होम कहानी नीलू चोपड़ा की कहानी – रिहाई कहानी नीलू चोपड़ा की कहानी – रिहाई द्वारा नीलू चोपड़ा - July 31, 2022 228 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet जानकी सबको भोजन करवा कर बचा हुआ खाना अपनी थाली में डाल ही रही थी कि दरवाज़े पर आहट हुई। रसोई घर से ही झाँक कर देखा तो पाया देवर महेश बहुत सारा सामान हाथ में लिए चला आ रहा था। भाभी को देख वह रसोई घर की तरफ ही आने लगा जानकी झट से बाहर निकल आई।अपने कपड़ों की सलवटे ठीक करते हुए मन्द मुस्कान से उसका स्वागत करते हुए बोली लला जी,इस वक़्त कैसे ?आज आप दफ़्तर नहीं गए। महेश धीमे स्वर में बोला,भाभी आप अभी यह सामान रख लीजिए। शाम को भैया आएंगे तो आकर पूरी बात बताऊंगा। मैं अभी ज़रा जल्दी में हूँ। हाँ,अम्मा और पिताजी को मेरे यहाँ आने का जिक्र मत करना। ऐसा कह महेश पलट कर जल्दी से चला गया। जानकी उत्सुकता वश पैकेट खोल कर देखने लगी तो दिल में एक हूक सी उठ गई। महेश सभी के लिए बहुत सारे सुंदर और मंहगे कपड़े लाया था। वह सोचने लगी कि जब शाम को उसके पति सुरेश ऑफिस से घर आएंगे तो उन्हें भी इसी अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। वो भी शांत रहने का अभिनय जरूर करेंगे पर उनके दिल के अंदर जो ज्वाला धधकेगी उसे वह जानती थी। उस ज्वाला की तपन उन्हीं तक सीमित नहीं रहता जानकी स्वयं भी इस आग में जलती रहती है। कुछ समय बाद इस आग की लपटों में उनकी दोनों बेटियां भी झुलसने लगेंगी। वो लोग गरीबी की जिस आग में जल रहे थे जो आग उनके अपनों ने ही लगाई थी। वो तो उन्हें गरीबी की आग में झुलसने को छोड़ खुद बच कर निकल गए परन्तु उनका परिवार उसमे जलता ही रह गया। वो रोज़ हीन भावना के सागर में डूबते और रोज़ तैरते रहते। भविष्य में शायद उनकी बेटियों के साथ भी यह इतिहास दोहराया जाएगा जानकी इसी सोच में डूबी,अतीत की किताब के पन्ने पलटने लगी। विवाह से पहले उसके पति सुरेश स्कूल से आ कर नियम से अपने पिता के साथ उनकी किराने की दुकान पर बैठा करते थे। पढ़ाई लिखाई में सुरेश की बहुत रुचि थी। वह मेधावी भी थे। दुकान के बारहवीं कक्षा पास करने के बाद प्रश्न उठने लगे कि पिता राम नारायण जी अकेले इतनी बड़ी दुकानदारी कैसे सम्भालेंगे? इस लिए ज्येष्ठ पुत्र सुरेश की पढ़ाई रुकवा दी गई। न चाहते हुए भी सुरेश को सबकी इच्छा के आगे सिर झुकाना ही पड़ा ।पढाई छोड़ कर वह पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा। छोटा भाई महेश उससे आयु में 5 वर्ष छोटा था छोटा होने के कारण वह सबका लाड़ला था। जिद्दी भी हो गया था। उसकी ज़िद के सामने सब झुक जाते थे। दूसरी ओर सुरेश को समय से पहले ही व्यस्क बना दिया गया। बाप, दादा के समय की किराने की प्रसिद्ध दुकान थी जो अच्छी चल रही थी। दुकान से अच्छी कमाई भी होती। इस कारण उसके पिता राम नारायण जी ने बिना किसी से सलाह मशवरा किए दुकान से होने वाली अधिकांश कमाई एक शानदार हवेली बनाने में खर्च कर डाली । समय का पहिया अपनी गति से घूमता जा रहा था। सुरेश का विवाह जानकी से हो गया। जानकी सामान्य से परिवार की बहुत सुंदर और गुणी लड़की थी। समय बदला देश में उन्नति के नए नए रास्ते खुलने लगे। अब उनकी दुकान के पास ही शानदार जनरल स्टोर और बिग बाज़ार भी खुल गया। राम नारायण जी तो भव्य हवेली