ट्रांसफर होकर बरेली पहुंचने पर किराए के फ्लैट की खोज शुरू हुई  । लगभग एक माह के प्रयास के बाद बरेली  के इंदिरापुरम के उस के छोटे से अपार्टमेंट – वसंत अपार्टमेंट में , वैभव को किराए पर फ्लैट मिला। यह फ्लैट सेकंड फ्लोर पर था।मेट्रो शहरों के अपार्टमेंट की तुलना में , वसंत अपार्टमेंट  सही  अर्थो में  अपार्टमेंट  नही था। उस  सो काल्ड  अपार्टमेंट में मात्र 12 फ्लैट थे। ग्राउंड फ्लोर को नीचा करके पार्किंग बना दिया गया था । वहाँ पर सभी के लिये एक पानी का मोटर था और गेट पर तैनात  गॉर्ड के लिये एक छोटा रूम  था। कॉमन स्थान के सफाई के लिये एक नौकरानी थी । इन सबके लिये 2500 रुपये प्रति माह मेंटिनेंस शुल्क , हर फ्लैट वाले से  लिया जाता।
तीन फ्लोर के इस अपार्टमेंट में 12 फ्लैट थे। प्रत्येक फ्लोर पर तीन फ्लैट ।
यह अपार्टमेंट  गिरधारी जी के पुरुषार्थ का जीता जागता प्रतिफल था। दरसल इस अपार्टमेंट के मालिक गिरधारी लाल जी ही थे। इस अपार्टमेंट के 9 फ्लैट उन्होंने बेच दिया ।तीसरे फ्लोर के तीन फ्लैट उनके पास है और उनमें वे दो फ्लैट में दोनों  बेटे बहु, अपने बच्चों के साथ  रहते थे और तीसरे फ्लैट  में वह खुद अपनी पत्नी के साथ रहते थे।उन्ही के फ्लैट वाले किचन में सभी का  खाना बनता और सभी लोग वही खाना खाते। गिरधारी लाल जी का परिवार संयुक्त परिवार था । संयुक्त व्यापार था , संयुक्त आय थी , संयुक्त खाना था । सारा काम दोनों बेटे ही करते थे , जरूरत पड़ने पर गिरधारी लाल आगे आते थे। दोनों बेटे , बहुए , उनके बच्चे  ,गिरधारी लाल और उनकी पत्नी मुन्नी का मान करते थे।
इस अपार्टमेंट के व्यवस्था का काम एक फ्लैट ओनर के पास था , जिनका नाम वीरेश था।वही सभी 12 फ्लैट वालो से मासिक मेंटीनेंस शुक्ल लेता और खर्च करता।  8 फ्लैट किराए पर उठे थे , इन्ही में से एक फ्लैट वैभव ने किराए पर लिया था।एक मे वीरेश रहता था। वीरेश ही इस अपार्टमेंट का मेंटीनेंस का काम देखता था।
वैभव व उसकी पत्नी रीता ने जब फ्लैट लिया तो सबसे पहले कर्टसी काल करने वीरेश आये। उन्होंने अपना परिचय दिया,
– मैं वीरेश हूँ । फर्स्ट फ्लोर पर रहता हूँ।कोई जरूरत हो तो बताइयेगा।
रीता ने सबसे पहले कहा ,
– झाड़ू बर्तन वाली नौकरानी मिल जाती तो ?
