बोरिस जॉनसन (साभार : TittlePress)

बॉरिस जॉनसन के लिये इस अहसास के साथ नेतृत्व करना ख़ासा कठिन होगा कि उसकी अपनी ही पार्टी के 41 प्रतिशत सदस्य उसके विरुद्ध हैं। यह तो अच्छा है कि ब्रिटेन में भारत की तरह दलबदल की राजनीति नहीं होती है। अन्यथा हम देखते कि इन नाराज़ सांसदों का नेता अपने गुट को लेकर विपक्षी लेबर पार्टी में शामिल हो जाता और सरकार गिर जाती। भारत के राजनीतिक सिस्टम को ब्रिटेन की परिपक्व लोकतंत्रीय प्रणाली से कुछ सीखना होगा। और हमें इस पर निगाह रखनी होगी कि बॉरिस जॉनसन कब तक अपने राजनीतिक चातुर्य से अपनी गद्दी बचाए रख सकते हैं। 

हम भारत में शायद सोच भी नहीं पाएंगे कि किसी भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के सदस्य अपने ही नेता के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाकर उसे गद्दी छोड़ने के लिये कह सकते हैं। सत्तारूढ़ की तो छोड़िये कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, टीएमसी, एनसीपी, शिवसेना, बीजू जनता दल, आरजेडी… जैसे किसी भी दल में अपने प्रमुख नेता का विरोध करने का जो भी साहस दिखाएगा, पार्टी उसे कान पकड़ कर बाहर का रास्ता दिखा देगी।
1969 में भारत में ऐसी स्थिति उत्पन्न अवश्य हुई थी जब कांग्रेस पार्टी के राज में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। कांग्रेस का कामकाज जो लोग देखते थे उन्हें सिंडिकेट कहा जाता था। पहले लाल बहादुर शास्त्री और फिर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में भी सिंडिकेट का ही हाथ था। एस निजलिंगप्पा उस समय कांग्रेस अध्यक्ष थे। इस सिंडिकेट में उन पुराने कांग्रेसियों की संख्या अधिक थी जो अहिन्दी-भाषी थे। 
इसी सिंडिकेट के दबाव में ही इंदिरा गान्धी को मोरारजी देसाई को उप-प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री की गद्दी पर बिठाने के लिये मजबूर होना पड़ा था। मगर राष्ट्रपति चुनावों में इंदिरा गांधी ने सिंडिकेट के उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी के मुकाबले वी.वी. गिरी को खड़ा कर दिया और गिरी राष्ट्रपति चुनाव जीत गये। इस तरह कांग्रेस में से कांग्रेस-आई का जन्म हुआ और दो बैलों की जोड़ी के स्थान पर गाय और बछड़े का निशान मिला। प्रकारांतर में वो निशान भी हथेली में परिवर्तित हो चुका है। 
बॉरिस जॉनसन पर तमाम तरह के आरोप लगते रहे हैं और वह पूरी ढिठाई के साथ उनका सामना कर रहा है। जब वह पूरे देश के नागरिकों को आदेश दे रहा था कि सब घरों में बैठें… घर से ही दफ़्तर का काम भी निपटाएं – ऐसे समय में वह अपने दफ़्तर में रात-रात भर पार्टियों का ओयोजन कर रहा था। पुलिस ने इस मामले में प्रधान मंत्री पर पचास पाउण्ड का जुर्माना भी किया। इस तरह बॉरिस जॉनसन ने एक नया रिकार्ड बनाया – वे ब्रिटेन के पहले ऐसे प्रधान मंत्री बन गये हैं जो कानून तोड़ने के कारण पुलिस द्वारा दंडित किये गये हैं। 
प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन ने अपनी ढिठाई का परिचय देते हुए संसद के भीतर और बाहर एक के बाद एक झूठ बोला और अपनी ही पार्टी के सदस्यों के विश्वास को आहत किया। लेबर पार्टी के नेता कीयर स्टॉमर से अधिक को बॉरिस को उसकी अपनी पार्टी के लोगों ने लताड़ना शुरू कर दिया। 
जस्टिन रॉबर्ट्स ने सवाल-जवाब सत्र की शुरुआत ही एक कठोर प्रश्न से की। जस्टिन का “विशिष्ट प्रश्न” था: “हमें आपकी किसी भी बात पर विश्वास क्यों करना चाहिए जबकि यह साबित हो चुका है कि आप आदतन झूठ बोलते हैं?”
दरअसल कोरोना काल के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन ने अपने दफ़्तर 10 डाउनिंग स्ट्रीट में पार्टियां आयोजित करना, उनके लिए मुश्किलें खड़ी करता जा रहा है। उनके सामने नया संकट अविश्वास प्रस्ताव का खड़ा हो गया था। ‘पार्टीगेट’ मामले में घिरे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना होगा। इस बात का ऐलान कंजरवेटिव पार्टी की एक समिति के अध्यक्ष ने किया था। उनके अनुसार पार्टीगेट मामले से जुड़ी नई जानकारियां सामने आने के बाद यह कदम उठाया जा रहा है।
