रवि घड़ी हो गया है। निगाह घंटे की सुई, हाथ मिनट की और दिल सेकंड दर सेकंड हांफ रहा है। सिडनी में रात जवान हो चुकी है। नौ बजकर 40 मिनट। यानी भारत में अभी शाम के सवा पांच बजे होंगे, रवि हिसाब लगाता है। तसल्ली नहीं होती तो दिल्ली का लोकल टाइम गूगल करता है। 5 बजकर 10 मिनट। वह झल्ला जाता है। टाइम डिफरेंस बकवास चीज़ है, वह सोचता है। पूरी धरती पर एक साथ रात क्यों नहीं हो सकती! फालतू का सिस्टम है। रात का अंधेरे से क्या लेना-देना है। जिन नॉर्डिक देशों में गर्मियों में सूरज छिपता ही नहीं है, वहां क्या रात नहीं मानी जाती! अंधेरा उजाला सब मन का वहम है। जो नाइट शिफ्ट करते हैं, वे जागते ही हैं ना रात में।
रवि कुर्सी हो जाता है। टांगें हैं पर चल नहीं सकता। उसे भारत में साढ़े पांच बजने का इंतजार करना है। साढ़े पांच बजे पत्नी कॉल करेगी। रोज करती है। दस मिनट के लिए बात होती है। उसके बाद वह कोचिंग क्लास चली जाती है। ऑस्ट्रेलिया आने के लिए उसे अंग्रेजी का एग्जाम पास करना है, जिसके लिए कोचिंग ले रही है। इसी तरह रवि का दिन अस्त होता है। पर आज नहीं। आज शुक्रवार है। ऑस्ट्रेलिया आए उसका 50वां शुक्रवार। आज वह अकेला नहीं सोना चाहता। उसने तय कर लिया है, पब जाएगा, बियर पिएगा और…
‘और’ पर रवि अटक जाता है। जो बात खुद से कह नहीं पा रहा, वो करेगा कैसे! करना है, आज तो करना है। वह कुर्सी से वापस घड़ी होने की कोशिश करता है और घड़ी से फोन। फोन चुप है। साढ़े पांच नहीं बजा रहा है। वह आइना होने की कोशिश करता है। वह सफेद कमीज होने की कोशिश करता है। नीली जीन्स और खाकी एस्पाड्रिलेस होने की कोशिश करता है।
एस्पाड्रिलेस… एस्पाड्रिलेस… एस्पाड्रिलेस… वह दोहराता है। उसने नया शब्द सीखा है। बिना फीतों के स्नीकर्स को एस्पाड्रिलेस कहते हैं। कुछ दिन पहले ही उसने ये जूते खरीदे हैं। खाकी रंग के जूतों के तलवे मोटे काले धागे से सिले हैं। भारत में इतने महंगे जूते खरीदने की उसे कभी जरूरत नहीं लगी और हिम्मत नहीं हुई। यहां आकर वह बदल रहा है। ऑस्ट्रेलिया आने के बाद उसने कई नई चीजें सीखी हैं। खाना बनाना। कपड़े धोना। अकेले बियर पीना। बार्बेक्यू करना। सुपरमार्किट में ट्रॉली लेकर खरीदारी करना। अंग्रेजी में लगातार बात करना। खुद से कार में पेट्रोल डालना।
बहुत कुछ नहीं भी सीख पाया है। जैसे सी-फूड खाना। मांस खाना और सी-फूड खाना अलग-अलग बातें हैं। रवि को समुद्र तो पसंद आया पर उसकी गंध नहीं भायी। कुदरत की हर खूबसूरत देन अलग-अलग इंद्रियों के लिए है। फूल नाक के लिए है, जीभ के लिए नहीं। वैसे ही समुद्र आंखों के लिए तो है, नाक के लिए बिल्कुल नहीं। यह रवि का निष्कर्ष है जिस पर वह दर्जनों शामें सिडनी के अलग-अलग तटों पर बैठने के बाद पहुंचा है। हालांकि वह समुद्र तटों पर कुछ और सीखने जाता है। अकेला रहना। 
