Saturday, May 18, 2024
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महेश कुमार केशरी की पाँच कविताएँ

1 – अब लगता है कि ये पूरी दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी …!
सुना है, धरती पर तीन
चौथाई खारा पानी है..और
समुंदर का जलस्तर भी लगातार
बढ़ रहा है..
धीरे-धीरे हमारे तटीय क्षेत्र गायब होते जा रहें हैं ..
एक समय के बाद बंबई बिला जायेगा…
आदमी ने कभी नहीं सोचा कि
इस धरती पर जो तीन चौथाई खारा पानी है ..
वो आखिरकार क्यों है ..?
क्यों , मीठे पानी के
सोते सूखते जा रहें हैं …?
क्यों… सूखती जा रही है
बूढ़ी ..गंडक और यमुना..
क्यों सूखती जा रही है ..
हमारी संवेदनाएँ …
स्त्रियों को लेकर …!
सभ्यता के शुरूआती दिनों से ही
स्त्रियाँ लगातार रोए जा रही है .. !
इनके रोने से ही ये समुंदर बने हैं…!
उनके रोने से ही मीठे जल के सोते सूखते जा रहें हैं..
और इन स्त्रियों के
लगातार रोने से ही हमारे समुद्र लगातार
बढ़ रहे हैं….
सुना है , ये जो खारा पानी है ..वो
स्त्रियों का दु:ख है ….
जो .. पृथ्वी पर तीन चौथाई
समुंदर के तौर पर पड़ा है…
स्त्री दु:खों को पी जाती है ..
बहुत बुरे वक्त में जो कि बहुत जल्द
ही आदमी का आयेगा
तब , शायद
खारे पानी की तरह ये तीन
चौथाई दु:ख भी पी जाती हमारी स्त्री …!
लेकिन , अब लगता है , कि ये पूरी दुनिया
एक दिन साबुत खारे पानी में डूब जायेगी
क्योंकि आजकल एक नयी कवायद
चल पड़ी है …
स्त्री को हिस्सों में काटकर फ्रिज
में रखने की कवायद….
फिर … दु:खों को पीने वाली स्त्री
इस धरती पर कहाँ बचेगी ?
जो , सोचेगी .. हमारे संकट या अस्तित्व के बारे में…!
उस समय ये जो धरती का तीन चौथाई दु:ख है
उसको कौन पियेगा ?
नीलकंठ की तरह …!
2 – धरती पर के मौसम
मौसम और ऋतुओं के चक्र
को मैं नहीं मानता…
ये सब बेमानी बातें हैं
मैं नहीं मानता किसी आवृत्ति को
समय के चक्र या दुहराव
को मैं नहीं मानता ..
और , ना ही मैं मानता हूँ
मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियाँ …
मुझे ये
सब बेकार की
की बातें लगतीं हैं ..!
मेरा मानना है कि
धरती पर के सारे मौसम
स्त्री
से जुड़े हैं…
जब वो हँसती है ,
तो वसंत आता है ..
वातावरण में एक मादकता
सी छा जाती है ..
फूलने लगते हैं, फूल
गालों पर छाने लगती है
मुस्कन…
और
हर तरफ केवल खुशियाँ …
ही खुशियाँ दिखाई देने लगतीं हैं
सचमुच जब स्त्री हँसती है
तो वसंत आ जाता है .!
स्त्री जब उदास और
बहुत दु:खी होती है तो
पतझड़ आ जाता है …!
पेंड़ भी स्त्री के दु:ख से
उदास हो जाता है !
तो , गलने लगता है
स्त्री के दु:ख में..
और उसकी शाखों से पत्ते गायब हो जाते हैं ..
मानों कि वे स्त्री के उदासी से दु:खी हों ..
स्त्री …
जब ठठाकर हँसती है तो
तो , वैसाखी आती है….
