश्य निहारती आँखें। साहिर की सहर का इंतज़ार करती आँखें। आधी आबादी को समान अधिकार का सपना संजोती आँखें। कितने कितने सपनों को संवारती आँखें। आँखों को आँखों से बुहारती आँखें। आँखों ही आँखों में समझाती आँखें। सूर्यकांत...

डॉ. शैलेश शुक्ला की कविताएँ

1 - गीत : 'राम आए हैं' राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं। राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं। तम घोर था निराशा का दीप बुझा...