Sunday, May 19, 2024
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डॉ. कमलेश कुमार यादव की कलम से – उत्कृष्ट सर्जनाशक्ति की मिसाल रेडियो रूपक ‘मन की बात, जन-जन की बात’

सारांश 
डॉ. कन्हैया त्रिपाठी राष्ट्रपति जी के पूर्व विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं एवं रूपक के लेखक हैं.
‘जन जन की बात, मन की बात’ रेडियो रूपक यूट्यूब के माध्यम से सुनने को मिला। सुनकर बहुत अच्छा लगा। माननीय प्रधानमंत्री जी के इस लोकप्रिय कार्यक्रम का 100 वां एपिसोड अप्रैल में प्रसारित हुआ है| इन 100 भागों को रेडियो रूपक के रूप में बहुत ही तार्किक और वस्तुनिष्ठ ढंग से सारांश के रूप में डॉ. कन्हैया त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। डॉ. त्रिपाठी द्वारा खास तौर पर उन सभी महत्वपूर्ण सुधारों, सुझाओं, टिप्पणियों, एवं योजनाओं को इसमें शामिल किया गया जो ‘मन की बात’ कार्यक्रम में माननीय प्रधानमंत्री जी के साथ भारतवासियों द्वारा साझा किया गया है।
इस रूपक को सुनने के बाद हमें ‘मन की बात’ कार्यक्रम के लगभग 100 एपिसोड की विस्तृत जानकारी इस एक ही रूपक से हो जाती है। इस रूपक में उन सभी चीजों को शामिल किया गया है जो ‘मन की बात’ के केंद्रीय विषय थे। संपूर्ण भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, एकता, अखंडता को जानने के लिए यह एक महत्वपूर्ण और सराहनीय रूपक बन पड़ा है| इसके लिए रूपक के लेखक डा. कन्हैया त्रिपाठी, प्रस्तुतकर्ता डॉ. संजय सिंह वर्मा और आकाशवाणी परिवार के साथ उनकी संपूर्ण टीम को साधुवाद।
रेडियो रूपक हेतु लेखन
संचार माध्यमों के मुख्यरूप से तीन उद्देश्य माने जा सकते हैं- सूचना, मनोरंजन और शिक्षा| शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों में अब मीडिया का भरपूर उपयोग किया जा रहा है। भारत सरकार ने ई-विद्या नामक पोर्टल भी उद्घाटित किया जिसका मकसद विद्यार्थियों-शिक्षार्थियों को ऑन लाइन शिक्षा का लाभ पहुँचाना है। मन की बात’ रूपक सुनने से हमें शिक्षा संबंधी बहुत सी बातों का बोध हुआ है| 100वें एपिसोड से रेडियो प्रसारण को भी अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त हुई है और इस ‘मन की बात-जन-जन की बात रूपक ने व्यवस्थित तरीके से जन-मन तक इसे पहुँचाया है। रेडियो प्रसारण की इस अनूठी पहल ने एक प्रेरणा प्रदान की है कि इस माध्यम के ज़रिए भारत के सुदूर एवं ग्रामीण इलाकों तक और समाज के हर तबके के लोगों तक प्रभावी रूप से पहुँचा जा सकता है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में भी शैक्षणिक सामग्री के प्रसारण में हर तरह के डिजिटल माध्यम के उपयोग का उल्लेख है। यह सोचना ग़लत नहीं होगा कि रेडियो प्रसारण न सिर्फ शिक्षा के नए आयामों को ढूँढ़ने में सहायक हो सकती है बल्कि डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के साथ-साथ, मौजूदा डिजिटल खाई को भी कम करने में अहम भूमिका निभा सकती है। ‘मन की बात-जन-जन की बात’ रेडियो रूपक का लेखन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि रेडियो का मूल तत्व नाद/ध्वनि है। ध्वनि ही भाषिक-सन्देश सम्प्रेषण का