घर – आँगन अन्न से भर
जाता है …
चारों ओर मँगल गान बजने
लगते हैं …
और लोग मनाने लगते हैं
लोहड़ी का त्योहार. ..
स्त्री जब रोती है..
तो सैलाब आ जाता है …
बाढ़ .. बीमारी..
प्राकृतिक आपदायें …
स्त्री के रोने से ही आती हैं …
इसलिये दुनिया को अगर
बचाना है , आपदाओं-विपदाओं
से तो स्त्री को हमेशा खुश रखो…!
3 – दु:ख
ईश्वर ने पृथ्वी बनाने
से पहले दु:ख बनाया था !
और उसके बाद बनाया
स्त्री को !
ताकि, स्त्री पृथ्वी के दु:ख को
समझ सके !
4 – दु:ख -2
ईश्वर ने जब पृथ्वी बनाई और
दु:ख भी
तब उसको सहने की ताकत केवल
स्त्री को दिया l
तभी तो दुनिया भर के दु:ख उठाती है , स्त्री!
मीलों पैदल चलकर , पहाड़ फलांगती
कुँओं और तालाब से भरकर लाती है पानी ,
तब जब आसमान आग उगल रहा होता है l
धरती की कोख उगल रही होती है लावा !
5 – कूड़ेदान पर नौकरी की बात लिखी थी…!
शहर में बेकारी बहुत
तेजी से बढ़ रही थी
ऐसे समय में जब बच्चों
का सिलेबस बार – बार
बदला जा रहा था ..
सत्ता को सावरकर
की जरूरत थी ….
या ये वो मानती थी
कि आजादी के योगदान में सावरकर
का योगदान था
इसलिये स्कूलों में
केवल सावरकर
को पढ़ाया जाये….
बाद में चुनाव के बाद वहाँ सरकार बदल
ग ई और ये तय हुआ कि कोर्स में पहले
जैसे मुगलों का इतिहास पढ़ाया जा रहा था
और टीपू सुल्तान ने कैसे अंग्रेजों के दाँत खट्टे
किये थें..
उनके शौर्य की
गाथायें पढ़ायी जायें..
दिलचस्प बात ये है कि हमारे राष्ट्रीय चैनल
पर बहस भी इसी बात पर हो रही थी …
कि बच्चे पाँच साल सावरकर को पढ़ेंगें
और पाँच साल टीपू सुल्तान को पढ़ेंगें
तो भला क्या सीखेंगें ?
ठीक उसी समय की बात है
जब मेरी नजर मुहल्ले के एक
कूड़ेदान पर पड़ी…
वहाँ एक विज्ञापन चिपका था
जिसपर
अप्रोच के लिये संपर्क का एक
नंबर लिखा था
जहाँ आई. ए. , बी.ए. और
बी. एस. सी. जैसी भारी – भरकम डिग्रियों
की शर्त पर नौकरी की बात लिखी थी l
शायद ये पहली बार मैनें अपने
जीवण में देखा था
कि नौकरी की बात कूड़े दान
पर लिखी थीं…!
सत्ता का ये एक नया शिगूफा था
कि, पुराने गड़े मुर्दों
के बहाने
ही राजनीति चमकाई जाये
दिलचस्प बात ये कि इससे ना सावरकर
को कोई मतलब था
ना ही टीपू सुल्तान को..!
और, आवाम को बरगलाने का सत्ता ने ये नायब तरीका खोज निकाल था !
महेश कुमार केशरी
महेश कुमार केशरी
महेश कुमार केशरी झारखण्ड के निवासी हैं. कहानी, कविता आदि की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. अभिदेशक, वागर्थ, पाखी, अंतिम जन , प्राची , हरिगंधा, नेपथ्य आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. नव साहित्य त्रिवेणी के द्वारा - अंर्तराष्ट्रीय हिंदी दिवस सम्मान -2021 सम्मान प्रदान किया गया है. संपर्क - keshrimahesh322@gmail.com
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