अच्छी कविता है आपकी प्रदीप जी !देश!!
देश का नाम और वह कविता अच्छी ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता।आपने एक बात बहुत अच्छी कही है कि आज ऐसा समय आ गया है कि देश को सिर्फ भौगोलिक सीमाओं में ही बाँधकर नहीं रखा जा सकता हर देश के लोग दूसरे देशों में जा रहे हैं बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ
*जहां जहां भी पहुँच गए हैं*
*अपने प्यारे भारत वासी*
*वहीं मिलेगी तुम को देखो*
*भारत की असली झांकी*
*पहुँच गया है परदेसों में*
*देश प्रवासी की बाहों में*
*देश का अपनापन पाओगे*
*प्रांत प्रांत की भाषाओं में*
यह कविता पुरवाई के लिए तो बिल्कुल फिट बैठती है।
बहुत-बहुत बधाइयाँ आपको इस कविता के लिए।
अच्छी और सार्थक रचना।
अच्छी कविता है आपकी प्रदीप जी !देश!!
देश का नाम और वह कविता अच्छी ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता।आपने एक बात बहुत अच्छी कही है कि आज ऐसा समय आ गया है कि देश को सिर्फ भौगोलिक सीमाओं में ही बाँधकर नहीं रखा जा सकता हर देश के लोग दूसरे देशों में जा रहे हैं बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ
*जहां जहां भी पहुँच गए हैं*
*अपने प्यारे भारत वासी*
*वहीं मिलेगी तुम को देखो*
*भारत की असली झांकी*
*पहुँच गया है परदेसों में*
*देश प्रवासी की बाहों में*
*देश का अपनापन पाओगे*
*प्रांत प्रांत की भाषाओं में*
यह कविता पुरवाई के लिए तो बिल्कुल फिट बैठती है।
बहुत-बहुत बधाइयाँ आपको इस कविता के लिए।