मनोविज्ञान के विविध पहलू समेटे है मोगरी

–       डॉ रेवन्त दान बारहठ

पुस्तकः मोगरी (कहानी संग्रह), लेखकः मुरारी गुप्ता, प्रकाशनः बोधि प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, जयपुर। पृष्ठः 100, मूल्यः रुपए 200

 

मुरारी गुप्ता के प्रथम कहानी संकलन ‘मोगरी’ में कुल चौदह कहानियां संकलित है। क्रमशः भोगाली, मोगरी, गोजरपट्टी की सरहद पर, एक था टाइगर, उनचास,  कुम्भ का वनवास, कुफ्र, वजूद, मौत का मेहमान, ख़्वाब,  कमाऊ पूत, स्कूल बैग, सुनयना और अक्षा।

ये कहानियाँ मानव जीवन के विभिन्न मनोवैज्ञानिक पहलुओं से पाठकों को रूबरू करवाती है। ख़ासतौर पर मानव के रागात्मक सम्बन्धों पर सूक्ष्म दृष्टि लेखक नजर आती है जिसमें विभिन्न भाव अपने सम्पूर्ण आवेग के साथ अभिव्यक्त हुए हैं।

इनकी कहानियों में जहाँ एक ओर स्त्री पुरुष सम्बन्ध, परम्परागत चरित्र आधारित नैतिकता, यौन शुचिता, तमाम वर्जनाएँ और यौन मुक्ति जैसे मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से पड़ताल करती नजर आती है वही दूसरी तरफ लेखक का भोगा हुआ यथार्थ भी ‘कुम्भ का वनवास’ और ‘मौत का मेहमान’ जैसी मार्मिक कहानियों में अभिव्यक्त हुआ है।

मुंशी प्रेमचंद का मानना था कि अच्छी कहानी वही है जिसका आधार मनोविज्ञान हो। इस दृष्टि से मुरारी गुप्ता के कहानी संकलन में बाल मनोविज्ञान का कुशलता के साथ प्रयोग हुआ है। कई जगह कहानीकार परकाया प्रवेश करते दिखाई देते हैं। ‘मोगरी’, ‘स्कूली बैग’, ‘सुनयना’ और ‘अक्षा’ इसके बेहतरीन उदाहरण है। खासतौर पर ‘स्कूल बैग’ कहानी के बाल पात्र वासु को पढ़कर मुंशी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’ के हामिद की याद ताजा हो जाती है। कहानी ‘स्कूल बैग’  इस संकलन की महत्वपूर्ण कहानी है जो शायद प्रत्येक पाठक को पसंद आएगी। इस कहानी को राष्ट्रीय स्तर का प्रथम पुरस्कार भी हासिल हुआ है।  निश्चित रूप से यह कहानी आज के एब्सर्ड कहानी के युग में अच्छी कहानियों के लिखे जाने का शुभ संकेत है। इनकी इस कहानी का महत्व और मूल्यांकन हिंदी साहित्य में जरूर होगा।

‘सुनयना’ जहाँ ट्रांसजेंडर जैसी जटिल समस्याओं और सामाजिक अस्वीकार्यता के बीच परिजनों के द्वंद्व को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल रही है।

आज के दौर में सांप्रदायिकता को संकीर्ण अर्थ में हिन्दू मुस्लिम तनाव से जोड़ा जा रहा है इस परिप्रेक्ष्य में मुरारी गुप्ता की कहानियां ‘कुफ्र’ और ‘गोजरपट्टी की सरहद’ में गहरी अभिव्यंजना व्यक्त हुई है जो कि लेखक की संवेदनशील दृष्टि को ज़ाहिर करती है। इस संकलन की प्रथम कहानी ‘भोगाली’ में लेखक यौन शुचिता, नैतिकता, पवित्रता के जटिल द्वंद्व से झूलते मदन किशोर की मानस स्थिति को रेखांकित करने में सफल रहा है वहीं बेल्जियम की युवती इलियाना के यौन सम्बन्धों की खुली मानसिकता को रेखांकित करने में लेखक ने बहुत सावधानी दिखाई है। सारांशतः मुरारी गुप्ता के कहानी संकलन की प्रत्येक कहानी मानवीय जीवन से जुड़ी विभिन्न संवेनशील स्थितियों को शब्द सम्प्रेषित करने में पूर्णतः सफल रही है। यही एक लेखक का सच्चा दायित्व है। कहानियों की भाषा आमफहम है। जरूरत के अनुसार कहीं कहीं अंग्रेजी, उर्दू, फारसी शब्दों का इस्तेमाल भी हुआ है।

राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित इस कहानी संग्रह के चरित्र हमें बहुत जाने पहचाने से और करीबी लगते हैं। यह लेखक का सार्वभौमिक होना है और बड़ी सफलता भी है।

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