आधार बिन्दु है। भाषा-कौशलों में भाषा सीखने का पहला धारभूत कौशल ही ध्वनि है। रेडियो, जिसे भाषिक स्तर पर सामान्यतः बोलने और सुनने (श्रवण) के माध्यम की श्रेणी में रखा जाता है, देखा जाए तो सन्देश सम्प्रेषण के स्तर पर यह पाँचों कौशलों का निर्वाह करता है-बोलना/सुनना/सामग्री-पढ़ना/सामग्री (पटकथा) लिखना| तो स्पष्ट हैं कि पाँचवां,  देखने वाले के कौशल की स्थापना को हम रेडियो कार्यक्रमों विशेषकर, ‘मन की बात-जन-जन की बात’ रेडियो रूपक में आँखों देखा हाल, नाट्य प्रस्तुति, समाचार वाचन, समारोह आदि जैसी प्रस्तुतियों में, भाषा पर आधारित (भाषिक) बिम्बों में देख व समझ सकते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस रूपक लेखन में तारतम्यता और क्रमबद्धता है |

भारत (इंडिया) में रेडियो 
इतालवी भौतिकी-वैज्ञानिक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर मारकोनी गुल्येल्मो (Marconi Guglielmo) द्वारा 1895 में, रेडियो संचार का आविष्कार किया गया| इसी खोज के लिए उन्हें 1909 में (Shared :- कार्ल फर्डिनन्ड ब्राउन की भागीदारी में), नोबेल पुरस्कार मिला। स्वतंत्रता पूर्व भारत में,  रेडियो प्रसारण का आरम्भ 23 जुलाई, 1927 को हुआ। 8 जून, 1936 को इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया और साल 1957 में इसे आकाशवाणी के नाम से पुकारा जाने लगा। उन दिनों, अमीन सयानी की जादू-भरी आवाज में प्रस्तुत बिनाका- गीतमाला (प्रायोजित कार्यक्रम) बहुत लोकप्रिय हुई|  रेडियो-माध्यम के साथ, गिरिजाकुमार माथुर, नरेन्द्र शर्मा, गोपालदास नीरज, सुमित्रानन्दन पन्त जैसी कई हस्तियाँ जुड़ी रहीं। आज भारत में रेडियो-केन्द्रों का बड़ा नेटवर्क है। आकाशवाणी के पास फिलहाल देशभर में 420 स्टेशन मौजूद हैं जो लगभग, 23 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम तैयार करते हैं, जिनकी पहुँच लगभग 99.19 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या और 92 प्रतिशत क्षेत्रफल तक है। इनके अन्तर्गत विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण जारी है| ‘मन की बात’ कार्यक्रम से रेडियो की लोकप्रियता और भी बढ़ी है। 
विषय-वस्तु 
रेडियो रूपक के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है- विषय-वस्तु का चुनाव, डा. कन्हैया त्रिपाठी और उनकी टीम ने आज के दौर की सबसे ज्यादा प्रासंगिक और लोकप्रिय विषय ‘मन की बात’ का चुनाव किया है| जिस पर सभी आयु वर्ग के श्रोताओं का ध्यान जाता है| 
प्रस्तुति
प्रस्तुत रेडियो रूपक की प्रस्तुति में जीवंतता है| कहीं भी अतिरेक नहीं है| पुरे 100 एपिसोड को एक रेडियो रूपक के माध्यम से श्रोताओं तक पंहुचाया गया है| इसमें परिचर्चा है, वार्ता है| बीच-बीच में मधुर गीत-संगीत है, श्रोताओं द्वारा आँखों-देखा हाल का वर्णन जैसे अनेक संयोजन से आँखों के सामने जीवंत बिंब बनने लगता हैं| निश्चित रूप से विषय की प्रस्तुति सरल, सम्प्रेषणीय, और स्वाभाविक है|
तकनीकी-पक्ष 