बनाने में पहले ही बहुत पैसा लगा चुके थे। सुरेश ने अपने पिता को सलाह दी अब हमें भी अपनी दुकान को नए रंग ढंग में आधुनिक तरीके से बदलने की बहुत आवश्यकता है परन्तु उसके पिता राम नारायण जी बहुत हठी व्यक्ति थे। अपनी हठधर्मिता के समक्ष उन्होंने सुरेश की एक न सुनी। उन्हें अपने पुरखो के द्वारा बनाई दुकान से इतना मोह और प्यार था कि उन्होंने सुरेश के प्रस्ताव को सिरे से ही खारिज कर दिया। वह दुकान में किसी भी तरह की तोड़ फोड़ करना सहन नहीं कर सकते थे। वह अपनी बात पर अड़े रहे। पिता का लिहाज़ करते हुए सुरेश ने भी पिता से कोई बहस या झगड़ा करना उचित नहीं समझा और चुप रह गया । धीरे धीरे उनकी दुकान का काम बिल्कुल मंदा पड़ने लगा अधिकतर ग्राहक नए किराना स्टोर और बिग बाज़ार से सामान खरीदने में रुचि दिखाते थे । कोई पुराना भूला भटका ग्राहक या उधार लेने वाले ग्राहक ही आते थे। सुरेश का विवाह ,जानकी से हो चुका था सुरेश मेधावी होंने के बावजूद भी केवल कक्षा। 12 तक ही पढ़ पाया था। घर का बड़ा बेटा होने की उसे इसकी यह कीमत चुकानी पड़ी थी। कोई चारा न देख कर दुकान बंद करनी पड़ी । पिता ने इस सदमें से खटिया पकड़ ली। अपनी ज़िद के कारण वह दुकान को किराए पर भी चढ़ाने को तैयार न हुए। परिवार का पूरा भार सुरेश के कंधों पर आ पड़ा। महेश अभी पढ़ ही रहा था । ऐसे में सुरेश के हाथ पैर फूल गए। अब वह परिवार कैसे चलाए? उसकी पत्नी जानकी बहुत धैर्यशाली, सुशील और समझदार लड़की थी। उसने सुरेश को कोई नॉकरी खोजने की सलाह दी। सुरेश ने पहले टाइपिंग सीखी। वह रोज़ पड़ोस वालों से अखबार माँग के लाता और जहाँ उसके योग्य रिक्त स्थान होता वहीं आवेदन कर देता। जान पहचान वाले सारे महत्वपूर्ण लोगों की जानकारी भी जुटाई कि कोई जान पहचान वाला ही नॉकरी दिलवाने में सहायता कर दे। इस परेशानी में भटकते हुए एक दिन उसे पिता जी के एक पुराने और ख़ास मित्र मिल गए। वह सुरेश से बहुत स्नेह रखते थे। सुरेश की सारी कहानी सुन उन्होंने बड़ी दौड़ भाग करके अपने प्रभाव से एक सरकारी दफ़्तर में सुरेश को क्लर्क की नॉकरी दिलवा दी। नॉकरी पा कर सुरेश और जानकी ने पिता जी के मित्र को हार्दिक धन्यवाद दिया। वह मंदिर जाकर प्रसाद भी चढ़ा आए। घर में जब पिता राम नारायण जी को उन्होंने यह खुशखबरी दी तो वह खुश होने के जगह बहुत क्रोधित हो उठे। उनका चेहरा तमतमा उठा और बोले तुमने तो अपने खानदान की लुटिया ही डूबो दी। इतनी पीढ़ियों से चल रही दुकान बंद करके अब यह क्लर्की करोगे ? वह भी मेरे पुराने मित्र के आगे गिड़गिड़ा कर भीख माँग कर तुमने यह नॉकरी प्राप्त की है। तुमने हमारी इज्ज़त मिट्टी में मिला दी।सुरेश अपने पिता का बहुत सम्मान करता था कैसे बताता कि उसने पिछले दिनों में कितनी परेशानियों को झेला है। इस लिए चुप रह गया लेकिन सुरेश ने देखा कि पिता आपे से बाहर होने लगे तब वह धीमे स्वर बोल उठा। पिता जी हमारी दुकान बहुत पुराने समय में बनी थी । अब समय की मांग के अनुसार उसमे कुछ सुधार ,कुछ नयापन लाना बहुत जरुरी था। मैंने बहुत बार आपको इस बारे में मशवरा भी दिया परन्तु आपने अपने पूर्वजों की दुकान में किसी तरह की तोड़ फोड़ करने उसका नवीनीकरण करने से इंकार कर दिया आपने सारी कमाई आलीशान हवेली बनाने में लगा दी। यह सुन रामनारायण जी