हर दिल में आशा का झिलमिल दीप जलायेंगे।
जग को रोशन कर दीपों का पर्व मनायेंगे।।
नन्हे नन्हे फुलझड़ियों  से बच्चों को देखो।
अपने वतन  का अंधियारा ये  दूर  भगायेंगे।।
सीमाओं के रखवालों को  बारंबार नमन।
जिन के कारण अमनो अमां के दीप जलायेंगे।।
जिनके  आंगन अंधियारों के घने बसेरे हैं।
उनके  आंगन  उजियारे  त्यौहार  मनायेंगे।।
महलों के ऊंचे क॔गूरों से मत बहस करो।
इनके  नख़रे  झोपड़ियों के  दर  तक आयेंगे।।
“मूमल” की भी आज गुज़ारिश है सब मिल जुल कर।
हम नफ़रत के हर पर्वत का शीश झुकायेंगे।।

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