‘मन की बात’ कार्यक्रम के केन्द्रीय विषय पर स्क्रिप्ट तैयार किया गया है| जिसे सम्पादन कला के आधार पर तैयार सामग्री को डिजिटल फॉर्मेट में बदलकर उसे रेडियो, इंटरनेट और वेबसाइट पर अपलोड करने हेतु रेडियो में आवाज़ के मॉड्यूलेशन (सही उतार-चढ़ाव), नाटकीयता, विशेष ध्वनि प्रभाव डालकर प्रभावशाली और सुगम बनाया गया है| स्क्रिप्ट के अनुसार रिकॉर्डिंग, मा. प्रधानमंत्री की आवाज़, संगीत आदि के अनुसार किया गया है| स्क्रिप्ट के केन्द्रीय-सन्देशानुसार रिकॉर्डेड सामग्री का सम्पादन किया गया है| तैयार सामग्री को डिजिटल फॉर्मेट में बदलकर उसे इंटरनेट या वेबसाइट पर अपलोड करने हेतु बनाया गया है| आवाज़ के मॉड्यूलेशन (सही उतार-चढ़ाव), नाटकीयता, विशेष ध्वनि प्रभाव डालकर प्रभावशाली और सुगम बनाया गया है| उपयुक्त स्वर, लेखन और प्रस्तुतिकर्ता की भाषा-ज्ञान रोचक तथा विभिन्न विषयों में ज्ञान एवं रुचि, उच्चारण की शुद्धता पर विशेष बल दिया गया है| ‘मन की बात जन-जन की बात’ में समय और तकनिकी का तालमेल सही ढंग से हुआ है| श्रोता आनंदित होते हैं| परिचर्चा, समयानुसार संचालन, श्रोताओं को बाधें रखता है| ‘मन की बात जन-जन की बात’ से श्रोता की कल्पना शक्ति बढ़ती है क्योंकि आँखों देखा वृत्तान्त प्रमुखता से उसके सामने आते हैं। ‘मन की बात जन-जन की बात’ ऐसा कार्यक्रम है जिन्हें श्रोता कथित रेडियो प्रस्तुति की दृश्य-बिम्बों-युक्ति पर सवार होकर, अपनी कल्पना के द्वारा, चाव से सुन और देख कर मनोरंजित हो रहें है, साथ ही उन्हें भारतीय संस्कृति, और भारतीय विविधता का ज्ञान एक मात्र रेडियो रूपक सुनने से हो जाता है| ‘मन की बात जन-जन की बात’ की कई झलकियाँ आज भी लोगों की स्मृतियों में अमिट छाप छोड़े हुए हैं, यह लेखक और संपादक की समझ को दर्शाता है।
रेडियो रूपक की ध्वन्यात्मकता अपनी विशेष-जादुई ध्वनियों द्वारा श्रोताओं को अपनी तरफ आकर्षित करती है। आज का हर वर्ग, ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम सुन रहा है| ‘मन की बात, जन-जन की बात’ कार्यक्रम को चित्रित करते समय आधिकारिक क्रमवार विवरण दिया गया है| तथ्यात्मक जानकारी ज्ञानवर्धन, रोचकता तथा सुविधा हेतु स्थल की ऐतिहासिक/भौगोलिक जानकारी के लिए उपयुक्त शब्दों का चयन और सधी हुई वाक्य-संरचना दी गयी है। इस प्रकार, ‘मन की बात, जन-जन की बात’ में प्रस्तुत किये गए सभी मुद्दे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर सोदाहरण चर्चा की गयी है। कार्यक्रम की भाषा हिंदी है पर सभी भारतीय भाषाओँ में हिंदी बोलने वाले लोगों से वार्ता (Talk) की गयी है| रेडियो कार्यक्रम तैयार/प्रस्तुत करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि रेडियो प्रसारण की भाषा ऐसी हो जिसे श्रोतावर्ग आसानी से समझ सके। महत्वपूर्ण बात यह है कि कहीं भी आपत्तिजनक शब्दों, टिप्पणियों का प्रयोग नहीं हुआ है| 
डिजिटल माध्यम और रूपक  