सिडनी आते ही सबसे पहले वह बोन्डाई बीच गया था। उस बीच को वह पहले से जानता था बोन्डी नाम से। भारत में टीवी पर ‘बोन्डी रेस्क्यु’ टीवी शो के जरिए उसने दर्जनों बार उस बीच को और उस पर टहलतीं, लेटीं और लहरों के साथ हिचकोले खातीं बिकीनी वाली लड़कियों को देखा था। यह सब उसे हमेशा रोमांचित करता था। इसलिए ऑस्ट्रेलिया आने के पहले ही वीकेंड पर वह बोन्डी पहुंचा, तब पता चला कि उसका नाम बोन्डाई है। लेकिन बोन्डाई बीच के साथ वही हुआ जो अक्सर रोमांच के साथ होता है। रोमांच मन में पलता है लेकिन असल के धरातल पर उसकी शक्ल एकदम अलग होती है। कल्पनाओं से अलग। जितनी भी चीजें हमें देखने-सुनने-खाने-पीने आदि से पहले मायावी लगती हैं, असल में दुनियावी ही होती हैं। बोन्डाई की माया को रवि ने ऐसा ही सादा पाया। वहां मौजूद युवाओं की भीड़, पर्यटकों के चोचले और दोनों ओर से चट्टानों का घेरा उसे अच्छा नहीं लगा। और कतई अच्छी नहीं लगी वो गंध, जो समुद्र, हवा और नमी के घालमेल से बन रही थी।
सहकर्मियों से पता चला कि सिडनी के आस-पास ही 20-25 बीच हैं। वह उन सब पर गया और हैरान हुआ। टीवी ने सिर्फ बोन्डाई दिखाया था तो रवि के लिए सिडनी का मतलब ही बोन्डाई हो गया था। पर ऐसा नहीं था। सब कितने खूबसूरत लगे थे उसे। मैनली की शाम, पाम बीच का आकार, डीवाई की ऊंचाई। हर जगह अलग थी। रोमांचक थी। और उसकी शक्ल असली थी। रवि पाम बीच पर लाइट हाउस से नीचे झांकता। छोटी सी पहाड़ी से ताड़ से पेड़ जैसा बीच नजर आता। धरती को समुद्र ने दोनों ओर से पिचका दिया है। पहाड़ी के ऊपर से सुनहरी बीच रवि को ताड़ का पेड़ नहीं एक तराशी हुई कमर नजर आती। उसे लगता उसकी संजीता पेट के बल लेटी है। वह दूर से उसकी दोनों ओर से तराशी गई नंगी कमर को देखता। उसका मन बेचैन हो जाता। वह घर चला जाता और पॉर्न देखकर खुद को शांत करता।
रवि ने दर्जनों शामें इन जगहों पर बिताईं। उसने अंग्रेजों की तरह शाम बिताना भी सीखा। समुद्र किनारे जाकर बैठ जाओ। बियर हाथ में लो और समुद्र को देखते रहो। उसने समुद्र होना सीख लिया था। और समुद्र से वह धीरे-धीरे बियर हो जाता। बियर से कब वह रात होता और रात से नींद, इसका पता वीकेंड पर कम ही चलता। 
पर जो चीजें वह अब तक नहीं सीख पाया है उनमें एक है अकेला होना।
कुछ लोग जन्मजात अकेले होते हैं। उन्हें अकेला होना सीखना नहीं पड़ता। वे सबके साथ भी उतने ही अकेले होते हैं जितने बिना किसी के साथ। और बाकी लोगों को अकेला होना सीखना पड़ता है। पड़ता है, इसलिए क्योंकि बिना इसके सीखे तो काम नहीं चलता ना। बिना अकेले हुए तो जीना नहीं आता। सिखाने वाली उंगली छोड़े बिना चलना नहीं आता।
