1- हे गृहिणी मेरा नमन तुम्हें
(दृश्य-1)
मेरे घर में पहले अम्मा,
फिर मेरी पत्नी खाना बनाती थीं;
आजकल मेरी इंजीनियर बहू बनाती है।
पहले आटा माड़ती(गूँथती),
पींड बनाती (“डो” नहीं),
पालागन करके
एक तरफ रखती है;
फिर दाल में बघार लगाती है।
मैं देखता हूँ,अम्मा से बहू तक
इस काम में एक जैसी विधि,गति,यति, क्रम,लय;
गौरवान्वित होता हूँ,
इन संस्कारों और परंपराओं पर।
सुनता हूँ टीवी चैनलों पर-
“अब डो को 8 या 10 समान भागों में बाँट लें,ताकि रोटियाँ छोटी बड़ी न हो,एक -सी बनें।”
मुझे अच्छी तरह याद है
अम्मा,पत्नी,बहू ने कभी ऐसा नहीं किया।
रोटियाँ बनाना शुरू किया
पींड में से रोटी-भर आटा लिया
लोई बनाई,रोटियाँ बेलती गईं,सेंकती गईं
मजाल कि कोई रोटी छोटी ,बड़ी हो जाये,
गोलाई में कोई अंतर आ जाये या
कहीं मोटी, कहीं पतली हो जाये;
विश्वास मानो आपके केलीपर्स, माइक्रोमीटर्स
अचंभे में पड़ जाएँगे।
कमाल यह भी कि
हर रोटी का वज़न भी समान;
आप चाहो तो इलेक्ट्रॉनिक काँटे से तौल लो।
जब घर में कोई बड़ा अनुष्ठान आयोजित होता
पूड़ियाँ बनाने का जिम्मा अम्मा,चाचियों,बुआओं,भाभियों, जिजिओं,बहुओं
का होता;
सब मिलकर पूड़ियाँ बनातीं;
बनाने वाले हाथ अलग-अलग
पर सबकी पूड़ियों का भार समान,
समान आकार,समान मोटाई
एक जैसी गोलाई देखते ही बनती है।
और ये रसभरी ज्योनारें इतने भाव-विभोर होकर गातीं,
कि उनके आत्मीय भावों से ओत-प्रोत रसानुभूति से पूड़ियों भी मगन हो उठतीं
और सच में वे असीम स्वादिल तथा अनिर्वचनीय पौष्टिक हो जातीं।
क्या जादू भर दिया है इनके हाथों में,इनकी वाणी में
विधाता तुमने?
(दृश्य-2)
मेरे घर में पत्नी कुछ नहीं करती दिखती हैं
हाँ, दिन भर बहू को आदेश देने की उनकी
आवाज,साथ में बहू का “जी माँ जी”
अवश्य सुनाई देता रहता है।
माँ जी ! मिट्ठू,पीहू की कुछ फ्राकों की सिलाई खुल गयी है;
ठीक है, मशीन पर रख देना।
माँ जी मेरे गाउन की लम्बाई भी कुछ कम होनी है?
ले आओ,कितनी कम करनी है-
“तुम टेक्नोक्रेट्स यह मशीन चलाना क्या जानो!”
मशीन चल रही है-
माँ जी यह और,माँ जी यह भी…..
कैसे नहीं कहा जा सकता-
यह तो माँ-बेटी ही हैं।
2- ऐसी अद्भुत मेरी नानी
मेरी नानी सब कुछ जानें
कहना हम सब उनका माने।
बहुत सवेरे नानी जगतीं
मुझको भी उठना पड़ता है।
नानी सुबह घूमने जातीं
मुझको संग जाना पड़ता है।
मैं जब-जब भी दौड़ लगाता
तब तब दौड़ लगाती नानी।
मैं तो तेज दौड़ जाता हूँ
नहीं पकड़ पाती हैं नानी।
होम वर्क नानी करवाती
दीदू को भी रोज पढ़ाती।
पहले खुद नानी लिखती हैं
फिर दीदू ,मुझसे लिखवातीं।
स्वेटर बुनें डिजाइन दार
पत्ती-फूल लगें रसदार।
कुर्ते पाजामे मेरे सिलतीं
पहनू मैं ,पर नानी खिलती।
रोज सुनाती हमें कहानी
क्या सीखा?कहती फिर नानी।
नईs ,नईs पोयम सिखलातीं
ऐसी अद्भुत मेरी नानी।।