सुरेश से इतने नाराज़ हो गए कि सुरेश से बोल चाल ही बंद कर दी। सुरेश की अम्मा भी तीखे मिज़ाज की महिला थी उन्होंने भी सुरेश को खूब खरी खोटी सुनाई। अब सुरेश अंदर से टूट कर रह गया। जानकी भी दूसरी बार गर्भवती थी। पहली बेटी मायके में हुई थी। अबकी बार जानकी ससुराल में रहना चाहती थी पर सास ससुर की ओर से को सहयोग नहीं मिल रहा था । सुरेश अकेला ही दौड़ भाग कर रहा था। महेश की फ़ीस भरते भरते उसकी कमर टूट गई थी। सारा पैसा घर खर्च में ही खत्म हो जाता। इतना करने के बाद भी सुरेश पिता की नज़रों में एक अपराधियों सी यंत्रणा झेल रहा था । प्रसव का समय पास आ गया था। मजबूर होकर जानकी ने दुखी हृदय से शादी में मायके से मिले झुमके की जोड़ी सुरेश के हाथ में पकड़ा कर प्रसव का प्रबंध करने को कहा। कोई चारा न देख सुरेश ने झुमके गिरवी रख कुछ रुपया जुटाया और जानकी के लिए के प्रसव के ने सारा इंतजाम किया। रिश्ते नाते और पडोसियों के दिखावे के लिए सुरेश की अम्मा को भी अस्पताल जाना पड़ा। प्रसव के बाद जानकी ने जब दूसरी बेटी को जन्म दिया तो सास बौखला गई अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना अस्पताल से घर वापिस आ गई। जानकी नर्सों के रहमों करम पर अकेली पड़ी रही अब महेश की पढ़ाई भी समाप्त हो चुकी थी उसे बड़ी बड़ी कम्पनियों से नॉकरी के मौके मिलने लगे थे। महेश ने वापिस आ कर अपने बड़े भाई सुरेश और जानकी भाभी को जब जीर्ण हीन हालत में पाया तो दंग रह गया। दुकान बंद कर देने की सूचना तो उसे होस्टल में मिल ही चुकी थी परन्तु दुकान बंद होने पर भाई और पिता के बीच हुई भयंकर कलह से वह पूर्णतया अनिभिज्ञ था। सुरेश की माँ आए दिन सुरेश की दोनों बेटियों को बेवजह कोसती रहती। वह कहती बेचारे सुरेश की छाती पर दो दो बेटियों बिठा कर रख दी। यह सुन कर हमेशा शांत रहने वाली जानकी भी तड़प उठी । पहली बार उसकी भी जुबान खुल गई वह बोली अम्मा,मेरी बेटियों को आज के बाद न कोसना वरना परिणाम ठीक न होगा। घर में कलह का बीज अंकुरित हो चुका था। घर में नित्य ही झगड़ा होने लगा था। यह देख पिता राम नारायण जी ने हवेली को दो भागों में विभाजित कर दोनों पुत्रों में बांट दिया वह स्वयं पत्नि सहित महेश वाले भाग में रहने चले गए । पिता का यह फैंसला सुरेश को सहस्र बिछुओं के डंकों जैसे बेध गया । जिस माता पिता की ख़ुशी के कारण पढ़ाई छोड़ी, उनके साथ दुकान सम्भाली, शिक्षा अधूरी रह गई। भाई की पढ़ाई के लिए पत्नी और बच्चों को अभाव में रखा उसी पिता ने आज उसे ही त्याग दिया ? अब बात सुरेश को बहुत आहत कर गया । वह अंदर तक बुरी तरह टूट गया। हठी राम नारायण जी कहीं से भी अपनी गलती मानने या झुकने को तैयार नहीं थे । महेश को उच्च पद पर नॉकरी मिलते ही उनके घर बड़े और अमीर घरों के रिश्तों की बाढ़ सी आ गई । गर्वित अम्मा ने बहुत ठोक बजा कर अपने ही शहर की एक करोड़ पति की बेटी को मंजूरी दी।