– मैं गार्ड से कहे दे रहा हूँ।… वह कल सुबह अरेंज कर देगा। अन्य कोई दैनिक सामान मंगाना हो तो गॉर्ड से कह दीजिएगा।
– जी।
वैभव बोला।
– मैं अपना मोबाइल नंबर दे दे रहा हूँ , कोई जरूरत हो तो फोन कर लीजिएगा।वैसे इस अपार्टमेंट के लोगो का एक व्हाट्सएप  ग्रुप भी बना है , आप लोग अपना न0 दे ,तो ग्रुप में जोड़ दिया जाएगा।
यह कहकर वीरेश ने अपना मोबाइल  नंबर दे दियाऔर वैभव का नंबर वसंत अपार्टमेंट व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ दिया।
धीरे धीरे रीता ने फ्लैट सेट कर लिया। पर्दे , मशीने , टी वी , आदि सेट हो गयी और दो नौकरानियां , तय हो गयी । वे अपना अपना काम करने लगी । दिनचर्या सामान्य रूप से चलने लगा। उस अपार्टमेंट की अन्य महिलाओं से रीता की धीरे धीरे जान पहचान हो गयी। सब्जी , फल व ब्रेड वाला जब अपार्टमेंट के गेट के सामने आता तो सभी महिलाएं एक साथ ही जाकर सब्जी लेती।उस समय आपस मे थोड़ी बात हो ही जाती।
12 फ्लैट वाले अपार्टमेंट  बहुत कम चीजे कॉमन थी ,जो सभी को जोड़ती थी – पार्किंग , मोटर पंप , गॉर्ड , लिफ्ट , होली और न्यू ईयर पार्टी। इन सभी स्थानों और अवसरों पर सभी को पता चल जाता कि इस अपार्टमेंट का मूल मालिक कौन है ? गिरधारी लाल जी व उनके परिवार का प्रभाव हर जगह दिखता। पार्किंग में  सबसे अच्छी गाड़िया और अधिक संख्या में गाड़िया उन्ही के परिवार की रहती है। गार्ड उनके परिवार के सेवा में लगा रहता , वहाँ से खाली होता तो गेट की चौकीदारी करता या किसी अन्य परिवार का छोटा मोटा काम करता । होली दीपावली के कामन  फंक्शन में चंदा तो सभी से समान रूप से प्रति फ्लैट   लिया जाता लेकिन आयोजन होते समय गिरधारी लाल जी का परिवार आयोजक की भूमिका में आ जाता और बाकी 9 फ्लैट वाले गेस्ट के रूप में।इन आयोजनों में केवल इस अपार्टमेंट के निवासियों को रहना चाहिये लेकिन गिरधारी लाल जी अपने ससुराल और बहन के परिवार के सदस्यों  को भी बुलाते। अवशेष 9 परिवार वाले यह आपत्ति नही कर पाते कि यह आयोजन तो केवल इस अपार्टमेंट के लोगो के लिये है। इसके विपरीत यदि , इस आयोजन का खर्च , जमा चंदा से अधिक हो जाता तो इसकी प्रतिपूर्ति ,पुनः 12 फ्लैट में रहने वालों  पर चंदा लगाकर किया जाता।
                    रीता को यह बात समझ मे नही आयी । ऐसा क्यों हो रहा है  ? इसके पूर्व गाज़ियाबाद के जिस अपार्टमेंट में वे रहते थे , वहा तो सब बराबर थे। उसने  वैभव से कहा,
– यह सही नही है।
– यह मेट्रो शहर  नही है ।इन शहरों में स्थानीय एलिमेंट बहुत प्रभावी रहता है।
वैभव ने समझाते हुए उत्तर दिया ।
– तो।
–  छोड़ो यह लफड़ा।
लेकिन रीता का मन नही माना।वह इस ताक में थी उसे  इसके पीछे की कहानी पता चल सके। इस अपार्टमेंट में रहने वालों में गिरधारी लाल का परिवार व वैभव का परिवार सबसे पुराना था ।गिरधारी की पत्नी मुन्नी  सरल थी , लेकिन उनसे यह बात तो पूछी नही जा सकती ।  वैभव की माँ कभी कभार मिल जाती । रीता ने उनसे संपर्क बढ़ाया । कई बार   पूछने पर , कही न कहने ताकीद करते हुए वैभव  की माँ ने बताया  ,
