होम बाल साहित्य गोविन्द भारद्वाज की बाल कविता – जंगल में मंगल बाल साहित्य गोविन्द भारद्वाज की बाल कविता – जंगल में मंगल द्वारा गोविन्द भारद्वाज - September 6, 2020 283 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet पंखों को फैलाकर उपवन में, अब नाचें मोर। नीले नीले अम्बर में, घटा घिरी घनघोर। पायल बजा रही है बूंदें, पेड़ छेड़ते राग। चिड़ियों करतीं चीं चीं चूं चूं , कांव कांव करें काग। कोयल संग पपीहा गाए , झूम उठे वन- उपवन। बादल की बारात सजी नभ , खेत बने हैं दुल्हन। दौड़ रहे हैं नाले पोखर , झूमें ताल तलैया। पकड़म पकड़ी खेलें कूदें, बगुले और मछैया। गली-गली टर्राते कूदें, फुदकें मेढ़क भाई, धरती के सुंदर आंचल में, कितनी रौनक छाई। कल-कल बहती नदियां सारी, हरदम शोर मचाती। जंगल में लौटी हरियाली, देख दौर बरसाती। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं उषा साहू की बाल-कहानी – अप्रैल और त्यौहार उषा साहू की बालकथा – अगस्त और त्यौहार उषा साहू की बाल-कहानी – मजदूर दिवस कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.