संसद में टोरी पार्टी के 359 सदस्य हैं। अविश्वास प्रस्ताव के आवश्यक था कि कम से कम 54 सदस्य यानी कि 15 प्रतिशत सदस्य इस प्रस्ताव पर मतदान के पक्ष में हों। बॉरिस जॉनसन ने सोमवार को अविश्वास प्रस्ताव जीत लिया। कंज़रवेटिव पार्टी के 211 सदस्यों ने उनके पद पर बने रहने के पक्ष में मतदान किया, जबकि 148 ने उनके खिलाफ वोट किया। जॉनसन ने कहा कि यह मतदान व्यापक रूप से उनके पक्ष में रहा, क्योंकि 41.2 प्रतिशत के मुकाबले 58.8 प्रतिशत ने उनके पक्ष में मतदान किया। हालांकि, इन परिणामों के बाद उनके विरोधियों को उनकी आलोचना करने का मौका मिल गया है, जबकि उनके समर्थकों का कहना है कि परिणाम दिखाते हैं कि पार्टी के अधिकतर सदस्य उनके साथ हैं। यह बताना आवश्यक है कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान गुप्त हुआ था। 
परिणाम आने के बाद दार्शनिक मुद्रा अपनाते हुए बॉरिस जॉनसन ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि राजनीति और देश के लिए यह एक बेहद अच्छा परिणाम है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बस इसलिए मुझे लगता है कि यह एक बेहतर, निर्णायक परिणाम है, जिसका मतलब है कि एक सरकार के तौर पर हम आगे भी काम करना जारी रख सकते हैं और उन चीजों पर अधिक ध्यान दे सकते हैं, जो वाकई लोगों के लिए मायने रखती है। मुझे अपने संसदीय सहयोगियों से 2019 की तुलना में कहीं अधिक बड़ा जनादेश मिला है।”
इससे पहले टेरेसा मे, जॉन मेजर, इयान डंकन स्मिथ और मार्ग्रेट थैचर जैसे प्रधानमंत्रियों के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पेश किये जा चुके हैं। आम तौर पर देखा गया है कि प्रधानमंत्री जब ऐसे अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध जीत भी जाते हैं तो अधिक दिनों तक टिक नहीं पाते हैं।
विरोधी लेबर पार्टी के नेताओं ने अविश्वास प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए आमतौर पर कहा कि देश के लिये अच्छा है कि अगले चुनावों तक बॉरिस जॉनसन प्रधानमंत्री बने रहें ताकि जो काम उन्होंने शुरू किये हैं पूरे कर पाएंगे। साथ ही दब ज़बान यह भी कह डाला कि हमें किसी और प्रधानमंत्री के मुकाबले विवादों से घिरे बॉरिस जॉनसन को अगले चुनावों में हराने में आसानी होगी। 
ध्यान देने लायक बात यह भी है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन लॉकडाउन के दौरान एक गैर कानूनी पार्टी में शामिल होने के लिए अप्रैल में ही माफी मांग चुके हैं। उन्होंने तहे दिल से माफी मांगते हुए कहा था कि उन्होंने जान बूझ कर नियमों को नहीं तोड़ा या संसद को गुमराह नहीं किया था। बॉरिस जॉनसन ने निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में सांसदों से कहा था कि मुझे ऐसा नहीं लगा कि जन्मदिन के लिए केक के साथ लोगों का एकत्रित होना कोई पार्टी थी। मगर न तो उनके अपने दल के सदस्यों एवं नेताओं ने, न ही विपक्षी दलों ने और न ही जनता ने उनकी बात को गंभीरता से लिया है।
वर्तमान कंज़रवेटिव पार्टी के नियमों के अनुसार बॉरिस जॉनसन के विरुद्ध दूसरा अविश्वास प्रस्ताव नहीं पेश किया जा सकता। मगर स्थितियां बदल सकती हैं अगर बहुमत बॉरिस के विरुद्ध हो जाता है। हमें याद रखना होगा कि मार्ग्रेट थैचर और टेरेसा मे को अविश्वास प्रस्ताव जीतने के साल भर की भीतर ही पद त्याग करना पड़ा था। और उन दोनों ने बॉरिस जॉनसन से अधिक बड़े अंतर से अविश्वास प्रस्ताव जीता था।
बॉरिस जॉनसन के लिये इस अहसास के साथ नेतृत्व करना ख़ासा कठिन होगा कि उसकी अपनी ही पार्टी के 41 प्रतिशत सदस्य उसके विरुद्ध हैं। यह तो अच्छा है कि ब्रिटेन में भारत की तरह दलबदल की राजनीति नहीं होती है। अन्यथा हम देखते कि इन नाराज़ सांसदों का नेता अपने गुट को लेकर विपक्षी लेबर पार्टी में शामिल हो जाता और सरकार गिर जाती। भारत के राजनीतिक सिस्टम को ब्रिटेन की परिपक्व लोकतंत्रीय प्रणाली से कुछ सीखना होगा। और हमें इस पर निगाह रखनी होगी कि बॉरिस जॉनसन कब तक अपने राजनीतिक चातुर्य से अपनी गद्दी बचाए रख सकते हैं। 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

