रत्नाकर इनको जो देता है ,
झोली भर -भर लाती हैं।
सागर तट पर फैले मिलते हैं।
घोंघे, शंख, मोतीऔर सीपियां ।
लहरें नाचें ता ता थैया
शोर मचाए डोले नैया ।
ज्वार उठता जब चांद बढ़ता. है।
रूप इनका विकराल बनता है
घटता जब चांद, चुप हो जाती हैं।
सागर सीने लग करती निंदिया ।
लहरें नाचें ता ता थैया ।
शोर मचाएं डोले नैया ।
जीवन सागर में भी तो यूं
मन की कश्ती बढ़ती रहती है।
वह भी सागर सा गहरा होता है।
उठती है भावों की लहरिया।
लहरें नाचें ता ता थैया।
शोर मचाएं, डोले नैया।