अनिल, अमन और अनुज, तीनों भाईओं की उम्र 50 साल से ऊपर हो गई थी, फिर भी, उनके बीच बेइंतिहा प्यार था। हालांकि, जब वे छोटे थे तभी उनके पिताजी का इंतकाल हो गया था। उस समय छोटा भाई अनुज आठवीं कक्षा में पढ़ता था। संघर्ष के दौर में भी उनके बीच कभी कोई स्थायी मन-मुटाव नहीं हुआ। तीनों अलग-अलग शहरों में रहते थे, लेकिन रामनवमी में वे सभी अपने पैतृक गाँव 10 दिनों के लिए जरूर आते थे और सभी मिलकर भगवान राम का जन्मोत्सव धूम-धाम से मानते थे। पूरे घर में उत्सव सा माहौल रहता था।
माँ, राम सखी देवी अनपढ़ थीं, लेकिन मानसिक रूप से बहुत ही सबल थीं। पति की मृत्यु के बाद भी छोटे-छोटे बच्चों की अच्छे तरीके से परवरिश कीं, उन्हें शिक्षित किया और आत्मनिर्भर बनने में भी मदद कीं। आज सभी भाई माँ की बदौलत ही अपने पैरों पर खड़े थे। सभी बेटों का घर भी बसवाया था माँ ने। घर के मोतियों को एक धागे में पिरोकर रखा, जबकि कोई रिश्तेदार माँ को गाँव आकर रहने के लिए बोल रहा था तो कोई बेटों की पढ़ाई छुड़वा देने के लिए कह रहा था। पिताजी की मृत्यु के बाद कई बार भाइयों के बीच में या फिर माँ-बेटे में अनबन हुई, लेकिन माँ ने हर बार मामले को संभाला और स्थिति बिगड़ने नहीं दी।
गाँव में पिताजी ने एक छोटा सा घर बनवाया था। माँ, ताउम्र पति द्वारा बनाए गए घर में रहना चाहती थीं। कभी-कभी मझले बेटे के जिद्द करने पर उसके पास चली जाती थी और कभी-कभार छोटे बेटे के पास। बड़े बेटे के पास जाना संभव नहीं था, क्योंकि वह अकेला रहता था। उसकी पत्नी भी नौकरी करती थी, लेकिन गाँव में माँ के साथ रहती थी और वहीं से नौकरी पर जाती थीं। गाँव शहर से सटा हुआ था।
फैमली के नाम से एक व्हाट्सग्रुप बना हुआ था, जिसमें तीनों भाइयों के पारिवारिक गतिविधियों को नियमित रूप से पोस्ट किया जाता था। जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ में या फिर बेटियों और दामाद को नई नौकरी मिलने पर, सैलरी पैकेज में इजाफा होने पर या इंक्रीमेंट बढ़ने पर ग्रुप वीडियो कॉल करके सभी को बधाई दी जाती थी। कभी-कभार जब मन में खुशियाँ ज्यादा हिलोरें लेने लगती थी, तब जोमैटो या स्विगी के जरिये सभी के घरों में मिठाई या लंच या फिर डिनर के पैकेट भिजवा दिये जाते थे।
कोरोना महामारी के दौरान राम सखी देवी को 2 बार कोरोना हुआ था, लेकिन ज्यादा उम्र होने के बावजूद भी जल्द ही वे ठीक हो गई थीं, लेकिंज कोरोना खत्म होने के कुछ महीनों के बाद उन्हें लकवा मार दिया। शरीर के बाएँ तरफ के पैर और हाथ ने काम करना बंद कर दिया। मुंह भी टेढ़ा हो गया और बोलने में दिक्कत होने लगी। साफ-साफ वे नहीं बोल पा रही थीं, बोलने की जब भी कोशिश करती थीं, गले से घर-घर की आवाज निकलती थी।
चूंकि, बड़े भाई की कोई लाईबिलिटी शेष नहीं थी। इसलिए, मां की देखभाल के लिए उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआरएस) ले लिया। उनकी दो बेटियाँ थीं, जिनकी शादी हो चुकी थी और बेटी और दामाद दोनों नौकरी करते थे। माँ का स्वास्थ जब कुछ स्टेबल हुआ, तब अमन और अनुज अपनी नौकरी पर वापिस लौट गए, किंतु, कुछ दिनों के बाद माँ की तबीयत फिर से खराब रहने लगी। दरअसल, बड़े भाई माँ की देखभाल ठीक से नहीं कर पा रहे थे और उनकी फिजिओथेरेपी भी ठीक से नहीं हो पा रही थी। इसलिए, अमन माँ को अपने पास ले आया।