रवि के पास पहली बार कोई उंगली नहीं है। घर, मां-पिताजी, भाई, दोस्त और पत्नी, सबको वह भारत छोड़ आया है। सिडनी में जब नौकरी मिली तो उसने इनकार ही कर दिया था।
‘वहां किसी को जानता-पहचानता भी नहीं हूं। अकेले कैसे रहूंगा?’ उसने कहा था।
लेकिन मां के अलावा सबने उसे कहा कि जाना चाहिए, अच्छा मौका है।
‘जो घर छोड़ते हैं, वही तरक्की कर पाते हैं,’ पिताजी ने कहा था।
‘किस्मत वाले हो, गुड़गांव में धक्के खाने से बच गए,’ दोस्त ने कहा था।
‘भाई जल्दी जाओ और मुझे भी ऑस्ट्रेलिया बुलाओ,’ भाई ने कहा था।
‘तो जाने से पहले जल्दी से इसकी शादी कर दो,’ मां ने कहा था।
एक महीने में शादी भी हो गई। और तब रवि ने देह को जाना। संजीता के साथ बीते उस एक महीने में पहली बार उसे देह का साथ मिला। अपराधबोध से निस्तेज हस्तमैथून और आत्मग्लानि से भीगे वेट ड्रीम्स की यंत्रणाओं से भागते रवि को पहली बार बादल की छांव का अहसास मिला। जिस अनुभूति से घिन आती थी, उसमें सुकून बरसा था। रवि भीग गया था। संजीता के बगैर ऑस्ट्रेलिया जाना असंभव लगने लगा था।
‘पर अभी तो संजीता के पास पासपोर्ट भी नहीं है। ये कैसे आएगी?’ उसने झिझकते हुए कहा था।
पापा ने समझाया कि तुम पहुंचो और घर तैयार करो हम बहू को पीछे-पीछे भेजते हैं।
उस बात को 50 शुक्रवार बीत गए हैं। संजीता का वीसा अब तक नहीं लग पाया है और रवि जल रहा है। 
उसका फोन जल रहा है। गेम खेलते-खेलते बैट्री गर्म हो गई है। वह बिना टाइम देखे फोन मेज पर रख देता है। फोन तुरंत वह बज उठता है। विडियो कॉल है। सामने संजीता है। उसकी स्माइल कितनी गोरी है, रवि सोचता है।
संजीता बोलती जाती है। रवि सुनता नहीं, बस देखता रहता है। तुम्हारी स्माइल कितनी गोरी है, उसका मुंह उसकी इजाजत के बगैर ही कह देता है।
‘क्या?’ संजीता पूछती है।
‘कुछ नहीं।’ रवि टालता है, ‘होमवर्क पूरा किया?’
संजीता फिर बेरोक बोलने लगती है। रवि गोरी मुस्कुराहट हो जाता है। वह खुद एकदम काला है। काला और छोटा। उसे हमेशा लगता है कि वह पिचका हुआ है, जिस वजह से उसका पेट भी थोड़ा सा बाहर रहता है।
15 मिनट हो गए हैं। संजीता बाय करके जा चुकी है। रवि अब तक कुर्सी ही है। टांगें हैं पर चल नहीं पा रहा। गोरी मुस्कुराहट ने उसके काले मंसूबों को उदास कर दिया है। आग बुझ गई है।
घर में बियर है या नहीं, वह याद करने की कोशिश करता है। उसने पब ना जाने का फैसला कर लिया है। वह नेटफ्लिक्स हो जाने के बारे में सोचने लगता है कि फोन फिर बज उठता है। अनजान नंबर है।
‘हलो’
‘हे मेट, आई एम हियर ऐट यॉर गेट। वेअर आर यू?’
रवि चौंकता है। फिर से फोन को देखता है। फोन पर सिर्फ एक अनजान नंबर है।
‘आई एम सॉरी?’ रवि पूछने के अंदाज में बताता है कि उसने फोन करने वाले को पहचाना नहीं।
‘आई एम यॉर ऊबर ड्राइवर मेट। आई एम हियर ऐट यॉर गेट। यू ऑर्डर्ड ऊबर इन अडवांस, राइट?’
