1- आदमी और कविता
सिर्फ आदमी ही नहीं बंटे हुए,
जाति, धर्म, संप्रदाय या वर्ण में,
इन दिनों जन्म लेती कविता भी,
ऐसे कई सांचों में ढल कर निकलती है,
यूं कहने भर को कविता का उद्देश्य था
आदमी को सांचों से मुक्त करना,
पर आदमी ने कविता को ही
अपने जैसे बांट दिया…..
2 – संभावना
जब सब कुछ खत्म होगा,
तब अवशेषों को समेटने के बजाय,
बुनुंगा कुछ ख़्वाब नए,
और ढूंढ़ना शुरू करूंगा नई संभावनाएं,
कि खत्म होने पर भी कई बार,
कुछ तो यकीनन बचा रहता है,
और असल में,
सब कुछ खत्म होने पर भी
अगर कोई संभावना बची रहे किसी ख्वाब की,
तो कुछ भी खत्म नहीं हुआ होता…
3 – नींद में जागते लोग
उन्हें पता चल जाता है सोते हुए भी,
कि पास कोई है जिसे अचानक तेज बुखार हुआ,
और वो खंगालने लगते उठ कर दवा का डिब्बा,
कि यकदम काले बादल घुमड़ कर आए
और वो उठ कर समेटने लगते भीगने से बचाने वाला सामान,
उन्हें पता लग जाता है नींद में किसी ख्वाब सा
कि दरवाजे पर किसी मेहमान ने दी दस्तक
और अपने आप ही मुस्कान चेहरे पर आ हाथ बड़ जाते सांकल पर,
उन्हें पता चल जाता है नींद के आगोश में ही
कि कोई है जिसे जरूरत उसकी इसी क्षण
और वो तत्परता से हाथ आगे बढ़ा देते हैं,
यूं ये नींद में जागने वाली प्रजाति
हर घर में होती है,
कहीं मां के रूप में, किसी जगह पिता के रूप में,
कहीं दादा दादी और किसी किसी घर में
किसी बच्चे के रूप में…..
4 – बेताल पच्चीसी
इस बार कथा में कुछ हेर फेर है,
राजा बेताल के कंधे पर झूल रहा,
कहानी को अपने हिसाब से सुन रहा,
इस बार बेताल के सिर के टुकड़े टुकड़े होना तय है
प्रश्न करे तो भी
और प्रश्न का उत्तर दे तो भी
हे राम…!

1 टिप्पणी

  1. #संभावना, पहले विनाश की तैयारी, फिर सृजन की आशा या संभावना??? विनाश क्यों? क्या गारण्टी है नया सृजन विकृत ना लगे।
    #कविता, ख़ुद नहीं जन्मी इन्सान ने पैदा किया, साँचा तो यहाँ से दूर तक है, दिमाग, सिर के साँचे में रहता है, तभी काम करता है… साँचा टूटा तो…

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.