सांकेतिक चित्र (साभार : India.com)

मुद्दा दरअसल कुछ ऐसा है कि अमरीका ने चीन को विश्व भर में कोरोना फैलाने का ज़िम्मेदार ठहराया तो कुछ अन्य देशों के साथ आस्ट्रेलिया ने भी अमरीका का समर्थन किया। इस पर चीन भड़क गया। अमरीका पर सीधे कार्यवाही तो कर नहीं सकता था। बेचारे आस्ट्रेलिया पर बहुत सी पाबन्दियां लगा दीं। इन्ही पाबन्दियों और झगड़े के चलते आस्ट्रेलिया से कोयला ला रहे भारतीय पोत एम.वी. एनेस्टीसिया को चीनियों ने रोक लिया।

भारतीय मीडिया में सुशान्त सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती, संजय राऊत, महाराष्ट्र की राजनीति, किसान आन्दोलन और कोविद वैक्सीन इस क़दर हावी रहे कि एक अति महत्वपूर्ण मुद्दा जनता तक पहुंचने में कहीं पीछे रह गया। 
भारतीय समुद्री पोत एम.वी. एनेस्टीसिया 20 सितम्बर 2019 से चीन के कैफ़ेडियन बन्दरगाह पर और एम.वी. जग आनन्द 13 जून 2019 से ‘जींगतांग’ बन्दरगाह में फंसे खड़ें हैं। इन दोनों पोतों में 39 भारतीय नाविक चीन के समुद्री पानी में रहने को अभिशप्त हैं। 
मुद्दा दरअसल कुछ ऐसा है कि अमरीका ने चीन को विश्व भर में कोरोना फैलाने का ज़िम्मेदार ठहराया तो कुछ अन्य देशों के साथ आस्ट्रेलिया ने भी अमरीका का समर्थन किया। इस पर चीन भड़क गया। अमरीका पर सीधे कार्यवाही तो कर नहीं सकता था। बेचारे आस्ट्रेलिया पर बहुत सी पाबन्दियां लगा दीं। इन्ही पाबन्दियों और झगड़े के चलते आस्ट्रेलिया से कोयला ला रहे भारतीय पोत एम.वी. एनेस्टीसिया को चीनियों ने रोक लिया।
भारत के आपत्ति दर्ज करवाए जाने पर चीन ने प्रतिक्रिया दी है कि किसी भी जहाज़ को रवाना होने से नहीं रोका गया है। चीनी प्रवक्ता ने ट्विटर पर कहा है कि, “चीनी अधिकारियों ने भारतीय पक्ष के साथ निकटता से संपर्क किया है और भारतीय नाविकों को समय पर सहायता और आवश्यक आपूर्ति प्रदान की है। चीन ने कभी भी किसी भी पोत के प्रस्थान करने से मना नहीं किया है।” यह भी कहा जा रहा है कि चीनी बंदरगाहों पर फंसे भारतीय नाविकों के मामले और उसके भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ तनावपूर्ण संबंधों का आपस में कोई लेना-देना नहीं है। 
वहीं भारत के पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री मनसुख मंडाविया ने दावा किया कि सरकार जल्दी ही चीन में फंसे 39 नाविकों वापिस स्वदेश लाएगी। चीन के साथ राजनयिक स्तर पर बातचीत जारी है। याद रहे कि चीन में दो मालवाहक जहाज़ फंसे खड़े हैं और उन्हें माल उतारने की इजाज़त नहीं दी जा रही है। जबकि अन्य देशों के जहाज़ों को ऐसा करने की अनुमति दी जा रही है। 
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने भी अपने बयान में कहा कि मालवाहक पोत एमवी जग आनंद 13 जून से चीन के हुबेई प्रांत में जिंगटांग बंदरगाह के पास खड़ा है और उस पर 23 भारतीय नागरिक चालक दल के रूप में सवार हैं। उन्होंने बताया कि एक अन्य पोत एमवी अनासतासिया पर 16 भारतीय नागरिक चालक दल के रूप में हैं और यह 20 सितंबर से चीन के कोओफिदियन बंदरगाह के पास खड़ा है और माल के निपटारे का इंतज़ार कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि जहाज पर उत्पन्न मानवीय स्थिति को देखते हुए यह सहायता तत्परता और व्यवहारिक और समयबद्ध तरीके से प्रदान की जाएगी।’ श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार इस गतिरोध का जल्द समाधान निकालने के साथ चालक दल की मानवीय जरूरतों का ध्यान रखने के लिए चीनी प्रशासन के साथ नियमित संपर्क बनाए हुए है।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, “देरी की वजह से क्रू-मेंबर्स पर तनाव बढ़ रहा है. क्रू-मेंबर्स के लिए बढ़ती कठिन परिस्थितियों के लिए हमारी चिंता, दोनों को लेकर तेज़ी से काम किया जा रहा है।चीनी अधिकारियों ने बताया है कि कोविड-19 से जुड़े कई प्रतिबंधों के कारण इन बंदरगाहों पर क्रू सदस्यों के बदलाव की अनुमति नहीं दी जा रही है।
नवंबर 2020 में चीनी विदेश मंत्रालय ने भी कहा था कि अगर जिंगतांग पोर्ट से क्रू को बदला जाना संभव नहीं है तो तियांजिन पोर्ट से शिपिंग कंपनी/एजेंट क्रू को बदलने के लिए आवेदन कर सकते हैं। जिसके बाद स्थानीय अधिकारी आवेदन की जांच करेंगे। शिपिंग कंपनियों को क्रू बदलने के लिए जल्द आवेदन देने को कहा गया है।”
यह भी सुनने में आ रहा है कि क्रू-मेंबर्स को पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रहीं। इतने लंबे समय तक समुद्र में फंसे होने के कारण उनकी मानसिक स्थिति भी डावांडोल सी हो रही है। 
सुषमा स्वराज जब भारत की विदेश मंत्री थीं, तो विदेश मंत्रालय में संवेदनशीलता अचानक महसूस होने लगी थी। वे ऐसे मामलों में निजी रुचि लेकर जल्दी से जल्दी उसका हल ढूंढ लेती थीं। मगर आज एक बात तो ज़ाहिर है कि सरकार द्वारा अब तक उठाए गये क़दम क्रू-मेंबर्स को वापिस स्वदेश लाने के लिये समुचित नहीं लग रहे हैं। 
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इन नाविकों की स्थिति की तरफ़ विपक्ष के राहुल गान्धी, अरविन्द केजरीवाल, योगेन्द्र यादव, स्वरा भास्कर आदि का ध्यान भी नहीं गया। ज़ाहिर है कि ये नाविक किसी भी राजनीतिक दल के लिये वोट बैंक तो हैं नहीं। उनके वापिस आने या न आने से उन्हें क्या फ़र्क पड़ने वाला है!
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

2 टिप्पणी

  1. सम्पादकीय में घटना बिल्कुल एक कहानी की तरह लग रही है
    और चरमोत्कर्ष पर कहानी प्रतिक्रियात्मक हो गई है।
    अंत में करारी टीप्पणी है मुखरित लोगों के मौन पर।
    यहाँ सुषमा स्वराज की स्मृति भी अच्छी लगी ,उनके जैसी वो ही हो सकती हैं कोई और नही ।
    साधुवाद
    प्रभा

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