हमारे एक पड़ोसी जी का एक लाडला टाइप तीस साल का बेटा है जो कामकाज में कतई भरोसा नहीं रखता,  हां उसे अपने पिता पर भरोसा जरुर है कि वे सब कुछ सम्भाल लेंगे ..हर बात में जबाब देता है पापा बहुत मेहनती हैं, वो कर लेंगे| मेहनत करते करते बाप के कंधे झुक चुके हैं पर बेटे का कॉन्फिडेंस हिमालय की चोटी पर है |
पिछले दिनों गाड़ी खरीदी तो दोस्तों ने कहा, “यार इसकी किश्त तो तू देगा ना ?” क्यों मैं क्यों दूंगा पापा देंगे ना .. कोई कहता यार अब तू बड़ा हो गया है कुछ कमाया कर ..तो वो कहता पापा के पास बहुत पैसा है ..और जब मेरे पापा को मेहनत पसंद है तो मैं मेहनत क्यों करूं ? 
कोई कहता यार कुछ कोर्स कर ले ..अरे यार पापा इस उम्र में कोर्स कैसे करेंगे वे मेहनती हैं पर कोर्स करवाना ठीक नहीं ..
मतलब हर जिम्मेदारी पापा की..  दोस्त माथा पीट लेते हैं |

हमारे देश के लोग भी उसी लड़के की तरह आत्मविश्वास से भरे हुए थे ….पापा मेहनती हैं सब सम्भाल लेंगे सोचकर ..मजे से होली खेली ..मास्क को बाय बाय कर दी ..कुम्भ में स्नान किया और रैली की भीड़ में नारे लगाये ..पापा सब सम्भाल लेंगे …मेहनती हैं ना 
फिर उन लाडले बच्चों ने घर की शादियाँ निपटाई ,पार्टियाँ की हर वो काम कर डाले जिनसे उसके वापिस आने खतरा था जिसने पिछले साल सबको घरों में बंद रखा था..पर पापा मेहनती हैं देख लेंगे के विश्वास ने डर को दूर रखा ..
पर उस खतरनाक भूत को तो वापिस आने का मौका चाहिए था और मौका मिला भी सो उसने इस बार सबको चारों तरफ से घेर लिया ..हर कोई बचाओ बचाओ चिल्ला रहा था,..लोग इधर उधर दौड़ रहे थे ..लोगों की साँसे बंद होने लगीं…सबकी नजरें पापा को खोज रही थीं, पर पापा कहीं नजर नहीं आ रहे थे | बच्चों को  बचाने वाले पापा अचानक किनारा कर गए और इसी वक्त मन की बात मन में कह डाली कह डाली, ”बेटा अब तुम बड़े हो गए हो खुद ही सम्भालो सब, कब तक मेहनत करूँ मैं.. अब तुम्हारी बारी है” कहकर पापा अंतर्ध्यान हो गए 
अब थालियाँ, तालियाँ नहीं, गालियाँ बज रही हैं पर पापा कान में रुई लगा कर ध्यानमग्न हो चुके हैं |

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