रवि भूतकाल हो जाता है। बीती दोपहर जब आग बहुत ज्यादा लगी थी और वह धू-धू कर जल रहा था। तभी उसने शाम का प्लान बनाया था और हर्फ उठाया था कि आज अकेला नहीं सोएगा। गर्मा-गर्मी में उसने शाम के लिए ऊबर भी ऑर्डर कर दी थी। ऊबर आ गई है। रवि सोच रहा है, जाऊं या ना जाऊं। गोरी मुस्कुराहट सामने टेबल पर फैली पड़ी है। फोन आग उगल रहा है। फोन पर वॉल पेपर में लगी पाम बीच की नंगी कमर जगमगा रही है।
‘जस्ट कमिंग मेट, गिव मी अ मिनट।’
मेज पर फैली गोरी मुस्कुराहट को वहीं छोड़ रवि बाहर निकल जाता है। आग फिर जीत जाती है। पहले भी वह इस ऊहा-पोह से गुजर चुका है। जब वह पहली बार हैपी एंडिंग मसाज के लिए गया था। और तब भी जब वह पहली बार वह किंग्स क्रॉस गया था। सिडनी का रेडलाइट डिस्ट्रिक्ट। वहां रात नहीं होती, बस रोशनी रंगीन हो जाती है। पहली बार तो वह चकाचौंध देखकर ही लौट आया था। वहां बीच चौराहे पर एक पानी का फव्वारा लगा है। कुछ फुट परिधि वाले चभच्चे में पानी का विशाल गोला जिसमें से रंगीन रोशनियां निकलती हैं। रवि वहां चभच्चे की मुंडेर पर घंटा भर बैठा आस-पास गुजरते लोगों को देखता रहा। सैकड़ों लड़कियां और लड़के। सब हंस रहे थे। बहुत हंस रहे थे। रवि चुप था। इतना वह कभी नहीं हसंता। बहुत बड़ी बात हो जाए तो भी उसे छोटी सी हंसी आती है। उसका मन हुआ कि वह हंस दे। उसका मन हुआ कि कोई लड़की उसके साथ हंसे। उसका मन हुआ कि कोई लड़की उसे चूमे। वह जलने लगा। लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह किसी लड़की से बात कर सके। रवि उठकर लौट आया और घर आकर पॉर्न से नहा लिया। आग फिर बुझ गई।
किंग्स क्रॉस होना रवि के बस की बात नहीं थी। वहां सब खुले में होता था। बहुत सी सेक्स वर्कर्स उपलब्ध थीं लेकिन उसने खुलेआम बात करना रवि के लिए असंभव था। स्कूल, कॉलेज में जो आदमी लड़कियों से बात ना कर पाया हो, वह सेक्स वर्कर से बात कैसे करेगा!
आज करेगा। सेक्स वर्कर से नहीं, लड़कियों ही बात करेगा। और किसी के साथ लौटेगा। या फिर उसके कमरे पर भी जा सकता है। यॉर प्लेस और माइन, उसने फिल्मों में देखा है। उसने पब्स में भी बहुत बार देखा है। आज की तैयारी में उसने कई पब्स की कई यात्राएं की हैं। वह इंटेलिजेंट है। सॉफ्टवेयर डिवेलपर है। लॉजिक समझता है। पैटर्न समझता है। उसने ‘हाऊ टु पिक अ गर्ल’ पर कई आर्टिकल्स भी पढ़े हैं। उसने बार में लड़के-लड़कियों को एक-दूसरे के साथ जाते देखा है। उसका एक पैटर्न है, जिसे वह समझ गया है। 
लड़कियां तीन या चार के ग्रुप में आती हैं। जो लड़के ‘पिक’ करने आते हैं, वे अक्सर अकेले या दो होते हैं। लड़का बियर ऑर्डर करता है और एक कोने में बैठ जाता है। वह चारों और देखता रहता है और लड़कियों के हाव-भाव पढ़ता है। फिर एक या दो लड़कियां चुनता है, जो उसके हिसाब से उसके साथ जा सकती हैं। लड़का उनके अकेले होने का इंतजार करता है। मौका मिलते ही जाकर हलो हाय करता है और फिर कुछ ऐसा कहता है कि लड़की हंस देती है। यही पिक-अप लाइन होगी, रवि का अनुमान है। फिर लड़की अपने ग्रुप से अलग होकर लड़के साथ बियर या कोई और ड्रिंक लेती है। आधा, पौना, एक या कई बार दो घंटे बाद दोनों एक साथ बार से निकल जाते हैं।
आसान है, रवि ऊबर से उतरते हुए एक बार फिर खुद को तसल्ली देता है। सामने उसका चुना हुआ पब है। ‘बेस्ट प्लेसेज टु पिक अ गर्ल इन सिडनी’ की गहन रिसर्च के बाद वह यहां आया है। सिडनी के सिटी सेंटर की छोटी-छोटी गुफानुमा गलियों में छिपी एक यही जगह है जहां सिंगल एंट्री की इजाजत है। सिंगल एंट्री यानी कोई अकेला जाना चाहे तो भी जा सकता है। ‘बेस्ट प्लेसेज टु पिक अ गर्ल’ में ज्यादातर कपल एंट्री देते हैं।
जो किसी को साथ ले जाना चाहता है, वह किसी के साथ कैसे आएगा! अजब विरोधाभास है। 
अंदर जाने वालों की लाइन लगी है। दो के ग्रुप्स। चार के ग्रुप्स। क्या इनमें कोई अकेला है? क्या इनमें कोई भी किसी के साथ है? क्या सब के सब पिक करने और पिक होने आए हैं? 
