Sunday, May 19, 2024
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प्रदीप गुप्ता की कविता – शहरों का तिलिस्म (एक पुराने शहरों को समर्पित कविता)

शहर केवल ईंट गारे के बने नहीं होते
शहर केवल अपने विस्तार के कारण
या फिर भवनों की भव्यता के कारण नहीं जाने जाते.
इनकी सड़कों पर तुम महसूस कर सकते हो
जन जीवन का स्पंदन
हाथ में हाथ डाल कर चलते जोड़ों का प्यार
प्रेम में या फिर स्ट्रोलर में चलते बच्चों की किलकारियाँ
तेज़ी से डग भरते किशोरों का जोश
बेंत के सहारे चलते बुजुर्ग के चेहरे पर
बरस दर बरस अनुभव की खिंचीं लकीरें
कोने में कंबल लपेटे भीख माँगते युवा के चेहरे पर
अर्थव्यवस्था का धीमा क्रंदन
यहाँ के घरों की रसोई से आने वाली ख़ास महक
ठेलों पर बिकते तुरत फुरत व्यंजनों में
छोटी भूख को मिटाने का आमंत्रण
भवनों की पुरानी संरचना में अतीत की जुड़े रहने की चाहत
स्काईस्क्रैपर से वर्तमान को कुचल कर
आने वाले भविष्य की आहट
ऑफिसों से निकलती भीड़ के चेहरे पर
घर पहुँचने की आस में थोड़ी सी राहत .
और इन शहरों की जो तंग गालियाँ हैं
अपने आप में सदियों का लेखा जोखा समेटे हैं
इनका ठहरा सा जीवन
इस शहर को
पूरी तरह से यांत्रिक होने से रोके है.
यही शहरों का तिलिस्म है.
प्रदीप गुप्ता
प्रदीप गुप्ता
Freelance Media Journalists' Combine के प्रमुख हैं. संपर्क - filmandmusiccritic@gmail.com
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