डॉ ओम निश्चल के पांच गीत
कहां से रचती हो ये गीत
कहां पर खुलती हैं बेसुध
तुम्हारे होठों पर उल्लास
कुलाचें भरता है व्याकुल
कहां से रचती हो ये गीत
एक दिया बस अटूट प्रण का
एक दिया इस कोने
पहले दीए पर बाबा का हक
एक दिया देहरी पर
बाबा की बगिया में एक दिया
एक दिया पशुओं की चरही पर
एक दिया बैठक में
एक दिया ताली में
चार दिए सभी दिशाओं में
एक दिया अँगनाई रख देना
एक दिया बैठक में
अभी और दिये जलाने होंगे
अभी कहीं बंधक है
जहॉं रोशनी चकमक
अभी अनय औ’ अनीति
एक दिया रोशन हो मन का
एक दिया बैठक में
तुमसे मिलना
मिलना अपनी ही आस्थाओं से
जिससे मिलकर स्वयं में खोना हो
तुमसे जब भी कभी मिला हूँ मैं
तुम मेरी रूह में समाये हुए
जिन्दगी अनमनी सी हो जाती
तीर्थ कोई पा लिया हमने
तुम मिले तो याद घिर आई
तुम न थे तो ज़िंदगी कम थी
बो गया अहसास कोई फिर
वश में जो होता यह मन।
वाणी में शहद घोलता
काँधे पर सिर रख प्रिय के
जीवन होता बसंत-सा
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