17 टिप्पणी

  1. You speak like a seasoned political commentator in the Editorial of today to the great delight of your readers.
    Your detailed study of the present and past political events vis a vis British Prime Ministers familiarizes us,your readers living in India, with the interesting political temper of Britain of these times.
    Congratulations n thanks, Tejendra ji.
    Regards
    Deepak Sharma

    • Deepak ji, thanks so much for your reaction. As Purvai is published from London, I take it upon me to present British and other international matters through my editorial. Your wishes and blessings are very important for me.

  2. पुरवाई के इस अंक के सम्पादकीय में तेजेन्द्र शर्मा जी ने ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री बोरिस जॉनसन के अविश्वास प्रस्ताव जीतने पर अपनी राय रखी है। यह सच है कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने ही अपने प्रधानमन्त्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया और उनके अपने दल और ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उन पर विश्वास जताते हुए उन्हें प्रधानमन्त्री बने रहने का अवसर दिया है लेकिन मैं इस घटनाक्रम को थोड़े अलग दृष्टिकोण से देखना चाहूंगा। अभी हाल ही में रूस की ओर से ब्रिटेन पर परमाणु बम से हमला करने की धमकी आई है, उधर चीन और उत्तर कोरिया के आसन्न खतरों को भी दुनिया के अन्य देशों की भांति ब्रिटेन भी अनदेखा नहीं कर सकता। तीसरी बात यह कि कोरोना काल में की गई पार्टी के लिए बोरिस माफी मांग चुके हैं और जुर्माना भर चुके हैं। ऐसे में उनके तख्तापलट का प्रयास उनके दल के विरोधियों द्वारा सत्ता हथियाने का असफल प्रयास अधिक दृष्टिगोचर होता है।
    जहां तक भारत में ऐसे किसी प्रयास की कल्पना तक कर पाना मुश्किल होने की बात है तो यह सही है कि कांग्रेसी वंशवादी और शीर्ष नेता के चरण चापन की परम्परा का अनुसरण किए जाने। के कारण भारतीय दलों में लोकतंत्र अपेक्षाकृत कम है, लेकिन यदि इसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो जब जब किसी दल के निरंकुश नेता के विरुद्ध अंदर से आवाज़ उठी है, अधिकांश बार तब तब उस नेता को आम जनता ने सर आंखों पर बैठाया है। मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, बीजू पटनायक, ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव, वाई एस आर जगनमोहन……
    …… एक लम्बी श्रृंखला है। फिर भारत की राजनैतिक परम्परा ब्रिटेन की भांति द्विदलीय न होकर बहुदलीय है, ऐसे में यहां इस परम्परा के शुरू होने पर राजनैतिक अस्थिरता का खतरा अधिक है, इसलिए दोनों देशों के लोकतन्त्र की अपनी अपनी खूबियां हैं और खामियां भी, जिन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए। तेजेन्द्र शर्मा जी को विचारोत्तेजक सम्पादकीय लिखने हेतु हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