भारत के प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ रेडियो प्रोग्राम के 100वें एपिसोड़ के प्रसारण को पूरे देश ने उत्सव की तरह मनाया। वह इसलिए कि 2014 में शुरू होने वाला यह अपने आप में एक अनूठा प्रयोग था। जिसमें भारत के प्रधानमंत्री हर महीने के अंतिम रविवार को रेडियो के माध्यम से देश की जनता से रूबरू होते हैं। वह भारत की जनता को देश के विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं, वैज्ञानिक अनुसंधानों, साहित्य और खेल इत्यादि से जुड़े लोगों की उपलब्धियों से जुड़ी बातों के साथ-साथ देश में हो रहे नवाचारों को भी बताते हैं। लोगों को न सिर्फ अपने प्रधानमंत्री को सुनना अच्छा लगता बल्कि अपने बीच रह रहे लोगों की मेहनत और सफलता की कहानियाँ भी सुननी पसंद आता है। नतीजतन, नौ साल से चल रहे इस रेडियो प्रोग्राम ने सूचना और प्रसारण के इस माध्यम को आज के इंटरनेट के युग में भी काफ़ी लोकप्रिय और प्रभावशाली बना दिया। इंटरनेट और विजुअल माध्यम के इस दौर में इस तरह के रेडियो प्रसारण ने कुछ बुनियादी सवाल भी खड़े कर दिए हैं कि क्या विभिन्न विजुअल माध्यमों से लोगों तक पहुँचने की होड़ ने रेडियो की महत्ता कम की? या फिर हमने ही रेडियो से किसी भी प्रकार की सूचना के प्रसार की संभावनाओं को कम आंका? हालांकि बीते दशकों में टी.वी चैनलों की तरह रेडियो चैनलों का भी विस्तार हुआ और एंटरटेनमेंट की दृष्टि से सोचें तो, यह माध्यम काफ़ी लोकप्रिय भी हुआ। पर अभाव रहा, पढ़ाई-लिखाई और विकास से जुड़े गंभीर मुद्दों का, जिसके प्रसारण के लिए विजुअल माध्यम को ज़्यादा महत्वपूर्ण माना गया। इसका सीधा असर पड़ा, शिक्षा से रेडियो के जुड़ाव पर और इनमें दूरियाँ बढ़ीं लेकिन ‘मन की बात’ कार्यक्रम ने इन दूरियों को नकार दिया है।
रूपकीय कथानक 
प्रस्तुत रेडियो रूपक की शुरुआत 3 अक्टूबर, 2014 में माननीय प्रधानमंत्री जी के उद्बोधन से हुआ है जिसमें उन्होंने आगे भी इस कार्यक्रम को जारी रखने का संकेत दिया था| आज लगभग 8 वर्षों में 100 वें एपिसोड के प्रसारण के समय रेडियो पर इस एक सर्वे में बताया गया है कि 96% भारतवासी मन की बात कार्यक्रम से परिचित है| उनमें से लगभग 20% भारतीय इस कार्यक्रम को नियमित रूप से देखते हैं| इसका प्रमाण है रूपक में प्रतिभागियों की प्रतिभागिता, उनका वक्तव्य और उनके जुड़ाव|
रेडियो, संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है| संप्रेषण के इसी सशक्त माध्यम को माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपनाया और रेडियो की महत्ता को एक बार फिर स्थापित किया| मन की बात की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि- 100 वें एपिसोड में इसे एक साथ करोड़ों लोगों ने सुना| विदेशों में बसे भारतीयों और भारत प्रेमियों में मन की बात की लोकप्रियता को, अकादमी दुनिया में, भारतीय राजनीतिक में, स्कूली बच्चों पर पड़ रहे प्रभाव को, तमाम उदाहरणों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है| 
इस रूपक को लिखने वाले डॉक्टर कन्हैया त्रिपाठी का मानना है कि- मन की बात, भारत की काव्यात्मक यात्रा है| भारतीय भू-भाग पर रचित ऋग्वेद का सूत्र ‘संगच्छध्वं…’ संवाद की यात्रा है, यह यात्रा है स्वयं में सबको एवं सबमें स्वयं को महसूस करने की| अपने से अपनों की बात है ‘मन की बात’| माननीय प्रधानमंत्री ने अपने पहले ही एपिसोड में रेडियो की ताकत की ओर ध्यान आकर्षित कराया है कि रेडियो जन-जन से जुड़ा हुआ ताकतवर संप्रेषण का माध्यम है| टीवी, मोबाइल और अन्य डिजिटल माध्यमों के आने के बाद एक बार लोगों का ध्यान रेडियो