फ़िरदौस ख़ान की ग़ज़ल
जूड़े में फूल आंखों में काजल नहीं रहा
ताज़ा हवाओं ने मेरी ज़ुल्फ़ें तराश दीं
मुट्ठी में क़ैद करने को जुगनू कहां से लाऊं
दीमक ने चुपके-चुपके वो अल्बम ही चाट ली
मैं उस तरफ़ से अब भी गुज़रती तो हूं मगर
‘फ़िरदौस‘ मैं यक़ीं से सोना कहूं जिसे
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महफ़ूज़ ज़िन्दगी का कोई पल नहीं रहा