सांप का ज़ह्र फिर भी उतर जाएगा।
डस लिया आदमी ने तो मर जाएगा।।
उससे मिलना तो नज़रें मिलाना नहीं।
वरना नज़रों से दिल में उतर जाएगा।
जब ठिकाना नहीं कोई मंज़िल नहीं।
चाँद तारों  को  लेकर  किधर जाएगा।।
उसके जैसा न दुनिया में होगा कोई।
तेरी चाहत से जब वो सँवर जाएगा।
ज़िंदगी वक़्फ़ जिसने तेरे नाम की।
छोड़कर  कैसे  तेरा  वो दर  जाएगा।।
लुट गया राहे उल्फ़त में कोई अगर।
तो ख़ुदा जाने वो कैसे घर जाएगा।।
यास्मीं” उसपे क़ुर्बान हो जायेगी।
जो बुलन्दी पे जाकर ठहर जाएगा।।

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