महेश को भी वह लड़की पसन्द आ गई। सगाई से पहले एक दिन अम्मा ने दोनों घरों को जोड़ने वाले गलियारे में आकर उच्च स्वर में सुरेश और जानकी को सुना कर बोला ” महेश अपनी भाभी भाई को भी समझा दीजो बड़े घर रिश्ता तय हुआ है कपड़े लत्ते सोच समझ के खरीदे कहीं समधियाने में हमारी नाक कटवा दे। मैं तो कहती हूँ उनके लिए तू ही खरीदारी करले दे ।” सुरेश ऑफिस जाने के लिए निकल ही रहा था उसके कानों में भी यह बात पड़ गई। उसने तुरन्त जानकी से सलाह की कि छोटे भाई की शादी का अवसर रोज़ रोज़ तो आएगा नहीं । हम ऑफिस से थोड़ा लोन लेकर शादी के लिए खरीददारी कर लेते हैं। ऑफिस जाकर उस लोन लेने की ओपचारिकता पूरी कर ली । बेटियों के स्कूल से लौटने की आवाज़ सुन कर जानकी वर्तमान में लौट आई। उसने जल्दी से महेश द्वारा लाए पैकेट अलमारी में छिपाने की कोशश की परन्तु बड़ी बेटी गीता की निगाहें सब देख चुकी थी। वह पूछे बिना सब समझ गई। जानकी ने दोनों बेटियों को बड़े अच्छे संस्कार दिए थे। वो अपने माता पिता की तरह ही मेहनती, ईमानदार और स्वाभिमानी लड़कियाँ थी। इसलिये उसने अपनी माँ से कुछ पूछ ताछ नहीं की। जानकी सोचने लगी कि ऑफिस से आकर जब सुरेश को पता चला कि महेश सबके लिए बहुत सारे महँगे कपड़े दे कर गया है तो उसके स्वाभिमान को गहरी चोट पहुँचीं । उसके तुरन्त फोन करके महेश को अपने घर बुलाया। महेश अपने बड़े भाई का बहुत आदर करता था। उसे मालूम था कि आज वह जो कुछ भी है अपने बड़े भी वजह से ही है। महेश के आते ही सुरेश के सब्र का बांध टूट गया भर्राई आवाज़ में उसने महेश से पूछा क्यों महेश क्या तुमने मुझे इतना नक्कारा समझ कर बैठे हो कि मैं तुम्हारी शादी में अपने परिवार के लिए अच्छे कपड़े तक नहीं खरीद पाऊँगा ? महेश को सुरेश और पिता के बीच हुई इस अनबन का कारण नही पता था। उसने सिर नीचा किए कहा भैया, मुझे तो अम्मा ने कहा था मैं इसलिए लाया हूँ। मैं यह आपका अपमान करके के इरादे से नहीं लाया था आरंभ से ही महेश अधिकतर पढाई लिखाई के कारण परिवार से दूर ही रहा ।वह दुनियादारी की बातों से अनिभिज्ञ था। पढाई खत्म होने वापिस आकर भी उसे अधिक बातें समझ नहीं आई । उनकी दुकान बंद हो गई है यह तो उसे पता चल गया था परन्तु दुकान क्यों बंद हुई ?इसके पीछे क्या कारण थे ? सुरेश भाई और पिता की अनबन का क्या कारण था? उसने इन बातों को जानने का प्रयास ही नहीं किया। सुरेश आज उसे यह सारी बातें खोल कर बताना चाह रहा था। बरसों से अपने भीतर दबे रोष को महेश के सामने निकाल कर हल्का होना चाहता। महेश को पिता की ज़िद और एक गलत वजह से हुई नाराजगी का कारण भी बताना चाहता था। उसने महेश के आगे कुर्सी खिसका कर उसे बैठने का इशारा किया । जानकी को महेश के लिए चाय बनाने का आदेश दे दिया। आज सुरेश अपने मन में भड़कते शोलों को बुझाना चाहता था परन्तु वह कुछ कह पाता उससे पहले ही महेश उठ खड़ा हुआ और बोला भैया ,अभी बहुत व्यस्त हूँ ,बहुत काम बाकी है फिर कभी चाय पी लूँगा ऐसा कह कर महेश चला गया। सुरेश और जानकी उसे आवाक देखते ही गए। दोनों बेटियां भी पर्दे के पीछे से सब देख रही थीं। महेश का विवाह शहर के प्रसिद्ध रईस जानकी दास की बेटी से बहुत धूम धाम से सम्पन्न हो गया। जानकी और सुरेश ने बड़े उत्साह से विवाह के हर रीति रिवाज़ को अच्छे से निभाया । महेश की दुल्हन की मुँह दिखाई की रस्म में सब रिश्तेदारों ने बढ़ चढ़ कर उपहार दिए। जानकी और सुरेश ने भी लोन में लिए रुपये से एक सुंदर सोने की अंगूठी महेश की पत्नी पद्मा को पहना दी। पद्मा पढ़ी लिखी अमीर घर की लड़की था । उसने अपनी सुविधा के अनुसार घर में कुछ जरूरी परिवर्तन किए। वह अपने साथ नॉकर चाकर भी लाई थी। पद्मा के दबदबे से राम