होम ग़ज़ल एवं गीत डॉ. प्रज्ञा पाण्डेय की दो ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत डॉ. प्रज्ञा पाण्डेय की दो ग़ज़लें द्वारा डॉ. प्रज्ञा पाण्डेय - July 19, 2020 113 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet ग़ज़ल 1 ख़यालों भरी ज़िन्दगानी मिली है, ग़मों की हमें राजधानी मिली है। जिसे देख कर मेरी आँखें हुई नम, मोहब्बत की ऐसी निशानी मिली है। विचारों की दुनिया महकती रहेगी, मुझे लफ़्जों की रात रानी मिली है। मैं ग़ज़लें सुना कर उसे मोम कर दूँ, लबों को वो दिलकश बयानी मिली है। मेरी ज़िन्दगी में वो आया है जब से, जहां की मुझे हुक्मरानी मिली है । लड़कपन,जवानी, बुढ़ापा भुला दूँ, ख़यालों की दुनिया सुहानी मिली है। नहीं भूल पाओगी अब ज़िन्दगी भर, ‘ज़िया’ तुमको ऐसी निशानी मिली है। ग़ज़ल 2 मायावी जीवन से इंसानों ने इतना प्यार किया, सिर्फ़ तबाही का ही अपनी सारा आविष्कार किया। राम के जब किरदार पे उँगली लोग उठाते फिरते हैं, इंसानी तहज़ीब का आखिर फिर किसने विस्तार किया। दुनिया भर के अस्त्र शस्त्र तो रक्खे रह गये एक तरफ, सिर्फ़ कोरोना ने इंसानों का जीना दुश्वार किया। अक्सर मैं तन्हाई में ये बातें बैठ के सोचती हूँ, मेरी ख़ातिर अपना जीवन तुमने क्यों बेकार किया। घर के अंदर रहने का निर्देश दे दिया एक पल में, मोदी जी ने हिन्दुस्तान का ऐसे बेड़ापार किया। ग़ैरों का एहसान के मेरे मुश्किल वक़्त में काम आये, खूनी रिश्तों ने तो मेरे ऊपर हरपल वार किया। मैं तो तन्हाई की गोद में हर पल तन्हा रहती थी, वर्षों बाद ज़ेया ने मुझसे चाहत का इज़हार किया। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं अनुराग ग़ैर की ग़ज़लें आशुतोष कुमार की ग़ज़ल डाॅ राजेश तिवारी ‘विरल’ का शृंगार-गीत Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.