ये कहानी है गोरी और बरसात की जिसमें एक बालम भी है। जब से हमारी नायिका अर्थात गोरी ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा उसे मानो बरसात से ही मुहब्बत हो गईजब भी वो रंगोली या चित्रहार में बरसात का गाना सुनती तो उसका मन कल्पना के आकाश में उड़ान भरने लगता ..वो खुद को कभी ‘आज रपट जाएँ’ की स्मिता पाटिल तो कभी ‘रिमझिम गिरे सावन की’ मौसमी चटर्जी टाइप फील करती ..जैसे जैसे गोरी बड़ी होने लगी उसका सपना भी बड़ा हो रहा था.. बरसात में अपने सपने के राजकुमार संग भीगने का सपना..! 
हमारी संस्कारी घर की गोरी बरसात में रेन डांस के सपने को हकीकत में बदलने के लिए अपने रियल लाइफ हीरो यानी बालम का इंतजार करने लगी । उसका एक ही सपना था कि शादी होगी तो अपने बालम के साथ बरसात वाला गाने रोमांटिक डांस करने का
वो सपना देखती सिफॉन की साड़ी में बालम संग ‘लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है’ की श्रीदेवी बनकर भीगे। सुहागरात के दिन ही उसने अपने बालम को अपनी ख्वाहिश सुनाई और अपने बालम से वादा ले लिया कि सावन के महीने में वो ऑफिस से छुट्टी लेगा ताकि बालम की दो टकिया की नौकरी के चक्कर में उसका लाखों का सावन ना चला जाए । बालम भी काफी चतुर निकला उसने भी गोरी से बदले में चाय और गरमागरम पकौड़ों का वादा ले लिया . आखिरकार नाच गा कर भीग भाग कर भूख और सर्दी दोनों लगेगी ना

गोरी ने शिफान की साड़ी के साथ मैचिंग ब्लाऊज और ज्वेलरी सब तैयार कर ली और सावन के आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी और मन ही मन गुनगुना रही थी ”अबके सजन सावन में”…. आखिरकार सावन भी आ ही गया ..बस नहीं आ रहा था तो वो था वो पल जिसका इंतजार गोरी वर्षों से कर रही । रोज मौसम विभाग की भविष्यवाणी होती ..कि अब मानसून आया तब मानसून आया… 
टीवी पर हर तरफ बाढ़ की खबर आ रही थी. राजस्थान तक पानी पानी था. बेचारी राजधानी में रहने वाली गोरी नित बादलों की आवाजाही पर नजरें टिकाए हसरत भरी निगाहों से उनके बरसने का इंतजार करती और बादल मानो उसके सपनों को मुंह चिढ़ा कर ऐसे चले जाते जैसे उसका छोटा भाई बचपन में चिढ़ाता था। बादल शहर के ऊपर ऐसे चक्कर लगा रहे थे मानो पुलिस गस्त दे रही हो । गोरी उदास हो कभी असमान को तो कभी अपनी शिफान की साडी को देखती ..और मन ही मन गाती “नैनो मैं बदरा छाये ,बिजली सी चमके हाय”
बरसात के आने की उम्मीद में पकौड़ों के लिए सब्जियां और बेसन भी तैयार करती पर कमबख्त बादल ना हुए मानो शादी में रूठे जीजा की तरह थोबड़ा फुलाए घूमते ही जा रहे थे  । गोरी निराश होने लगी वो हर वक्त मोबाइल में मौसम जानकारी लेती..मोबाइल में भी हर दिन बादल और बूंदे टपकती दिखती जिन्हें देख गोरी का मन प्रसन्न हो उठता पर सच्चाई कुछ और ही होती, पूरा हफ्ता इंतजार में निकल जाता पर  सिवाय माथे के कहीं बूंद ना गिरती
टीवी पर न्यूज चैनल लगा कर ख़बरें भी सुनती..ऐसे ही  एक दिन एक खबर ने मानो उस पर वज्रपात कर दिया जब टीवी पर एक छोटी आँख वाले मौसम के जानकर ने कहा कि अलनीनो की वजह से मानसून कमजोर हो गया है और गोरी के शहर पर मेहरबान होने के चांस कम है ..उनके अनुसार ये सब ग्लोबल वार्मिंग का असर था। बेचारी गोरी अपने सपने को यूं टूटता देख शिफान की साड़ी को सीने से लगाए “मेरे नैना सावन भादों” गा रही थी और मन ही मन ग्लोबल वार्मिंग और अलनीनो को कोस रही थी

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