होम ग़ज़ल एवं गीत डॉ. प्रणव भारती का गीत – फिर विदा लूं ग़ज़ल एवं गीत डॉ. प्रणव भारती का गीत – फिर विदा लूं द्वारा डॉ. प्रणव भारती - October 4, 2020 152 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet मैं विरह की चाँदनी में गीत गा लूँ और थोड़ी देर तक सपने सजा लूँ तुम फ़लक पर सजे रहना चाँद बनकर श्वाँस की रफ़्तार से पहचान लूंगी हृदय की झंकार से कुछ गान लूंगी ढेर सन्नाटे बंधे हैं साथ मेरे शून्य को ताका किया है मन-बधिर ने आलसी आँखों में भरकर स्वप्न सुंदर आज तुमको याद कर लूँ फिर विदा लूं कितनी पीड़ा झेलती हैं मूक श्वाँसेें कौन जाने बेंधती हैं किसकी आँखेें लक्ष्मणी रेखा यहाँ पर है न कोई फिर भी सीमाओं का बंधन जानती हूँ मैं सुरीली साँझ के झौंके सँभालूं और उसके साथ मिल एक गीत गा लूँ फिर हठीले प्रश्न सी आकर तुम्हारी द्वार की पदचाप को पहचान लूंगी — संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं अनिला सिंह चरक की ग़ज़लें विज्ञान व्रत की पाँच ग़ज़लें डॉ मनीष कुमार मिश्रा की ग़ज़ल कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.