बहुत सालों तक विकसित देश में रहने के बाद वे काफी डिसिप्लिन टाइप इंसान में बदल चुके थे जैसे कूड़ा कूड़ेदान में ही डालते,इधर उधर थूकने और अन्य हरकतों से परहेज करते, गाड़ी सही जगह पार्क करते, यातायात के नियमों को मानते और तो और घर से निकलने से पहले मौसम विभाग की चेतावनी जरूर देखते और उसके अनुसार ही चलते। रिश्तेदार और पड़ोसी उनको इतनी तमीज से सब कुछ मानते, देख हंसते और कहते कि अजी भाई साहब कहां इन चक्करों में पड़ रहे हैं ? ये अपना देश है, यहां सबकुछ चलता है, मस्त रहिए और जहां मर्जी थूकिए जहाँ मर्जी मू… हाहाहा अपनी ही सड़के हैं। फिर एक रिश्तेदार जी बोले कल सुबह आइए गप शप के साथ खाना पीना भी होगा।
“जी वो कल तो बहुत कोहरा रहने वाला है तो सुबह तो मुश्किल होगी..” भाई साहब ने कहा।
“अरे किसने कह दिया ?आप क्या ज्योतिष हैं ? इतनी बढ़िया हवा है कोहरा कैसे होगा” रिश्तेदार जी ने उन्हें असल हालत से रूबरू कराने का प्रयास किया।
“जी वो मैने मौसम विभाग की चेतावनी पढ़ी थी’ उन्होंने शांति पूर्वक जवाब दिया।
‘अजी कहां चक्कर में पड़ रहे हैं ? आपका देश नहीं है जहां की भविष्यवाणियां सच हों। ये विकासशील देश है, अभी इसकी भविष्यवाणी भी विकसित होने की राह पर है, इसलिए अभी त्रुटिहीन रिपोर्ट नहीं आती । हाँ कई बार सही होती भी हैं। आप देखिएगा सुबह धूप निकलेगी, आप मस्त रहिए ।” रिश्तेदार जी ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास किया, पर भाईसाहब के मन में तो गाना बज रहा था – “दिल है कि मानता नहीं”
सो रिश्तेदार जी उनके भरोसे को तोड़ने में नाकामयाब ही रहे।
भाई साहब सुबह उठे तो सच में मौसम साफ था पर उनकी इतने सालों की आदत छूटना तो कठिन था । एक दिन उन्हे जरूरी काम से निकलना था। भारी बरसात की भविष्यवाणी सुनकर उन्होंने रेन कोट धारण किया और निकल पड़े।
रास्ते में लोग पहले उन्हें, उसके बाद आसमान को देखते फिर मुसकुरा देते । एक दो तो बोल भी गए बादलों को देखकर तो नहीं लगता बरसात होगी ।भाई साहब मुसकुराए और ऐसे देखा मानो मन में कह रहे हो अजी हमने भविष्यवाणी पढ़ी है। खैर भाई साहब पूरे दिन रेनकोट और छाता साथ लेकर घूमते रहे । गर्मी में पसीना आ गया पर बरसात की एक बूंद ना पड़ी । पसीने में लथपथ होने लगे तो रेन कोट उतार कर चल दिए लेकिन मौसम विभाग पर भरोसा कायम रहा। कुछ महीनों के लिए ही आए थे सो काम काज और मिलना जुलना निपटाने के चक्कर में रोज ही निकलना जरूरी था और निकलने से पहले पूर्वानुमान पढ़ना भी खैर
अगले दिन धूप की भविष्यवाणी थी । भाई साहब पूरे आत्मविश्वास के साथ निकल गए । अभी आधे रास्ते ही पहुंचे होंगे कि अचानक तेज बरसात ने उन्हे भिगो डाला । बचते बचाते किसी छज्जे के नीचे शरण ली तो उनका ध्यान गया कि आज बहुत से लोग छाता लेकर ही निकले थे । बेचारे जैसे तैसे घर वापस आ गए । अब उनका विश्वास मौसम विभाग पर से थोड़ा हिलने लगा था । अब उन्हें लगने लगा था कि मौसम विभाग सिर्फ अनुमान लगाता है, उससे ज्यादा ठीक तो यहां के लोग आसमान की तरफ देखकर मौसम के बारे में बता देते हैं । लेकिन भाई साहब की भविष्यवाणी पढ़ने की आदत थी जिससे मुक्त होना आसान नहीं था। अब बदलाव ये आया था कि पहले वे भविष्यवाणी पढ़ते और उसके बाद किसी से कंफर्म करते क्या सच में यह भविष्यवाणी सच होगी ? भविष्यवाणी अक्सर फेल होती । उस दिन भी एक भविष्यवाणी थी बहुत तेज आंधी और तूफान आएगा । भाई साहब को किसी कार्यक्रम में जाना जरूरी था उन्होंने उस भविष्यवाणी को नजरअंदाज किया और निकल गए । इस बार उन्होंने खुद आसमान की तरफ देखा और यहाँ के स्थाई निवासियों की तर्ज पर खुद से ही बोले ‘आसमान साफ है कुछ नहीं होगा’ और आत्मविश्वास से लवरेज हो अपनी राह पर निकल पड़े , वैसे भी अब तक हर पूर्वानुमान तुक्का ही साबित हुआ है ।
अभी वे अपने गंतव्य पर लगभग पहुँचने ही वाले थे । मेट्रो से उतर कर कुछ दूर पैदल ही तो चलना था कि हवा तेज हो गई और अचानक आंधी में बदल गई । हर तरफ धूल का गुबार था जिसकी वजह से उनकी आँखे खुल नहीं पा रही थी । हवा में इतनी ताकत थी कि उनके कदम डगमगाने लगे । जैसे तैसे खुद को संभालते किसी राहगीर की मदद से वे एक बिल्डिंग में घुस गए । उसके बाद तो तेज तूफान आंधी के साथ बिजली देवी भी भाग गई और हर तरफ अंधकार हो गया । भाई साहब बेचारे परेशान कभी भविष्यवाणी को पढ़ते तो कभी बाहर तूफान को देखते और सोचते ‘हाय रे यह मौसम विभाग तभी सच क्यों होता है जब हम उसे झूठ मान लेते हैं।‘