Saturday, July 27, 2024
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गोविन्द भारद्वाज की बाल कविता – जंगल में मंगल

पंखों को फैलाकर उपवन में,
अब नाचें मोर।
नीले नीले अम्बर में,
घटा घिरी घनघोर।
पायल बजा रही है बूंदें,
पेड़ छेड़ते राग।
चिड़ियों करतीं चीं चीं चूं चूं ,
कांव कांव करें काग।
कोयल संग पपीहा गाए ,
झूम उठे वन- उपवन।
बादल की बारात सजी नभ ,
खेत बने हैं दुल्हन।
दौड़ रहे हैं नाले पोखर ,
झूमें ताल तलैया।
पकड़म पकड़ी खेलें कूदें,
बगुले और  मछैया।
गली-गली टर्राते कूदें,
फुदकें मेढ़क भाई,
धरती के सुंदर आंचल में,
कितनी रौनक छाई।
कल-कल बहती‌ नदियां सारी,
हरदम शोर मचाती।
जंगल में लौटी हरियाली,
देख दौर बरसाती।
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