1 – धूप छाँव
खेल रही है आँख मिचौली
पगडंडी जीवन की
हो नव वर्ष तारों सा झिलमिल
महक उठे उपवन भी
हाथ पकड़ कर खींच रही है
ख़्वाबों की किताब
तो फिर रूठ जाती है हाँसी
कलम ना आए रास
बेदर्दी स्याही ने भी तो रेत पर
खींचे खाके
लहर ले गई सारी ख़ुशियाँ
पवन बैठती ताके
उमड़ पड़ा बादल द्रवित हो
शुष्क धरा पर बरसा
नन्ही दूब ने आँखें खोली
पवना का मन हर्षा .
रहे सुहानी धूप चमकती
और ठंडक दे छाँव
वर्षा की बूँदों से सरसे
मन आँगन और गाँव…
2 – वरक़
आपकी दोनों ही करता है बहुत भावपूर्ण है मनवीन जी!
कविता