नारायण जी का चिल्लाना भी धीमा पड़ गया था। महेश आते जाते उन्हें सभ्यता के पाठ पढ़ाता रहता जैसे चाय सुड़क सुड़क कर ,प्लेट में डाल कर मत पीना। पिताजी घर में लूँगी बनियान पहन अधनंगे नही घूमे। अम्मा भी घर के नॉकरों से इज्जत से पेश आएं। कुल मिला कर उन दोनों को एक बनावटी जीवन जीने को बाध्य होना पड़ गया । जहाँ एक ओर पद्मा राजरानी सी बनी ठनी रहती उधर जानकी सीमित साधनों में किसी तरह गुजारा कर रही थी शादी के रिसेप्शन के बाद शादी की खबर मिलते ही एक दिन किन्नरों की एक टोली शादी होने की खबर सुन हवेली में आ धमकी उन्हें मना करना बहुत मुश्किल था। किन्नरों ने नाच नाच कर नई दुल्हन को बधाई दी और फिर सब अपना नेग माँगने लगे । अम्मा ने भी परम्परा के अनुसार उनके लिए अनाज,वस्त्र फल मिठाई और रुपये लाकर उन्हें दे कर हाथ जोड़ दिए बड़े और अमीर घर से आई बहू देख वो सब अड़ गए कि बिना सोना लिए यहाँ से नहीं जाएंगे।करोड़पति घर की बहू आई है। अम्मा टस से मस न हुई।पद्मा इस बहस से बेहद बोर हो चुकी थी उसने झट से अपनी उंगली से जानकी द्वारा पहनाई अगूंठी उतारी और उन्हें दे कर चलता किया। यह देख सब मौन ही रहे परन्तु सुरेश और जानकी को अपनी असली हैसियत का अहसास भली प्रकार हो गया। वह अभी तक झूठा वहम पाले बैठे थे कि देर सबेर सबको यह अहसास होगा कि सुरेश को निर्दोष होते हुए भी दण्डित किया जा रहा है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा परन्तु आज उसकी यह सोच पर भी विराम लग गया। उस पर लगे इस आरोप को गलत सिद्ध करने के लिए उसके पास न तो कोई गवाह था और न ही कोई वकील था। समय पंख लगा कर उड़ता ही चला गया। सुरेश की दोनों बेटियां युवा हो चुकी थी दोनों बहुत ही मेधावी थी। बड़ी बेटी गीता को एक अंतरराष्ट्रीय कम्पनी की उच्च्तम अधिकारी होने के कारण लन्दन चली गई छोटी सुधा आई ए एस परीक्षा में दूसरे नम्बर पर आ कर जिला कलक्टर बन गई। सुरेश की दोनों बेटियों ने अपने माता पिता का नाम रोशन कर दिया था। सुधा और गीता ने अपने पूर्वजों की दुकान का पूर्णतया काया कल्प करवा कर उसे एक शानदार जनरल स्टोर के रूप में परिवर्तित कर दिया। जनरल स्टोर के पर राम नारायण सुरेश जनरल स्टोर का बोर्ड लगाया गया। स्टोर के महूर्त के अवसर पर शहर के बड़े बड़े गण्यमान्य लोगों को आमंत्रित किया गया। राम नारायण जी अब बहुत वृद्ध हो चुके थे बीमार भी रहते थे। उनकी दोनों पोतियां उन्हें एक व्हील चेयर पर बिठा कर आयोजन स्थल ले कर आईं। जनरल स्टोर पर लगे बोर्ड को देख राम नारायण जी बहुत भावुक हो रो पड़े उन्होंने इशारे से सुरेश को बुला कर अपने गले से लगा लिया दोनों की आँखों से आँसू बहने लगे सुरेश की माँ भी सुरेश के साथ मिल कर रो पड़ी।आज सुरेश एक ऐसे जुर्म से बरी किया गया था जो उसने किया ही नहीं था। अब सुरेश ने आगे बढ़ कर दोनों बेटियों को गले से लगा लिया उन्हीं की योग्यता,प्यार और प्रयासों ने उसे इस कारागार से रिहाई मिली थी। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं नीरजा हेमेन्द्र की कहानी – नीले फूलों वाले दिन रजनी मोरवाल की कहानी – तेरे नाम के बाद प्रेम गुप्ता ‘मानी’ की कहानी – अंजुरी भर कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. 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