  3. ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाली पत्रिका पुरवाई के नवीनतम अंक के सम्पादकीय में तेजेन्द्र शर्मा जी ने ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री बोरिस जॉनसन के अविश्वास प्रस्ताव जीतने पर अपनी राय रखी है। यह सच है कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने ही अपने प्रधानमन्त्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया और उनके अपने दल और ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उन पर विश्वास जताते हुए उन्हें प्रधानमन्त्री बने रहने का अवसर दिया है लेकिन मैं इस घटनाक्रम को थोड़े अलग दृष्टिकोण से देखना चाहूंगा। अभी हाल ही में रूस की ओर से ब्रिटेन पर परमाणु बम से हमला करने की धमकी आई है, उधर चीन और उत्तर कोरिया के आसन्न खतरों को भी दुनिया के अन्य देशों की भांति ब्रिटेन भी अनदेखा नहीं कर सकता। तीसरी बात यह कि कोरोना काल में की गई पार्टी के लिए बोरिस माफी मांग चुके हैं और जुर्माना भर चुके हैं। ऐसे में उनके तख्तापलट का प्रयास उनके दल के विरोधियों द्वारा सत्ता हथियाने का असफल प्रयास अधिक दृष्टिगोचर होता है।
    जहां तक भारत में ऐसे किसी प्रयास की कल्पना तक कर पाना मुश्किल होने की बात है तो यह सही है कि कांग्रेसी वंशवादी और शीर्ष नेता के चरण चापन की परम्परा का अनुसरण किए जाने के कारण भारतीय दलों में लोकतंत्र अपेक्षाकृत कम है, लेकिन यदि इसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो जब जब किसी दल के निरंकुश नेता के विरुद्ध अंदर से आवाज़ उठी है, अधिकांश बार तब तब उस नेता को आम जनता ने सर आंखों पर बैठाया है। मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, बीजू पटनायक, ममता बनर्जी, वाई एस आर जगनमोहन, हेमंत बिस्वा शर्मा ………… एक लम्बी श्रृंखला है, फिर भारत की राजनैतिक परम्परा ब्रिटेन की भांति द्विदलीय न होकर बहुदलीय है, ऐसे में यहां इस परम्परा के शुरू होने पर राजनैतिक अस्थिरता का खतरा अधिक है, इसलिए दोनों देशों के लोकतन्त्र की अपनी अपनी खूबियां हैं और खामियां भी, जिन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए। तेजेन्द्र शर्मा जी को विचारोत्तेजक सम्पादकीय लिखने हेतु हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

  4. पी एम बॉरिस जॉनसन के रहने और न रहने के विषय पर एक पूर्ण रिपोर्ट की तरह का ये संपादकीय हालांकि एक स्टेटमेंट की तरह बना है लेकिन जिन लोगों को इस घटनक्रम का नहीं पता, उन लोगों के लिए ये ग़ौरतलब है। संपादकीय की खास बात ये रही कि भारतीय सन्दर्भ में कॉंग्रेस संबंधित इतिहास का बिंदु हमारी जैसी नई पीढ़ी के लिए जानकारी देने वाला है। पी एम बॉरिस के लिए जहां अपनी ही पार्टी में पक्ष-और विपक्ष के फर्ज़ निभाने के चलते उनके समर्थन का फैसला एक ठंडी हवा का झोंका बनकर आया है, वही भविष्य में उन्हें सचेत करने का भी इशारा है।
    बहरहाल इस घटनक्रम पर एक पूर्ण सम्पादकीय के लिए आपको हार्दिक बधाई देना बनता है तेजेन्द्र सर।

    • धन्यवाद विरेन्द्र भाई। आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है। आपने स्थितियों को सही समझा है।

  5. ब्रिटेन की राजनीतिक स्थिति को बताता हुआ, विचारोत्तेजक संपादकीय। आभार एवं शुभकामनाएं.

  6. एक तुलनात्मक प्रस्तुति जो आम आदमी को दिशानिर्देश कर वास्तविक चित्र दिखलाने मैं सक्षम है।
    साधुवाद

  7. वहाँ के राजनीतिक परिदृश्य का सटीक विश्लेषण । बहुत कुछ जानने को मिल रहा है । आभार ।

    • धन्यवाद पद्मा। आप निरंतर संपादकीय पढ़ती हैं और प्रतिक्रिया भी भेजती हैं।

  8. राजनैतिक निर्णय व्यैक्तिक न होकर राष्ट्रीय मुद्दों पर होना ही बेहतर होता है । किन्तु व्यक्तिगत फैसलों का प्रभाव जब राष्ट्रीय भावना को आहत करता है तब ऐसा ही होता है जैसा बोरिसन के साथ हुआ…., नियमानुसार संसद सदस्य वोट भारत की तरह नहीं दे ….. सरकार कुछ समय तक सुरक्षित रह सकती है किन्तु बोरीसन को इस प्रस्ताव को एक वार्निंग की तरह लेना चाहिए ।
    आपकी संपादकीय हमेशा की तरह स्पष्ट विचार रखते हुए भारत के साथ तुलनात्मक दृष्टिकोण भी शामिल किया। इसके लिए बधाई तो बनती हैं

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