अमन धावक था। वह पहले भी माँ को सिर्फ 45 दिनों में अपने पैरों पर खड़ा कर चुका था, जबकि माँ को पैर की जांघ में मल्टीपल फ्रेक्चर था। इस बार भी अमन ने माँ को 2 महीनों में अपने पैरों पर खड़ा कर दिया। वे अपने बाएँ हाथ का भी फिर से इस्तेमाल करने लगीं और साफ-साफ बोलने भी लगीं। कुछ महीनों के बाद अमन का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक माँ बाथरूम में गिरीं और उनका कूल्हा टूट गया। ऑपरेशन सफल रहा। वे अस्तपताल से डिस्चार्ज भी हो गईं। वे वाकर के सहारे चल भी रही थीं। लगा, अब माँ जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगी, लेकिन डिस्चार्ज के तीसरे दिन अचानक से सुबह 10 बजे मैसिव हार्ट अटैक आया और वे स्वर्ग सिधार गईं।
माँ के काल-कवलित हुए 11 महीने बीत चुके हैं, इस अल्प अवधि में भाइयों के बीच का प्यार काफी कुछ दरक गया। भाइयों और परिवार के बीच में खुद ब खुद दूरियाँ बढ़ रही थी। अनुज की बड़ी भाभी से पहले खूब बातचीत होती थी, लेकिन पिछले 11 महीनों में मुश्किल से 2 से 3 बार ही बातें हुईं, जबकि इस बीच अनुज 1 महीना अस्तपताल में भर्ती रहा था। उसकी बेटी भी 3 महीनों तक बीमार थी। 2 महीना वह भी अस्तपताल में भर्ती थी। इस दौरान अनुज की बेटी और पत्नी का जन्मदिन भी था। फिर भी, किसी का कोई फोन नहीं आया। सिर्फ व्हाट्स एप पर “टेक केयर” और “हैपी बर्थ डे” पोस्ट कर दिया गया।
दूरियाँ दोनों तरफ से बढ़ रही थीं, इन 11 महीनों में अनुज ने भी बड़ी भाभी, भैया और मझली भाभी से बातचीत फोन पर या आमने-सामने करने की पहल नहीं की। हाँ, मझले भाई से अनुज की कभी-कभार बातचीत हो जाती थी। मझले और छोटे दामाद ने गृह प्रवेश में आने का न्योता दिया था अनुज को, लेकिन किसी वजह से वह समारोह में शामिल नहीं हो सका। देवरानी या जेठानी के बीच दूरभाष पर भी बातचीत होने बंद हो गए थे। बेटी और दामाद से भी बातचीत नहीं होती थी।
अब तीनों भाइयों के बीच संपर्क का एकमात्र सूत्रधार व्हाट्सएप रह गया था। बातचीत केवल मैसेज तक सिमटकर रह गई। वीडियो कॉल या ग्रुप वीडियो कॉल करना बंद हो गया। इस साल दीवाली में अमन और अनुज पैतृक गाँव नहीं पहुंचे, जिसके सभी के अपने-अपने कारण थे, किसी के बच्चे की परीक्षा चल रही थी, तो किसी को छुट्टी नहीं मिली तो किसी के पास हवाई जहाज के टिकट खरीदने के पैसे नहीं थे। सबकुछ स्वाभाविक रूप से होता चला जा रहा था। किसी की कोई गलती नहीं थी। शायद, सभी को आपस में जोड़ने वाली कड़ी माँ अब नहीं थीं। नहीं तो पिछले 27 सालों से ऐसा कभी नहीं हुआ था।
सतीश कुमार सिंह
मोबाइल-8294586892
सहायक महाप्रबंधक (ज्ञानार्जन एवं विकास)
भारतीय स्टेट बैंक
अहमदाबाद,
पिन कोड-380001
गुजरात
हाँ जब तक माँ होती है तभी तक मोतियों को जोड़ने वाले धागे का काम करती है और उसके जाते ही सब कुछ बिखर जाता है और सबके अपने परिवार और घर हो जाते हैंं।
वर्तमान वृहत् परिवार की एक स्पष्ट छवि उकेरी है।
हाँ जब तक माँ होती है तभी तक मोतियों को जोड़ने वाले धागे का काम करती है और उसके जाते ही सब कुछ बिखर जाता है और सबके अपने परिवार और घर हो जाते हैंं।
वर्तमान वृहत् परिवार की एक स्पष्ट छवि उकेरी है।