के तरफ कम होने लगा था लेकिन मन की बात कार्यक्रम के प्रसारण के बाद रेडियो की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ी है, जहां माननीय प्रधानमंत्री जी भारतीय एकता, अखंडता, भारतीय उपलब्धि इत्यादि प्रेरक भारतीय कहानियों को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं| इस कार्यक्रम में बहुत ऐसी बातों घटनाओं और उपलब्धियों को उठाया गया है जिसे हम लोग नहीं जानते थे लेकिन ‘मन की बात’ कार्यक्रम से उसे जान सके| कार्यक्रम हर महीने के अंतिम रविवार को सुबह 11:00 बजे प्रसारित होता है जिसे 50 से अधिक भारतीय भाषाओं में प्रसारित किया जाता है।
जन-जन तक पहुंचाने के लिए इसे 262 आकाशवाणी केंद्रों 300 से अधिक सामुदायिक रेडियो स्टेशनों दूरदर्शन के सभी चैनलों, सैटेलाइट चैनलों पर उपलब्ध करवाया जाता है | इसी कार्यक्रम पर आधारित एक और कार्यक्रम प्रसारित होता है पोस्ट बॉक्स नं. 111 प्रत्येक माह के शेष रविवार को दिन में 11 बजे| वहां वे सभी शामिल होते हैं जिनका जिक्र प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है| साथ ही वे भी लोग उसमें शामिल होते हैं जिनकी सफलता की कहानियां प्रधानमंत्री जी को पसंद आती हैं| उन व्यक्तियों का भी छोटा-छोटा साक्षात्कार भी पोस्ट बॉक्स नं. 111 में शामिल किया जाता है| मन की बात कार्यक्रम पर बोलते हुए मानवाधिकार आयोग के सम्माननीय सदस्य ज्ञानेश्वर मुले का कहना है कि- यह एक बहुत ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जहां प्रधानमंत्री स्वयं जनता की बात सुनते हैं और उनसे जुड़ते हैं| इससे जनता सक्षम हो रही है| मानवाधिकार का संरक्षण हो रहा है| साहित्यकार और पत्रकार डॉ सच्चिदानंद जोशी का कहना है कि- समाज में समरसता और जागृति की बात बन गया है ‘मन की बात’| जब प्रधानमंत्री लोगों से बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि हम सबके बीच से ही कोई बोल रहा है| जवाहर कौल का कहना है कि- मन ही शरीर का वह हिस्सा है जो इस बात को सोचने समझने और ग्रहण करने का कार्य करता है| यह प्रधानमंत्री की सुलझी सोच है| शोध छात्र जोहरू इस्लाम का मानना है कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम से पारंपरिक खेलों को महत्व मिला है| 26 मार्च 2023 को प्रसारित मन की बात में 29 दिन की बच्ची अमावत और 65 वर्ष की बुजुर्ग महिला श्नेहलता चौधरी के अंगदान की चर्चा कर अंगदान के प्रति देशवासियों में जागरूकता का संचार किया और कहा कि अंगदान मानवता की अमर गाथा है| इसका बहुत अच्छा प्रभाव देशवासियों पर पड़ा और अब तमाम देशवासी अंगदान के लिए आगे आ रहे हैं| इसका जिक्र पूर्व केन्द्रीय शिक्षामंत्री रमेश पोखरियाल ने अपने एक कार्यक्रम के दौरान कही| ‘मन की बात’ को लेकर प्रधानमंत्री खुद ही कहते हैं कि मेरे ‘मन की बात’ हमेशा से ऐसे ही लोगों के प्रयासों से भरा हुआ, खिला हुआ एक उपवन रहा है और ‘मन की बात’ में हर महीने मेरी मशक्कत ही इस बात पर होती है कि इस उपवन की कौन सी पंखुड़ी आपके बीच लेकर के आऊं।
