एक दुकान के बाहर बोर्ड लगा था संतान के इच्‍छुक पधारें। संतान होने की गारंटी। दवा 400 रुपये, स्‍पेशल दवा 700 रुपये और एक्‍स्‍ट्रा स्‍पेशल दवा 1000 रुपये। पढ़कर हमारा माथा ठनका …हम सशरीर वही ठहर गए | हम तो वो प्राणी हैं कि हर बात की बाल में से खाल निकाल लें फिर ये तो वाकई कुछ अटपटी बात थी सो  हमारे अन्दर का जासूस जाग गया था वैसे भी जबसे सी आई डी और सावधान इण्डिया जैसे नाटक देखने की लत लगी है हम हर बात की तह तक जाकर ही दम लेते हैं |
हम दुकानदार के पास पहुंचे उसकी दुकान में सजी इन्द्रधनुषी रंग की दवाओं की शीशीयों पर नजर दौड़ाई फिर  उससे पूछा, ‘भैया ये आपकी जो अलग अलग दवाएं यहाँ बाहर बोर्ड पर लिखी हैं ..इनका क्या प्रभाव पड़ने वाला है ?
दुकानदार ने हमें ऊपर से नीचे तक घूरा मानो हमारी हैसियत और बाली उमरिया का सही अंदाज लगाने की कोशिश कर रहा हो | फिर बोला “आपकी उमर तो कुछ ज्यादा लग रही है, बच्चे के लिए …खैर आप १००० वाली दवा लीजिये ये जरुर काम करेगी” |

“अरे भाई हमें नहीं चाहीये बच्चा.. हमारे बच्चे हैं.. वो भी जवान जहान” हम बौखलाहट भरे अंदाज में बोले  |  तो क्या चाहिए ? बिना हमारी तरफ देखे बोला… मानो हमसे कह रहा हो चलती बनो अब ,पर हम भी इतनी आसानी से टलने वाले नहीं थे बिना खोज पूरी किये वहां से हिलना अपनी तौहीन समझ रहे थे | हमने अपनी आवाज में थोड़ा रौब का मसाला बुरका और बोले हमें, “कुछ प्रश्न पूछने हैं तुमसे ?” 
क्यों तुम रिपोर्टर हो क्या जो जबाब दूँ ? हमारे रौब का जबाब उसने तिलमिलाहट से दिया  | “नहीं भाई रिपोर्टर तो नहीं पर तुम्हारी इस दवा को लेकर मन में कुछ प्रश्न घुमड़ रहे हैं, और प्रश्न तो आजकल आम आदमी भी पूछ सकता है ना ? अब हमने अपने स्वर को थोड़ी चाशनी में भिगोकर बाहर निकाला | 
पूछो …वह अहसान सा करते हुए बोला ..
हमने कहा, ये” आपकी दवाओं के अलग अलग रेट क्यों हैं ?क्या 400  रुपये की दवा खाने से चपरासी, ठेले वाले और दिहाड़ी मजदूर पैदा होंगे ?और खास दवा से अफसर और सेल्‍स वाले ? क्या तुम एक्‍स्‍ट्रा स्‍पेशल दवा, मंत्री संत्री पैदा कराने की गारंटी के साथ बेचते हो ? 
हमारे सवाल सुनकर वो पूरी तरह से हत्ते से उखड चुका था बोला  “क्या बहनजी कैसी बात कर रही हैं आप ? हमने ऐसा कहाँ लिखा है ? 
भाई लिखा तो नहीं पर एक ही काम करने वाली दवा के रेट अलग अलग हैं.. तो काम भी कुछ स्पेशल एक्स्ट्रा स्पेशल टाइप ही करती होगी ना ? हमारी इंटेलिजेंट  खोपड़ी में से सवाल कूदा ..साथ ही वो दुकानदार भी कूद गया था, उसके चेहरे की तमतमाहट ने हमे बता दिया था |हमने भगवान का शुक्रिया अदा किया क्योंकि आज यदि हम मर्द होते तो हमें पिटने से कोई नहीं बचा सकता था पर आज हमारा औरत होना ही हमारा बचाव अस्त्र बन गया था |
वो खुद पर काबू रखने की कोशिश करते हुए हमारे आगे हाथ जोड़ने लगा “बहन जी आपको सुबह से कोई मिला नहीं ? जो मेरी दुकानदारी बिगाड़ने पर तुली हो, फिर गंभीर होकर बोला ‘बच्चा तो सभी को चाहिए और जिसकी जैसी हैसियत है, वैसा ही खर्च करेगा ना ? मैं तो सिर्फ उम्मीद बेचता हूँ …और बदले में परिवार के लिए दो वक्त के खाने की उम्मीद खरीद लेता हूँ |  ये दुनिया उम्मीद पर ही तो टिकी है और ये उम्मीद ही तो है जिसके लिए लोग बाबाओं के और गुरुघंटालों के चक्कर में पड़ जाते हैं |” 
 “क्या ये उम्मीद ही है जो इस देश की जनता खरीद रही है एक वोट के बदले में” हमारे मन में प्रश्न कुलबुलाया 
 “मैडम जी मैं तो पैसे लेकर फिर भी एक आशा की किरण एक उम्मीद का सौदा कर रहा हूँ ,इस देश के नेताओं का क्या जिन के भरोसे पर जनता उन्हें वोट देती है और बदले में ……सिर्फ अच्छे दिन की उम्मीद ही तो थमाई , और जनता उम्मीद के सहारे चुप है” दुकानदार ने जैसे हमारा मन पढ़ लिया था |  
उसकी बात सुनकर हमारी बोलती बंद हो चुकी थी ….हम भारी क़दमों से चल पड़े मन ही मन सोचते हुए 
……और ये देश टिका है इसी उम्मीद पर ..कि कभी तो इस देश के नागरिक जागेंगे  और अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीखेंगे |

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