होम कविता डॉ.रेनू सिरोया ‘कुमुदिनी’ की कविता – नारी कविता डॉ.रेनू सिरोया ‘कुमुदिनी’ की कविता – नारी द्वारा डॉ रेनू सिरोया "कुमुदिनी" - March 14, 2021 336 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet थल से अम्बर तक नारी नभ से समंदर तक नारी कितना है विस्तार न पूछो बसी है अंदर तक नारी चौखट से बाहर तक नारी मेहंदी से महावर तक नारी सृष्टि के कण-कण में समाई गागर से सागर तक नारी घूंघट से शिक्षक तक नारी मां, पत्नी और रक्षक नारी हर रिश्तों की मधुर रागिनी पूजा का अक्षत है नारी ग्रंथों पुराणों में नारी खेत खलिहानों में नारी रस्म रिवाज बंधन को निभाती सुर ग़ज़लों, गानों में नारी ममत्व का मंथन है नारी खुशबू में चंदन है नारी “कुमुदिनी” सी मुस्काये सदा धरती पर वंदन है नारी संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं बिमल सहगल की कविता- जागी आँखों के सपने योगेंद्र पाण्डेय की कविता – गुलमोहर के फूल आशीष मिश्रा की कविता – शून्य है 1 टिप्पणी अच्छी रचनायें हैं।इस छोटी उम्र में समृद्धि जैन ने कमाल किया है। सही और सच्ची व्यथा व्यक्त की है। बधाई। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
अच्छी रचनायें हैं।इस छोटी उम्र में समृद्धि जैन ने कमाल किया है। सही और सच्ची व्यथा व्यक्त की है। बधाई। जवाब दें
अच्छी रचनायें हैं।इस छोटी उम्र में समृद्धि जैन ने कमाल किया है। सही और सच्ची व्यथा व्यक्त की है। बधाई।