सर्दी और हरियाली का आपस में ऐसा रिश्ता है जैसे सर्दी और कोहरे का या जैसे जय और वीरू का, एक के साथ दूसरे का आना तय होता है। इधर सर्दी ने दस्तक दी और उधर मंडी से लेकर थाली तक हरियाली ही हरियाली नजर आती है हर तरफ एक ही रंग देख लगता है मानो पडौसी देश का झंडा इधर ही घूमने निकल आया हो।
हरियाली की मारी भारतीय नारी हर तरफ हरियाली से घिरी नजर आती है ..सोसाइटी का पार्क हो ,या दरवाजे की खाट, आंगन का तख्त हो छत की चटाई हर जगह सिर्फ मटर छीलती, मैथी पालक तोड़ती नारी ही नजर आती है।
जिस सरसों के साग और मेथी के परांठे को परिवार के लोग चटखारे लेकर चट कर जाते हैं. उसे सम्भालने में बेचारी औरतों की मैनीक्योर की हुई उंगलियां बदसूरती का शिकार बन जाती हैं, सर्वाइकल के दर्द से गर्दन टेड़ी हो जाती है, धूप हो या 2 डिग्री वाली सर्दी जब लोग रजाई से हाथ भी नहीं निकाल पाते तब घंटों लगाकर हरियाली संवारने के चक्कर में बेचारी कभी अफ्रीकन लुक का शिकार हो जाती हैं तो कभी ठंडी सब्जियों संग बर्फ सी जम जाती है पर मुई हरी सब्जी इनका पीछा नहीं छोड़ती।
ये सिर्फ हरियाली नहीं बल्कि सबूत है नारी एकता का, अनजान औरतें भी किसी औरत को मैथी बथुआ तोड़ते देख तुरंत हाथ बंटाने लगती हैं ..ऐसा लगता है मानो “ साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाए तो “ गीत इन औरतों को देखकर ही लिखा गया होगा।
ये औरतें हरियाली संग इस मिथ को भी तोड़ती कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है । सर्दियों में धूप में एक दूसरे का दर्द बांटती औरत साथ मिल कर कई किलो मटर के दाने निकाल डालती है, मैथी ,पालक ,बथुआ ,सरसों ,चौलाई ,धनिया, बींस सवारती औरत का दर्द जब हद से गुजर जाता है तो मन ही मन गाती है “हमपे ये किसने हरा रंग डाला मार डाला । सर्दियाँ आते ही परिवार के साथ साथ अखबार वाले भी दुश्मन बने हरी सब्जियां खाने के फायदे गिनाने लगते हैं।
पता नही वे कौन लोग हैं जो प्याज के दाम को रोना रो रहे हैं, औरतें तो हरित क्रांति की मारी कहीं और देख ही नही पा रही। बेचारी नारी का दर्द तब और टीस मारता है जब भर भर कटोरी सरसों का साग और बलिस्त भर बथुए के परांठे चट करने का बाद घर का मर्द कहता है तुम दिनभर करती क्या हो ? और हरियाली की मारी वो नारी गर्दन झुकाए चुपचाप उँगलियों पर बैसलीन मलकर हरियाली और रास्ता गुनगुनाने लगती हैं।