  – गिरधारी लाल जी व उनका परिवार , आज कई दुकानों , पम्प , जमीनों आदि का मालिक है।लेकिन पहले ऐसा नही था ।  गिरधारी लाल जी के पिता गांव के मजदूर थे। वे दिन भर खटते ,तो परिवार का पेट भरता । उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी गिरधारी लाल को जूनियर हाई स्कूल तक पढ़ाया और जैसे ही गिरधारी लाल जवान हुए , उन्हें नौकरी करने के लिये  शहर भेज दिया। गिरधारी लाल जी चाय पकौड़ी की दुकान ,  कपड़े की दुकान , देसी शराब खाने से होते हुए  एक पेट्रोल पंप पर सेल्स मैन बन गए।उसी समय उनके पिताजी ने पास गांव की एक लड़की, जो वहां के एक बड़े खेतिहर के घर पर नौकरानी का कार्य करती थी  – मुन्नी ,से उसकी शादी कर दी  ।
              पत्नी मुन्नी ने जी जान लगाकर  गृहस्थी चलाई , गिरधारी का साथ दिया । कम तनख्वाह में गुजारा कर किया , यदि पैसा कम पड़ा तो दूसरे के घर मे चौका बर्तन किया , लेकिन गिरधारी को अपने काम के लिये फ्री छोड़ रखा। पंप के पास के गांव में एक कमरे में दोनों रहने लगे। पत्नी मुन्नी के सहयोग से वे घर की चिंता से मुक्त होकर ,पंप पर उन्होंने पूरी निष्ठा व मेहनत से काम  किया ।
किसी निजी  कारण से जब पंप मैनेजर ने काम छोड़ा तो ईमानदारी , मेहनत व निष्ठा के आधार पर, पंप मालिक ने नियमित मैनेजर के तैनात होने तक , गिरधारीलाल को कार्यवाहक मैनेजर बना दिया गया। गिरधारी लाल ने इस अवसर को पहचाना और अपने मेहनत व निष्ठा को वैसे ही रखा।लगभग 6 माह के गिरधारी लाल के मैनेजरी में पंप मालिक की आय बढ़ गयी क्योंकि बिक्री बढ़ी और खर्चा कम हुआ।इससे प्रसन्न होकर  पंप मालिक ने गिरधारी लाल को  मैनेजर बना दिया।
गिरधारी लाल ने पक्की मैनेजरी में  न केवल  पंप की बिक्री बढ़ाई , वरन मैनेजरी के सभी गुणों को सीखने का प्रयास किया , जैसे  – मालिक को खुश रखना ,बिक्री बढ़ाना , अधिक मुनाफा कमाना , पम्प के अन्य कर्मचारियों को पंप से  बांध कर रखना और उनसे बेस्ट काम लेना, तेल कंपनियों के विक्रय प्रवंधको और उनके उच्चाधिकारियों  से अच्छा संबंध रखना , कंपनी के पेट्रोल डिपो से अच्छे संबंध रखना, क्षेत्र के बड़े किसानों , प्रतिष्ठित आदमियों से सीधा संबंध रखना आदि। कार्य के सभी क्षेत्रों में उसके प्रयास दिखने लगे ।धीरे धीरे पंप मालिक को इतना विश्वास हुआ कि उन्होंने इस पंप की दैनिक और साप्ताहिक  मोनिटरिंग छोड़ दी। इस अवधि का उपयोग गिरधारीलाल ने तेल कंपनियों के अधिकारियों से बेहतरीन रिश्ते बनाने में लगाये। इन रिश्तों को मजबूत  करने में जो पैसा खर्च हुआ , वह पंप स्वामी का हुआ लेकिन व्यक्तिगत रिश्ते गिरधारी लाल के मजबूत हुए।
