1- हाँ–तो !!
उसने एक झटके से मेरे फ़ोन के चार्जर की कॉर्ड निकाली,उसमें अपने फ़ोन के चार्जर की कॉर्ड वहाँ लगा दी और अंदर जाकर अपने काम में व्यस्त हो गई |
हर बार मेरी ही कॉर्ड में वह अपना फ़ोन लगा देती थी लेकिन इससे पहले पूछ लिया करती थी ;
“बा ! मैं अपना फ़ोन लगाऊँ?” स्वाभाविक था ,मैं ‘हाँ‘ कह देती |
वह मेरा फ़ोन निकालकर अपना फ़ोन लगा देती और जाते समय मेरा फ़ोन फिर से चार्जिंग में लगा जाती |
न जाने आज उसने दूसरी कॉर्ड क्यों लगाई ?मेरे मन में हल्का सा विचार आया जिसे क्षण भर में मैं भूल भी गई | घर का काम करने के बाद मीतल आई और उसने अपनी कॉर्ड को इतने झटके से निकाला कि सॉकेट ही बाहर निकल आया |
“क्या कर रही है मीतल ?देख बोर्ड से सौकेट ही बाहर निकाल दिया | “
“सॉरी बा—” उसने बड़ी विनम्रता से कहा | यह उसका स्वभाव था | कभी भी कोई गलती होने पर वह इतनी विनम्रता से ‘सॉरी‘ बोलती कि उसे कुछ कहने का मन ही नहीं होता |
मीतल घर में काम करने वाली रबारी लड़की है ,लगभग अट्ठारह/उन्नीस वर्ष की !(रबारी ,गुजरात की एक जाति है जो अधिकांशत: दूध का व्यवसाय करती है | )
साफ़-सुथरी,ख़ूबसूरत सी मीतल ‘कायनेटिक‘ पर काम करने आती है जिसके महीने की किश्तें भरने के लिए वह और कई घरों में काम करने लगी है ,बस –भागती दौड़ती नज़र आती है इसीलिए जल्दबाज़ी में कई काम भूल जाती है |
“आज मेरी कॉर्ड में अपना फ़ोन क्यों नहीं लगा लिया मीतल ?” जब वह मेरे कमरे से जाने लगी मैंने उससे यूँ ही पूछ लिया |
“अरे ! बा,आपकी डोरी में मेरा फ़ोन कैसे लगेगा ?”
“क्यों? रोज़ तो लगाती है —-“
“ये वाला नहीं लगेगा न ! आई-फ़ोन है न —आपका तो —-” बस,वह इतना कहकर रुक गई |
“अरे ! तूने आई–फ़ोन ले लिया ?” मुझे आश्चर्य हुआ | स्कूटर की किश्तें भरने के लिए तो उसे ज़्यादा काम बाँधने पड़े थे |
“हाँ.तो —देखो –पूरे पैंसठ का लिया है —-” उसने मुझे अपना फ़ोन दिखाते हुए कहा और जल्दी से कमरे से बाहर निकल गई |
दीवार के बोर्ड पर टूटकर लटका हुआ सौकेट मेरा मुह चिढ़ा रहा था |
2-अधिकार
बात उन दिनों की है जब रत्ना संस्थान में पब्लिक रिलेशन ऑफ़िसर थी | संस्थान में बगीचे में घुसते ही साइड में उसे एक बड़ा सा कमरा मिला हुआ था | जिस स्थान पर उसकी पी.ए हिना बैठती ,वहाँ से वह बड़ी सड़क गुज़रती जिस पर आने-जाने वाले ट्रांसपोर्ट गुज़रते रहते |
रत्ना को बड़ी हैरानी होती जब वह देखती कि हिना गार्डन की जाली के बाहर झाँककर न जाने क्या देखती रहती है ? एक दिन उसने हिना से पूछ ही लिया ;
“हिना ! ऐसा क्या है जाली के बाहर जो काम करते हुए भी तुम्हारा मन उधर चला जाता है ?”
“आइये,आपको दिखाती हूँ मैडम —-”
हिना रत्ना को लेकर जाली के पास खड़ी हो गई | रत्ना ने देखा लगभग हर पाँच मिनट में एक ट्रक सड़क पर से गुज़रता,चौराहे से कुछ पीछे रुकता और एक पुलिस वाला ट्रक के पास आकर ट्रक-ड्राइवर के खिड़की से नीचे लटके हाथ से कुछ लेकर मुट्ठी में बंद कर लेता और ट्रक को आगे जाने का इशारा कर देता |
रत्ना समझ चुकी थी कि वो स्वतंत्र भारत के भारतवासी थे और अपने अधिकार को बखूबी भुनाना जानते थे |
हमारे परिवेश की सूक्ष्म पड़ताल करती कहानियां
धन्यवाद शैली जी