कविता डॉ.रेनू सिरोया ‘कुमुदिनी’ की कविता – नारी द्वारा डॉ रेनू सिरोया "कुमुदिनी" - March 14, 2021 1 173 थल से अम्बर तक नारी नभ से समंदर तक नारी कितना है विस्तार न पूछो बसी है अंदर तक नारी चौखट से बाहर तक नारी मेहंदी से महावर तक नारी सृष्टि के कण-कण में समाई गागर से सागर तक नारी घूंघट से शिक्षक तक नारी मां, पत्नी और रक्षक नारी हर रिश्तों की मधुर रागिनी पूजा का अक्षत है नारी ग्रंथों पुराणों में नारी खेत खलिहानों में नारी रस्म रिवाज बंधन को निभाती सुर ग़ज़लों, गानों में नारी ममत्व का मंथन है नारी खुशबू में चंदन है नारी “कुमुदिनी” सी मुस्काये सदा धरती पर वंदन है नारी
अच्छी रचनायें हैं।इस छोटी उम्र में समृद्धि जैन ने कमाल किया है। सही और सच्ची व्यथा व्यक्त की है। बधाई। जवाब दें
अच्छी रचनायें हैं।इस छोटी उम्र में समृद्धि जैन ने कमाल किया है। सही और सच्ची व्यथा व्यक्त की है। बधाई।