इसका फायदा आगे चल कर गिरधारी लाल को मिला ।  जैसे ही एक कोको पंप , घाटा होने के कारण , बंद होने की कगार पर पहुंचा , तेल कंपनी अपना निवेश बचाने के लिये , उस कोको पंप को अस्थायी रूप से चलाने के लिये , गिरधारी लाल  को दे दिया।गिरधारी ने इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार किया और उस पंप को फायदे में ला दिया । इस प्रगति ने उसे तेल कंपनी के अधिकारियों की दृष्टि में उपयोगी बना दिया। इस के बाद उसे पहला पंप  मिला।
गिरधारी लाल की इस उपलब्धि तक पहुंचने में , उनकी पत्नी मुन्नी ने उनको पारिवारिक मोर्चे पर बिल्कुल मुक्त रखा ताकि गिरधारी लाल अपनी नौकरी पूरा समय दे सके ।उस समय तक मुन्नी  2बेटो की मां बन गयी थी । सुबह 6 बजे उठकर रात 11 बजे तक मुन्नी  चलती रहती ,  काम करती रहती , बच्चों की देख भाल करती रहती  । पति गिरधारी लाल जी एक एक पैसा बचाने और उसे जोड़ने में मदद करती रही।
जब गिरधारी लाल  सेठ जी के पंप के कार्यवाहक मैनेजर बन गए , तब गिरधारी लाल ने अपने पिता को भी गावँ से अपने पास बुला लिया । मुन्नी  , कंजूस गिरधारी लाल द्वारा घर खर्च के निमित्त दिये गए पैसे में ही , अपने ससुर , अपने पति और अपनी गृहस्थी चलाने लगी।  बच्चे भी दो हुए , लेकिन गिरधारी लाल घर खर्चे की सीमा पर , नियंत्रण बनाये रखे।मुन्नी ने कभी भी गिरधारी लाल के फैसले पर प्रश्न नही उठाया।जो गिरधारीलाल बताते रहे , वही , अपनी पूरी मेहनत से करती रही। बेटो की पढ़ाई , काम , विवाह – सब में गिरधारी लाल का ही निर्णय प्रभावी रहा। मुन्नी देवी तो इसी में बहुत खुश थी , चाय पकोड़ी की दुकान पर काम करने वाले गिरधारी पंप के मालिक बन गए और चूल्हे के लिये लकड़ी बीनने वाली मुन्नी , आज पंप मालिक की पत्नी है , स्वामिनी है।मुन्नी इस पर गदगद रहती।
पैसे की उपलब्धता , संपर्कों में समृद्धि के कारण गिरधारी लाल के व्यापार का विस्तार होता गया । भिन्न क्षेत्रो में विस्तार होता गया। बढ़े बेटो ने व्यापार सम्हाल लिया  । गिरधारी लाल ने कई जगह जमीन और  प्लाट खरीदे ।इसी में से पहले प्लाट पर उन्होंने 12 फ्लैट का वसंत अपार्टमेंट  बनाकर , उसमे 9 फ्लैट  बेच दिया और 3 को अपने पास रख लिया , जिसमे वे खुद और उनके बेटो का परिवार रहता था ।यहाँ पर गिरधारी लाल , उनके दोनों बेटे , बहुएं शान शौकत से रहती थी , जबकि मुन्नी देवी सादगी से रहती , पति व बच्चों को देखकर खुश होती रहती।पूरे अपार्टमेंट में मुन्नी देवी की सरलता , सादगी के चर्चे होते रहते। बीच मे भी रीता की वैभव की माँ से मुलाकात हुई  , लेकिन इस  टॉपिक पर बात  नही हो पाई।
गिरधारी लाल के यहाँ काम कर रही मेड में से  एक महरी , रीता के यहाँ भी काम करती । एक दिन उसी ने बताया  कि गिरधारी लाल ,एक पॉश लोकल्टी में एक बड़ा सा मकान बनवा रहे हैं ।इस मकान को  जोर शोर से बनवा रहे हैं , जिसमे वह और उनके दोनों बेटो का परिवार रहेगा । उसमे अधिक  गाड़ियों के पार्किंग की व्यवस्था है, बेटो के बच्चों के खेलने की पर्याप्त जगह होगी , नौकर और ड्राइवर के लिये सर्वेंट रूम रहेगा। जब वह मकान बन जायेगा , तो ये लोग अपार्टमेंट छोड़कर चले जायेंगे।
