डॉ. यासमीन मूमल की ग़ज़ल – चाँद तारों को लेकर किधर जाएगा
सांप का ज़ह्र फिर भी उतर जाएगा।
उससे मिलना तो नज़रें मिलाना नहीं।
जब ठिकाना नहीं कोई मंज़िल नहीं।
उसके जैसा न दुनिया में होगा कोई।
ज़िंदगी वक़्फ़ जिसने तेरे नाम की।
लुट गया राहे ‘उल्फ़त में कोई अगर।
“यास्मीं” उसपे क़ुर्बान हो जायेगी।
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