Sunday, May 19, 2024
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‘विज्ञान की दुनिया’ स्तम्भ में प्रदीप : स्पेसएक्स मिशन के लॉन्चिंग के मायने

आधी सदी पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अपोलो चंद्र अभियान की सफलता ने मंगल ग्रह को इंसानी पहुंच के काफी करीब ला दिया था। असल में, नासा ने 1980 के दशक की शुरुआत में ही लाल ग्रह पर कदम रखने की योजना बनाई थी, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक रूखों के बदलाव ने उस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
चाँद के बाद मंगल तक इंसान के पहुँचने की बात तो दूर 1972 के बाद चाँद पर अब तक दुबारा किसी के कदम नहीं पड़े हैं। इसका बड़ा कारण राजनीतिक है क्योंकि बीतें 50 सालों में अंतरिक्ष से जुड़ी तमाम गतिविधियां अमेरिका, रूस, चीन, भारत वगैरह देशों की सरकारी एजेंसियों के भरोसे ही संचालित होती रही हैं।
बीते 30 मई का दिन अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में ऐतिहासिक दिन के तौर पर दर्ज हो गया है। 30 मई को स्पेसएक्स का अंतरिक्ष यान द क्रू ड्रैगन नासा के दो एस्ट्रोनॉट्स को लेकर मिशन पर रवाना हुआ। यह पहली बार हुआ है कि एक निजी व्यवसायिक कंपनी के अंतरिक्ष यान (स्पेसक्रॉफ्ट) से अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में पहुंचे हैं।
अमेरिकी कारोबारी एलन मस्क की स्पेसएक्स कंपनी के स्पेसक्रॉफ्ट ‘द क्रू ड्रैगन’ ने नासा के दो एस्ट्रोनॉट्स रॉबर्ट बेहेनकेन और डगलस हर्ले को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में सफलतापूर्वक पहुंचाया है। ये दोनों एस्ट्रोनॉट्स करीब 110 दिन अंतरिक्ष में रहकर वहां की जानकारियां जुटाएंगे।
स्पेसक्राफ्ट की लॉन्चिग अमेरिका के सबसे भरोसेमंद रॉकेट फॉल्कन-9 से की गई। इस स्पेसक्राफ्ट में अन्य किसी भी स्पेसक्राफ्ट्स की तुलना में काफी जगह है। पहली बार ऐसे स्पेस कैप्सूल का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें सात एस्ट्रोनॉट्स एक साथ जा सकते हैं।
इसकी ऊंचाई भी अमेरिका के पिछले अपोलो कमांड मॉड्यूल से ज्यादा है। इस कैप्सूल में काफी कम नॉब और बटन हैं। इनकी जगह कैप्सूल में टच स्क्रीन को ज्यादा तरजीह दी गई है। ड्रैगन-2 रीयूजेबल यानि कि बार-बार उपयोग में लाया जा सकने वाला अंतरिक्ष यान है। यह ड्रैगन 1 कार्गो स्पेसक्राफ्ट की अगली पीढ़ी का यान है।
गौरतलब है कि 21 जुलाई 2011 के बाद 30 मई को पहली बार अमेरिकी धरती से कोई मानवयुक्त मिशन अंतरिक्ष में भेजा गया। इससे इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने के मामले में यह अमरीकी सम्मान की बहाली के तौर पर भी देखा जा रहा है। इसके अलावा कई ऐसी गतिविधियां देखने को मिल रही हैं जिससे अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक तीव्र प्रतिस्पर्धा होना लाजिमी लग रहा है।
इस सफलता के साथ ही अमेरिका में कॉमर्शियल स्‍पेस ट्रवेल के एक नए युग की शुरुआत भी हो गई है। जबकि अमेरिका से पहले रूस और चीन ऐसा कर चुके हैं। मई महीने की शुरूआत में नासा के प्रशासक जिम ब्रिडेनस्टाइन ने कहा था कि नासा प्रसिद्ध हॉलीवुड एक्टर टॉम क्रूस के साथ अंतरिक्ष में पहली मूवी शूट करने के लिए काम कर रही है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि नासा के अधिकारी अंतरिक्ष कार्यक्रमों के व्यवसायिक दोहन के प्रति कितने गंभीर हैं।
स्पेसक्रॉफ्ट ‘द क्रू ड्रैगन’ की यह उड़ान जल्द ही पूरी तस्वीर बदलने वाली साबित हो सकती है। अब अंतरिक्ष उड़ानों में हमें कुछ बदलाव तो जरूर देखने को मिलेंगे क्योंकि निजी क्षेत्र के आने से अब जो भी बदलाव होंगे उनमें कीमत एक प्रमुख कारक होगी। निजी क्षेत्र के इस उद्योग में आने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इससे तकनीकी विकास में भी तेजी आएगी।
द क्रू ड्रैगन की इस अहम लॉंचिंग की बदौलत नासा का क्रू प्रोग्राम तकरीबन एक दशक बाद तो शुरू हुआ ही है साथ ही इस मिशन की सफलता के बाद अमेरिका को अपने एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए रूस और यूरोपीय देशों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। यानी करोड़ों-अरबों रुपए खर्च कर रूस और यूरोपीय देशों के रॉकेट से अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन नहीं भेजना पड़ेगा।
अंतरिक्ष से जुड़े मामलों के जानकारों की माने तो स्पेसएक्स के इस अहम मिशन की कामयाबी से अब अंतरिक्ष की यात्रा सरकारों के कब्जे से धीरे-धीरे बाहर हो रही है और निजी कंपनियों के जरिए के अंतरिक्ष में लोगों को ले जाने की घड़ी भी नजदीक आ गई है। बहरहाल, अंतरिक्ष यात्रियों के अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पहुँचने के साथ ही यात्रा का प्रथम चरण पूरा हो गया है परंतु मिशन को तभी पूरी तरह से कामयाब माना जाएगा जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर सकुशल लौट आएंगे।
स्पेसएक्स का यह मिशन अंतरिक्ष कार्यक्रमों से जुड़ी अनेक व्यावसायिक कंपनियों को इस क्षेत्र में सिरमौर बनने और अंतरिक्ष पर्यटन पर बेहिचक काम करने के लिए निश्चित रूप से प्रोत्साहित करेगा। फिर बात चाहे पृथ्वी की निचली कक्षा में जाने की हो या एस्ट्रोनॉट्स को क्षुद्रग्रह, चाँद या फिर मंगल तक पहुंचाने की। प्राइवेट स्पेस एजेंसियां इसके लिए कमर कस रही हैं। वैसे भी नासा का स्पेस शटल प्रोग्राम 2012 में ही पूरी तरह से खत्म हो चुका है। यानी सभी स्पेस शटल रिटायर हो गए हैं। ऐसे में नासा को भी एस्ट्रोनॉट्स को लाने-ले जाने के लिए निजी कंपनियों के स्पेसक्राफ्ट्स पर निर्भर रहना होगा।
प्रदीप कुमार
प्रदीप कुमार
प्रदीप कुमार, विज्ञान विषयों के उभरते हुए लेखक हैं. दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स, इलेक्ट्रॉनिकी आदि देश के अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में इनके विज्ञान विषयक आलेख प्रकाशित होते रहते हैं. संपर्क - pk110043@gmail.com
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