                          वैभव की माँ  , जब रीता से  मिलती तो बताती ,
– बहुत शानदार मकान बन रहा है। दोनों  बेटो और गिरधारी लाल  के लिये अलग अलग सुइट रहेंगे। ड्राइंग रूम , गेस्ट रूम , किचन , डाइनिंग हाल  – कॉमन रहेगा । सब साथ सुबह का ब्रेक फ़ास्ट करेंगे और डिनर साथ करेंगे।  गिरधारी लाल  और उनकी बीबी  मुन्नी देवी – अब आराम करते हुए राज करेंगी । नाती पोतों के साथ खेलेंगी। दोनों  बेटे बाहर के पंप , व्यवसाय सम्हालेंगे , बहुए घर में तैनात कुक , नौकरानी के साथ घर  सम्हालेंगी , किटी जॉइन करेंगी  और इंजॉय करेंगी। मुन्नी देवी बहुत खुश हैं कि गांव की झोपड़ी  से शरू हुए  जीवन मे , बरेली के इतने बड़े मकान में रहने को मिलने वाला है। पूरा मकान खुला खुला रहेगा। फ्लैट जैसा बंद बन्द बन्द  नही रहेगा ।पेड़ पौधे ,लान, हरियाली होगी ।
बीच मे जितनी बार वैभव की माँ मिलती वे उनके नए मकान की जरूर चर्चा करती और बताती कि नए मकान को लेकर मुन्नी देवी बहुत ही उत्साहित हैं।वे प्लान बना रही है कि घर कैसे सजाएँगी , लॉन में कौन पौधे लगेंगे । यह भी बताती कि मुन्नी देवी  का नेचर चुप चाप शांत रहती है ।  पहली बार उनको इतना उत्साहित  देख रही हूँ , जैसे लगता है यह नया मकान ,उनकी बहुत पुरानी इच्छा है या गुप्त इच्छा हो।
रीता कहती ,
– हो सकता हो ।ईश्वर करे , उनके अरमान पूरे हो।
              मकान बनने की चर्चा होते  सुनते सात माह बीत गए। वैभव की माँ बताती ,
– बहुत बड़ा मकान हैं। फिनिशिंग होने में 6 माह लग जाएगा । लगता है मुन्नी देवी कि इच्छा पूरी होने वाली है। वह बच्चों जैसी उत्साहित हैं।
फिर बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि  मुन्नी देवी  की तबियत कुछ खराब रहने लगी ।
कुछ दिन बीतने पर उस अपार्टमेंट मे गिरधारी लाल के नए मकान के निर्माण के  साथ साथ उनकी पत्नी  मुन्नी की बीमारी की भी चर्चा होने लगी ।  पता चला कि कुछ दिन तो गिरधारी की पत्नी मुन्नी देवी ने खुद ध्यान नही दिया । बाद में उन्होंने बेटो  से कहा  कि उनकी तर्बियत ठीक
नही है , उन्हें डॉक्टर को दिखला दे। बेटो ने अपनी व्यस्तता का रोना रोते हुए , पापा  के साथ  जाकर दिखाने के लिये कहा ।मुन्नी ने जब गिरधारी से कहा तो गिरधारी ने बात उड़ा दी कि इतने दिन में तुम कभी बीमार पड़ी हो क्या ? नही पड़ी हो। देसी इलाज कर लो ठीक हो जाओगी।पति व बेटो ने ध्यान नही दिया तो बहुओ ने भी ध्यान नही दिया  ।मुन्नी देवी की हालत दिन ब दिन खराब होती गयी । लेकिन गिरधारी लाल , उनके बेटो बहुओं की दिनचर्या और नए मकान की फिनिशिंग की गति पर कोई असर नही पड़ा। पूरे परिवार की हनक ऐसी थी कि कोई डॉक्टर से दिखाने की बात नही कह सका। पुराने संपर्कों के कारण  वैभव की माँ कुछ कह सकती थी । उनकी मिन्नत के बाद , गिरधारी लाल जब मुन्नी देवी को  दिखाने गए तो डॉक्टरों ने कई तरह के टेस्ट बताए । इन्हें कराते कराते एक सप्ताह बीत गया। इस बीच गिरधारी लाल निर्माणाधीन मकान देखने नही जा पाए।इसी बीच , खाने की मेज पर , रात का खाना खाते हुए बड़े बेटे ने कहा ,