रवि भी लाइन हो जाता है। 11 बजने को हैं। ये समय है नाइट क्लब्स के खुलने का। सड़क पर भीड़ है। लड़के-लड़कियां गुजर रहे हैं। इधर से उधर। उधर से इधर। शुक्रवार और शनिवार की रात यही चलता है। एक बार से दूसरी बार। दूसरी से तीसरी। नशे में धुत। 
दूर सिडनी टावर पर लाल रोशनी चमक रही है। टैक्सी एक दूसरे के ऊपर चढ़ रही हैं। रात का नाम ओ निशान नहीं है। रवि भी दिन हुआ जाना चाहता है। रंग-बिरंगा दिन। खुशनुमा लाल-नीला-हरा-पीला दिन। वह सड़क के उस पार देखता है। एक लड़की सड़क किनारे अकेली बैठी है। उसका रंग उससे काला है। उसका कद उससे छोटा है। उसके बाल उससे ज्यादा घुंघराले हैं।
क्या यह भी पिक होने आई होगी, रवि सोचता है। वह काले छोटे लड़के से काली छोटी लड़की होने की कोशिश करता है। बार के अंदर भी उसकी निगाहें उसे ही खोजती रहती हैं। बियर लेकर वह इधर उधर घूमता रहता है। अजनबियत उसके कंधे पर बेताल सी लटक रही है। उसे लगता है कि सब उसके कंधे पर चढ़ा यह बेताल देख रहे हैं। यहां कुछ भी उसे अपना नहीं लगता। कंधों से कंधे, कूल्हों से कूल्हे टकराती भीड़। बातों को निगल जाने वाला शोर। आंखों को चुंधियाता अंधेरा।
मुझे कोई रोशनी में नहीं देख पाता, अंधेरे में कैसे देखेगा, काला छोटा रवि सोचता है और एक कोना पकड़ लेता है। काली छोटी लड़की को देखकर बार के बाहर लाइन में लगी उसकी उम्मीद उसके साथ अंदर नहीं आई है। पर काली छोटी लड़की आई है। आ रही है। उसी की ओर। वह उसके बगल में बैठ जाती है। रवि चौकन्ना हो जाता है। उसे लगता है कि उसने कुछ चुराया है और बगल में कोई पुलिस वाला बैठा है। उसे लगता है कि उसने पेड़ा उठाकर जेब में डाल लिया है और मां को पता चल गया है। उसे लगता है कि उसका पॉर्न का वेबपेज खुला रह गया है और संजीता ने देख लिया है। वह उठकर बाहर चले जाना चाहता है। वह कुर्सी हो गया है। टांगें हैं पर चल नहीं सकता।
‘हलो…’ कहीं दूर से आवाज आती है। 
‘ह…लो…’ आवाज एकदम कान के पास से आई है। रवि मुड़कर देखता है। काली छोटी लड़की मुस्कुरा रही है।
‘मैं राइना हूं।’ वह अंग्रेजी में कहती है। रवि शोर हो जाता है। सारी आवाजों को दबा देना चाहता है।
‘तुम मुझे तब से घूर क्यों रहे हो?’ सवाल में जरा भी इल्ज़ाम नहीं है। वह मुस्कुरा रही है। रवि हैरान है।
‘क्योंकि तुम अच्छी लग रही हो।’ रवि हैरान से आगे कुछ हो गया है क्योंकि यह किसने कहा उसे खुद नहीं पता। शब्द ही रवि हो जाते हैं।
‘थैंक यू, क्या नाम है तुम्हारा?’
‘रवि’
‘इंडियन हो?’
‘हां। तुम।’
‘मैं घाना से हूं। अफ्रीका। यहां पढ़ने आई हूं।’
‘नाइस टु मीट यू।’ रवि हैरानी से खुद पर ही मुस्कुरा देता है।
‘तुम्हारे एस्पाड्रिलेस अच्छे लग रहे हैं।’ राइना भी मुस्कुरा देती है। 
आज अकेला घर नहीं लौटूंगा, उसका मन उसकी इजाजत के बगैर ही सोच लेता है।

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