सन 2014 में प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने स्वच्छता से सब को जोड़ने पर बल दिया जो आगे चलकर एक आंदोलन का रूप परिवर्तित हुआ और घर-घर शौचालय की सुविधा उपलब्ध हुई| प्रधानमंत्री का स्वच्छता संदेश गांधी दर्शन के साथ जुड़ती है| स्वच्छता के प्रति हर भारतीय जागरूक हुआ है| पर्यावरण संरक्षण की बात भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में उभर कर सामने आया है| जल संरक्षण की बात हो या जलवायु संरक्षण की बात हो, सब पर सारगर्भित चर्चा हुई है और संरक्षण के उपाय भी बताए गए हैं| इससे प्रेरित होकर माउंट आबू के व्यक्ति ने कहा कि हम लोगों ने यह संकल्प लिया है कि कभी भी घर में प्लास्टिक, पॉलीथिन का उपयोग नहीं करेंगे और पर्यावरण की सुरक्षा करेंगे| प्रधानमंत्री ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के साथ आत्मनिर्भर भारत के पक्षधर हैं| इसके लिए अपने कार्यक्रम में छात्रों, युवाओं, खिलाड़ियों, किसानों, जवानों, उद्योगपतियों आदि को संबल देते रहे हैं| कई नए उद्यमियों ने यह स्वीकार किया है कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम से प्रेरणा लेकर उन्होंने उद्योग स्थापित किए और आत्मनिर्भर बने। खादी को अब हम अपने पहनावे में बिना झिझक शामिल कर रहे हैं| दीपावली पर मिट्टी के बर्तनों को खरीदने में गर्व महसूस कर रहे हैं| यह सब ‘मन की बात’ कार्यक्रम का ही प्रभाव है| खेल के क्षेत्र में महिलाओं को प्रोत्साहन की बात हो या स्त्री सशक्तिकरण की बात हो, रक्षाक्षेत्र, सेवाक्षेत्र, शिक्षाक्षेत्र आदि में महिलाओं की भागीदारी के लिए उन्हें प्रेरित किया है| आयुष्मान भारत योजना हो या मेडिकल की सुविधाओं को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में चर्चा के बाद आयुष्मान भारत योजना की लाभ लेने वालों की संख्या बढ़ गई है| ‘मन की बात कार्यक्रम ने पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति एक विशेष ऊर्जा का संचार किया है| यहां की संस्कृति सभ्यता की विशेषताओं के प्रति हम सबका ध्यान गया है| पूर्वोत्तर के लोगों ने भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम को खूब सराहा है| प्रस्तुत रूपक ‘मन की बात-जन-जन की बात’ की विशेषता यह है कि दक्षिण से उत्तर, पूर्व से पश्चिम सभी को साक्षात्कार लेकर, सभी लोगों को इसमें शामिल किया गया है जो एक शोधपरक कार्य है| ‘मन की बात-जन-जन की बात’ समग्रता में सुनें तो यह ‘मन की बात’ का आत्मतत्व है जिसे लेखक डॉ. कन्हैया त्रिपाठी और डॉ. संजय सिंह वर्मा के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया गया. निःसंदेह लेखन, निर्माण, प्रस्तुति, संयोजन और इस के निर्माण में शामिल लोग अभिनन्दन के पात्र हैं| ऐसे कार्यक्रमों का निर्माण होते रहना चाहिए क्योंकि यह सामाजिक जागरूकता के लिए भी बहुत बड़ा कदम है. 
डॉ कमलेश कुमार यादव
स्वतंत्र अध्येता 
संपर्क: मो.  9422386011  
ईमेल: kky.ngp@gmail.com   
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1 टिप्पणी

  1. धन्यवाद आदरणीय शर्मा जी।
    धन्यवाद भाई कमलेश यादव जी। आपकी इस समीक्षा ने मेरा अंतःकरण प्रसन्न कर दिया।
    सादर
    कन्हैया त्रिपाठी

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