-, पापा , मकान की फिनिशिंग लगभग  हो गयी है।एक दो दिन का काम बाकी है।  गृह प्रवेश का मुहूर्त निकलवा लिजिये।
–  जल्दी का कोई मुहूर्त निकलवा लो । गृह प्रवेश के बाद से सामान शिफ्ट कराना शुरू कर दो ताकि जल्दी हम लोग उस मकान में शिफ्ट हो जाय ।
-, जी पापाजी ।
दोनों बहुए एक साथ बोली।
– हम लोग कितने महीनों से इस दिन का इंतजार कर रहे हैं।
बड़ी बहू बोली।
– जी दीदी।यहाँ कितना बन्द बन्द है। बच्चे भी खेल नही पाते।
छोटी बहू बोली।
बड़े बेटे ने मुहूर्त निकलवाया और एक  सप्ताह बाद का गृह प्रवेश का मुहूर्त निकला।
इसके अगले दिन पता चला कि इलाज में देरी की वजह से मुन्नी देवी की बीमारी अंतिम स्टेज में पहुंच चुकी है और डॉक्टर ने गिरधारी लाल को बताया कि  मुन्नी देवी कुछ सप्ताहों / महीनों की मेहमान है।
जैसे ही यह बात अपार्टमेंट में फैली । सबने , विशेषत महिलाओं ने ,अफसोस जताया कि मुन्नी देवी नए मकान को लेकर कितना उत्साहित थी और नया मकान उस समय तैयार हुआ , जब वे इतनी खराब स्थिति में है।  अपार्टमेंट के लोग सोच रहे थे कि मुन्नी देवी की बीमारी के कारण गृह प्रवेश टल जाएगा। लेकिन गृह प्रवेश निर्धारित तिथि पर ही हुआ और उसके बाद उन लोगो की सामान शिफ्टिंग शुरू हो गयी । पूरे अपार्टमेंट में इस बात की सराहना होने लगी कि गिरधारीलाल और  उनके बेटे बहूओ ने  जीवन के अंतिम समय मे मुन्नी देवी की अधूरी इच्छा(नए मकान में रहने की )  को सम्मान दिया ।सामान शिफ्टिंग होते ही वे लोग अपार्टमेंट छोड़कर अपने नए मकान में  चल गए।
एक सप्ताह बाद , एक दिन सुबह , गिरधारी लाल के यहाँ खाना बनाने वाली कुक नीचे , सब्जी के ठेले पर  सब्जी खरीदती मिली ।उस दिन खरीदने वाले दो ही थे।
रीता ने पूछा ,
– अब यहाँ किसके यहाँ काम कर रही हो ?
– उन्ही के यहाँ।
– वो लोग तो शिफ्ट हो गए न ?
– हा ।
– फिर?
वह इधर उधर देखकर , दबे स्वर में  , कान के पास आकर बोली,
– मुन्नी देवी जी यही है ।उनकी तबियत बहुत खराब हो गयी थी    डाक्टर ने उनका जीवन कुछ हफ़्तों का बताया था। नए मकान में शुभ  से शुरुआत हो इसलिये उन लोगो ने मुन्नी देवी जी को यही छोड़ दिया । मैं सुबह शाम आकर उनका  सारा   काम करती हूँ ।रात को यही सोती हूँ।
रीता स्तब्ध होकर सुन तो ली लेकिन उसे यह समझने में समय लगा । थोड़े समय बाद जब नार्मल हुई तो उसे लगा  कि  वह मेट्रो शहर से कॉस्मोपोलिटन शहर मे आ गयी  है क्या ?
कई काव्य-संग्रह और पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां-कविताएँ प्रकाशित. सम्पर्क - amitkumar261161@gmail.com

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